लड़कियों को बचाने वाले पिता को सलाम- क्षमा शर्मा

सत्तरह साल की वह किशोरी पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में रहती थी।
उसने दसवीं का इम्तिहान दिया था। उसकी दोस्ती एक लड़के से थी। एक दिन जब वह
स्कूल से बैंक जा रही थी, रास्ते में उसे वही लड़का मिला। वह उसे अपने साथ
ले गया। जब वे रेलवे स्टेशन पहुंचे, तो लड़की को कुछ शक हुआ। उसने भागना
चाहा, मगर लड़के ने उसे जबर्दस्ती एक गाड़ी में अपने साथ चढ़ा लिया। लड़की
घबराकर रोने लगी, तो लड़के ने उससे कहा कि वह रोए नहीं, दिल्ली जाकर वे
शादी कर लेंगे। मगर दिल्ली लाकर उसने लड़की को जीबी रोड पर बेच दिया। उसे
किसी से बात करने या अपने घर फोन करने की इजाजत नहीं थी। उधर जब लड़की
स्कूल से घर नहीं पहुंची, तो उसके गरीब मजदूर पिता ने पुलिस में रिपोर्ट
लिखवाई।

एक दिन उस लड़की ने एक ग्राहक को आपबीती सुनाई, तो उसे उस
पर तरस आ गया। उसने अपने फोन से लड़की की उसके पिता से बात कराई। उस पिता
ने जानकारी इकट्ठा करके एक एनजीओ से संपर्क किया। पुलिस की मदद से एनजीओ के
लोग वहां पहुंचे, तो उन्हें वह लड़की नहीं मिली। लड़की के पिता ने हिम्मत
नहीं हारी। वह पुलिस और एनजीओ के संपर्क में बना रहा।

तब पुलिस ने
वहां एक नकली ग्राहक भेजा, जिसे वहां मिदनापुर की एक अन्य लड़की मिली। उसे
भी इसी तरह एक लड़के ने शादी का वायदा करके जीबी रोड पर बेच दिया था। लड़की
ने नकली ग्राहक को बताया कि उस लड़की को लकड़ी के एक बक्से में छिपाकर रखा
गया है। तब पुलिस और एनजीओ के लोग वहां फिर पहुंचे। इस बार तलाशी में वह
लड़की एक बक्से में मिली। न केवल इन दोनों लड़कियों को, बल्कि बाकी छह अन्य
लड़कियों को भी छुड़ाया गया। सभी लड़कियां लकड़ी के बक्सों में बंद थीं।
कोठे की मालकिन को गिरफ्तार किया गया। उन दोनों लड़कियों के पिता उन्हें
अपने साथ ले गए। ये दोनों पढ़ना चाहती हैं और इस दौर को एक बुरे सपने की
तरह भूल जाना चाहती हैं।

देश में हजारों लड़कियों को ऐसे दुर्दिनों
से गुजरना पड़ता है। इन गरीब लड़कियों को कभी शादी, तो कभी नौकरी दिलवाने
के नाम पर महानगरों में बेच दिया जाता है। बहुत कम लड़कियां इस चंगुल में
फंसने के बाद बच पाती हैं। यदि बच भी गईं, तो उनके घरवाले उन्हें स्वीकार
नहीं करते। कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में एक सिपाही ने एक चौदह वर्षीय
लड़की को देह-व्यापार के शिकंजे से मुक्त कराया था। उस लड़की की दशा देखकर
वह इतना द्रवित हुआ कि अपने खर्चे पर उसे उसके घर छोड़ने गया, पर उसके
घरवालों ने उसे घर में घुसने तक नहीं दिया। मजबूरन सिपाही उसे अपने घर ले
आया और उससे कहा कि उसकी बेटी बनकर रहे। मगर वह लड़की घरवालों के व्यवहार
से इतनी दुखी हुई कि एक रात आग लगाकर उसने जान दे दी।

अक्सर पीड़ित
परिवार के लोग समाज के भय से अपनी सताई गई लड़कियों से आंखें फेर लेते हैं।
मगर इन दोनों लड़कियों के मामले में उनके घरवालों ने अपूर्व साहस का परिचय/> दिया। उन्होंने कहा भी कि हमारी लड़कियों का दोष नहीं है। उनकी बस इतनी
चाहत है कि जिन लोगों ने इन लड़कियों को इस दलदल में धकेला, उन्हें कड़ी
सजा मिले, ताकि दूसरी बच्चियों के साथ वे ऐसा न कर पाएं। जाहिर है, इससे
बदलते समय का अहसास होता है। माता-पिता भी अब समझने लगे हैं कि बिना कुछ
किए उनकी लड़कियों ोको जिंदगी भर की सजा नहीं मिलनी चाहिए।

हाल ही
में यूरोपीय संघ ने एक प्रस्ताव पास करके कहा था कि सेक्स बेचने को नहीं,
सेक्स खरीदने को अपराध माना जाए। पर हमारे यहां जब देह व्यापार के अड्डों
से लड़कियां पकड़ी जाती हैं, तो अक्सर उनके ग्राहकों के खिलाफ कार्रवाई
नहीं होती है। इससे अन्य लड़कियों को देह व्यापार में धकेलने की आशंका बनी
रहती है। हमारे नीति-नियंताओं को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।

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