दलितों के प्रति हमारी सोच का स्तर यह है- सुभाषिनी अली

अंबेडकर जयंती आई और गई। न जाने कितने नेताओं ने बाबा साहब के सपनों को
साकार करने के प्रति अपनी निष्ठा की दुहाई दी होगी। भाजपा के नेताओं ने तो
देश भर में इस बात का ढिंढोरा पीट दिया कि उन्होंने ही बाबा साहब को भारत
रत्न से नवाजा था। बाबा साहब के जन्मदिन के बाद बीते पंद्रह दिनों में इस
बात की कम से कम तीन बार याद दिलाई गई कि उनका सपना आज भी सिर्फ सपना ही
है। दलित उत्पीड़न और उनके साथ होने वाले हर प्रकार का अन्याय हमारे समाज
की कठोर वास्तविकता है।

अंबेडकर जयंती के ठीक एक सप्ताह बाद, 21
अप्रैल को, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का त्सुन्दूर मामले में फैसला
सुनाया गया। छह अगस्त, 1991 को आंध्र प्रदेश के त्सुन्दूर गांव में आठ
दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई, कइयों को बुरी तरह घायल कर दिया गया था
और उनके घरों में आग लगा दी गई थी। जो बचे, वे अपनी जान बचाने के लिए पलायन
कर गए। मामले की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत ने 21 लोगों को आजीवन
कारावास और 35 अन्य को एक साल कैद की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने घटना
के 23 साल बाद, तमाम आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि उनके खिलाफ
किसी प्रकार का सुबूत उनके सामने पेश नहीं किया गया। यानी पुलिस-प्रशासन ने
अपने दायित्व का पूरी तरह पालन नहीं किया।

उच्च न्यायालय का यह
फैसला आया ही था कि स्वामी रामदेव ने राहुल गांधी पर अमर्यादित टिप्पणी कर
केवल अपनी मानसिकता का ही परिचय नहीं दिया, बल्कि तमाम कर्णधारों और सच्चे
अंबेडकरवादियों के चेहरों के साथ समाज में मौजूद गहरे विभाजन और नफरत का
पर्दाफाश किया। रामदेव ने राहुल गांधी को नीचा दिखाने की कोशिश करते हुए
दलित महिलाओं के प्रति उस सामंती सोच को प्रदर्शित किया, जिसने उन्हें
सदियों से अत्याचार और लैंगिक हिंसा का शिकार बनाया है। उनकी इस टिप्पणी के
तमाम खतरनाक, निंदनीय और आपराधिक पहलुओं को समझने के लिए दलित महिलाओं से
संबंधित कुछ आंकड़ों को याद करना होगा।

हर हफ्ते देश में 21 दलित
महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। यह वह आंकड़ा है, जिसमें एफआईआर दर्ज किए
जाते हैं। उल्लेखनीय है कि एक चौथाई गांवों में दलित थाने पहुंच ही नहीं
पाते, ऐसे में असली आंकड़ा क्या होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, दलित महिलाओं के साथ होने वाले
बलात्कार के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। 2012 की रिपोर्ट में
1,676 मामलों का जिक्र है, जबकि 2010 में 1,349 मामले दर्ज किए गए हैं। इन
मामलों में सजा केवल पांच फीसदी मामलों में होती है।

दलित महिलाओं
से छेड़छाड़ करना, उन्हें गाली देना, उनके साथ भद्दे मजाक करना, उनका
शारीरिक शोषण करना और सबक सिखाने के लिए बलात्कार करना हमारे समाज का एक
बड़ा हिस्सा अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता है। इसलिए उन्हें समझ में नही आता
कि रामदेव का बयान आपत्तिजनक क्यों है।

यह तो रही उन लोगों की बात,
जिनकी सोच ही दलितों के प्रति प्रदूषित हैं। पर उन नेताओं के बारे में
क्या, जो खुद को सच्चे अंबेडकरवादीबताते हैं। भाजपा के नेता रामदेव की
पैरवी में जुटे हैं और दलितों के प्रति व वर्णाश्रम धर्म के पक्ष में अपनी
असली सोच का प्रदर्शन कर रहे हैं। यह तो एक तरह की ईमानदारी है। लेकिन उदित
राज जी भी समझाने में जुट गए हैं कि हनीमून का मतलब क्या होता है। पासवान
जी खामोश हैं। रामदास अठावले जी और प्रकाश अंबेडकर दबी आवाज में बोल रहे
हैं। सत्ता-मोह जीवन भर की घोषणाओं पर भारी पड़ता दिख रहा है।

रामदेव को कानून की पूरी सख्ती का आभास दिलवाया जाना चाहिए और उनकी पैरवी करने वालों को जनता के गुस्से का।

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