आम चुनाव के दौर में हिमाचल प्रदेश में बंदर और चमगादड़ भी मुद्दा
बन गए हैं। दरअसल ये जीव फसलों का काफी नुकसान करते हैं जिसकी मार किसानों
पर पड़ती है। यही वजह है कि राज्य के किसान इन जीवों से अपनी फसल बचाने के
लिए किसी पुख्ता व्यवस्था की मांग सरकार से करते रहे हैं। बंदरों का उत्पात
तो हिमाचल प्रदेश के चुनावों में पहले से गंभीर मुद्दा बनता रहा है। अब
चमगादड़, खरगोश, हिरन और तेंदुआ जैसे वन्य जीव भी इसमें शामिल हो चुके हैं।
भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों पार्टियों की सरकारें किसानों से इस समस्या
का हल निकालने का वादा करती रही हैं। लेकिन इन जीवों का उत्पात किस तरह
रोका जाएगा, इसको लेकर कोई ठोस कार्ययोजना अब तक नहीं बनाई जा सकी है।
हालांकि, उत्पाती बंदरों की जनसंख्या पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार
ने वर्ष 2007 में उनकी नसबंदी की योजना शुरू की थी। सरकारी आंकड़ों के
मुताबिक अब तक 77,380 बंदरों की नसबंदी की गई है। लेकिन मसला सिर्फ बंदरों
तक सीमित नहीं है। हिमाचल ज्ञान-विज्ञान समिति के निदेशक सत्यवान पुंडीर के
अनुसार, राज्य के किसानों और बागवानों के लिए बंदरों के अलावा अन्य कई
वन्य जीव भी परेशानी का कारण बने हुए हैं। समिति की ओर से दो साल पहले की
गई जांच से पता चला कि राज्य की 2,301 पंचायतें वन्य जीवों के उत्पात से
प्रभावित हैं। इनसे सलाना लगभग 500 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
पुंडीर के मुताबिक, वन्य जीवों से अपनी फसलों की सुरक्षा और अतिरिक्त
खर्च से बचने के लिए किसान खेत पर अधिक समय दे रहे हैं। इस दौरान कई
किसानों को जंगली जानवरों ने निशाना भी बनाया है। कांगड़ा जिले की देहरा
तहसील की 20 पंचायतों के ज्यादातर किसानों ने तो खरगोश, नीलगाय, जंगली सुअर
और हिरन से परेशान होकर खेती ही छोड़ दी। कुछ ऐसी ही समस्या हमीरपुर, उना,
बिलासपुर, सोलन और सिरमोर जिले में भी है। हालांकि किन्नौर और
लाहुल-स्पीति जैसे आदिवासी क्षेत्र जानवरों के उत्पात से अभी मुक्त हैं।