मगनपुर की महिलाएं सूत कात कर हुईं आत्मनिर्भर- सुरेन्द्र / सुरेश

आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पुरुषों से किसी भी तरह कम नहीं हैं. वे
गांव में भी विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सशक्त पहचान बना रही हैं. गांधी जी
के सपनों के अनुरूप वे बुनकरी का काम कर रही हैं. ग्रामीण महिलाओं में
हुनर की किसी तरह की कमी नहीं है.  अपने इस हुनर के बदौलत सूत कात कर
महिलाएं अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं. जिससे वे अपने परिवार का
सहारा बनी हुई हैं. रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के मगनपुर में दो दर्जन
महिलाएं आज लघु उद्योग के हस्तशिल्प कला से जुड़ी हुई हैं और अपनी मेहनत की
बदौलत स्वरोजगार अपनाए हुए हैं. इन महिलाएं के जज्बे को लोग सलाम करते
हैं. ये प्रेरणा के स्नेत भी हैं.

दो दर्जन महिलाएं जुड़ी हैं इस कार्य
यहां पर दो दर्जन महिलाएं, जिसमें सुबेदा खातून, शीला देवी, उर्मिला देवी,
सरला देवी, अमिना खातून, नजिया खातून, नवियुन निशा, जुली परवीन, नाजिया
परवीन, रुखसान खातून, गुलनाज खातून, शबनम परवीन सहित दो दर्जन महिलाएं इस
कार्य में शामिल हैं. इन्हें पहले हबीब अंसारी के द्वारा चरखा चलाने व सूत
काटने के अलावा साड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. उसके बाद यहां पर शिल्प
साड़ी, शर्ट, बेडसीट, दुपट्टा, सलवार सूट आदि का निर्माण कार्य शुरू किया
गया. प्रति महिला कारीगरों के द्वारा दो दिन में एक साड़ी बनायी जाती है.
जिसके लिए इन्हें तीन सौ रुपया एवं सूत काटने के लिए भी इतनी ही राशि दी
जाती है. इस तरह एक महिला चार से पांच हजार रुपया पार्ट टाइम काम कर कमा
रही है.

विदेशों में है शिल्प साड़ी की मांग
यहां निर्मित की गयी शिल्प साड़ियों का मांग विदेशों में है. खास कर
ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान आदि देशों में इन साड़ियों की खूब मांग है. एक
साड़ी की कीमत तीन से चार हजार रुपया बतायी जाती है. इनके द्वारा बनाये गये
कपड़े को भागलपुर व इरबा में फिनिशिंग टच दिया जाता है. इसके बाद इसे
झारक्राफ्ट को दिया जाता है. जहां से इसकी बिक्री की जाती है.

प्रोत्साहन देने की है आवश्यकता
यदि सरकार के द्वारा उद्योग को बढ़ावा दिया जाये, तो जहां सैकड़ों महिलाएं
कार्य में जुड़ कर रोजगार प्राप्त कर सकेंगी. वहीं सरकार को भी लाखों रुपये
के राजस्व की प्राप्ति होगी.

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