देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों में इतनी उम्मीदें जगा दी हैं कि उन्हें पूरा करना अब उनके लिए बहुत मुश्किल चुनौती होगी। अर्थव्यवस्था को उबारना, खाद्य महंगाई दर में कमी लाना और युवाओं के लिए रोजगार का सृजन उनके समक्ष प्रमुख चुनौतियां होंगी। उन्हें देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुस्लिमों को भी आश्वस्त करना होगा कि उनकी पार्टी बहुसंख्यकवादी राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा पर नहीं चलेगी। मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा मोदी को लेकर सशंकित रहा है।
जल्द ही देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने जा रहे मोदी के लिए तथाकथित गुजरात विकास मॉडल को एक एजेंडे के तौर पर पेश करना कारगर रहा, जिसमें औद्योगिक संस्थानों और खासकर कार निर्माता फैक्टरियों की स्थापना पर जोर रहा है। हालांकि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के पैमाने पर इस राज्य का प्रदर्शन दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर नहीं है। फिर गुजरात में उद्योग-धंधों के प्रोत्साहन की पुरानी परंपरा रही है।
इस बार देश में हुए भारी मतदान ने भी मोदी की पार्टी भाजपा की बहुत मदद की है। इस बार दो-तिहाई से ज्यादा मतदाताओं ने मतदान किया, जो इससे पूर्व वर्ष 1984 में हुए सर्वाधिक 63.6 फीसद मतदान से भी अधिक है। ऐसा भी लगता है कि छोटे शहरों में रहने वाले युवाओं ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में वोट दिया है। देश के 81.4 करोड़ मतदाताओं में से दस करोड़ से ज्यादा मतदाता ऐसे थे, जो पहली बार वोट डाल रहे थे। इन युवाओं के साथ-साथ ऊपर उठते मध्य वर्ग (जो कुल आबादी का तकरीबन एक-चौथाई है) की उम्मीदों पर खरा उतरना आगामी मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
भाजपा के पक्ष में वोटरों ने अभूतपूर्व रुझान दिखाया है। 1984 के बाद पहली बार किसी पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला है। तब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर थी। पिछली बार किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने वर्ष 1977 में केंद्र में बहुमत हासिल किया था। तब जनता पार्टी (जो केंद्र में कुछ समय ही रही) ने इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए 19 महीनों के आपातकाल के बाद सत्ता हासिल की थी।
इन चुनावों में यह बात भाजपा के पक्ष में रही कि 62 वर्षीय मोदी के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी 42 वर्षीय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अनमना और संकोची राजनेता माना जाता रहा। इसके अलावा कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के खिलाफ प्रबल सत्ता-विरोधी भावनाएं भी भाजपा के लिए मददगार साबित हुईं। पिछले छहसालों में खाद्य पदार्थों की महंगाई में अभूतपूर्व उछाल देखा गया था, जिससे गरीब परेशान हुआ और सामाजिक विषमता की खाई और बढ़ी थी। सरकार भले ही आर्थिक विकास के ‘समावेशी" होने के दावे करे, पर सरकारी आंकड़े भी यही कहते हैं कि पिछले दस सालों के दौरान सालाना औसतन 2.2 फीसद की दर से नए रोजगारों का सृजन हुआ।
बहरहाल, मोदी और भाजपा की जीत का कॉर्पोरेट जगत ने भी स्वागत किया है। शेयर बाजार ने संभावित नतीजों की आस में नई बुलंदियों को छुआ। रुपए की कीमत को मजबूती मिली। लेकिन अर्थव्यवस्था को उबारना आसान नहीं होगा। औद्योगिक उत्पादन में पिछले महीनों में गिरावट का दौर रहा और खाद्य पदार्थों की महंगाई दर भी दहाई के अंक के आसपास बनी हुई है। मोदी ने देश की उम्मीदों को बहुत बढ़ा दिया है। उन उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं होगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)