16 मई को नतीजे आने के साथ नई सरकार का अक्स भले ही सामने आ जाए, लेकिन उसके सामने की प्रमुख चुनौतियां अभी से स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। आसन्न सूखे के पूर्वानुमान के साथ केले और गेहूं की फसलों पर संकट देश-दुनिया की खाद्य सुरक्षा के सामने बड़ा खतरा पैदा करने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार पनामा डिजीज ट्रॉपिकल रेस 4 (टीआर 4) फफूंद के चलते दुनिया में करीब 2600 अरब रुपये के केले के कारोबार को चपत लग सकती है। करीब 41 करोड़ लोग इस केले से अपना पेट भरते हैं। वहीं पोलियो ऑफ एग्रीकल्चर नाम से कुख्यात व्हीट रस्ट नामक फफूंद रोग वैश्विक स्तर पर गेहूं की पैदावार के लिए खतरा बन चुका है। अगर शीघ्र ही इन रोगों से मुकाबला न किया गया तो वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा की चुनौती से निपटना आसान नहीं होगा।
हाल ही में स्काईमेट द्वारा जारी मौसम के पहले पूर्वानुमान में यह बताया गया कि इस बार मानसून सामान्य से कम रहने वाला है। इसी सप्ताह भारतीय मौसम विभाग भी अपना पूर्वानुमान जारी करने वाला है। अगर दुनिया के अन्य मौसम विभागों की तरह यह भी अल-नीनो के बढ़ते प्रभाव पर मुहर लगा देता है तो यह किसानों के अलावा गठित होने वाली नई सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होने वाला है। इसके अलावा खाद्य एवं कृषि संगठन ने चेताया है कि दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों से निर्यात की जाने वाली केले की फसल को चौपट कर चुका टीआर 4 फफूंद मोजाम्बिक और जॉर्डन का रुख कर चुका है। केले के इस बीमारी पर वर्तमान में मौजूद किसी भी कीटनाशक का कोई असर नहीं हो रहा है।
आगाह करते हुए इस संस्था ने कहा है कि यह केले की वैश्विक पैदावार के लिए बड़ा खतरा साबित होने जा रहा है। विशेषज्ञ हैरान हैं कि किसी प्रभावकारी इलाज से परे यह फफूंद दुनिया के बड़े केला उत्पादक लैटिन अमेरिकी देशों का रुख भी कर चुका है। वैज्ञानिकों को यह चिंता खाए जा रही है कि टीआर 4 का सर्वाधिक असर विकासशील देशों पर पड़ सकता है, जहां करीब 41 करोड़ लोग अपनी जरूरत की कैलोरी का एक तिहाई हिस्सा इसी केले के सेवन से पूरा करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक टीआर 4 फफूंद से दुनिया में केले की 85 फीसद फसल स्वाहा हो सकती है।
दुनिया में अनाज उत्पादन करने के मामले में दूसरी सबसे बड़ी फसल गेहूं भी एक दूसरे फफूंद रोग की चपेट में है। खतरनाक बीमारी ‘व्हीट रस्ट’ जिसे पोलियो ऑफ एग्रीकल्चर भी कहा जाता है, अफ्रीका से दक्षिण व मध्य एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप तक फैल चुकी है। हवा के माध्यम से फैलने वाले इस फफूंद के बीजाणु कई देशों की गेहूं पैदावार को संकट पैदा कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन ऐसे खतरों की मुख्य वजह है। उत्तरी अफ्रीका से लेकर दक्षिण एशिया के जो देश पहले इस रोग से अछूते रहते थे, गर्म दशाओं के चलते आज यहां यह एक महामारी बन चुकी है। इथियोपिया में छह लाख हेक्टेयर गेहूं की फसल इससे प्रभावितहै जो गेहूं की फसल के कुल रकबे का एक तिहाई है।
टीआर 4 बीमारीः
यह केले की प्रजातियों को लगने वाली एक फफूंद रोग है। यह फफूंद 30 साल से अधिक समय तक जमीन में रह सकता है और यह पौधे के आंतरिक भाग को क्षतिग्रस्त कर देता है। दो से तीन साल के भीतर ही यह केले की पूरी फसल को चौपट कर सकता है। यह जल की बूंदों, उपकरणों या जूतों पर लगी थोड़ी-सी मिट्टी के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच सकता है।
व्हीट रस्टः
गेहूं की फफूंदजनित बीमारी है। वैसे तो हर साल दुनियाभर में इसका कुछ कुछ असर दिखाई देता है, लेकिन खास मौसम और क्षेत्र में इसका प्रकोप पूरी फसल चौपट कर देता है। 1950 के दौरान इसने उत्तरी अमेरिका की 40 फीसद गेहूं की फसल स्वाहा कर दी थी।
‘फसलों की इन बीमारियों के चलते भारत जैसे देश में अनाज की पैदावार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। वैसे भी हमारे यहां खाद्यान्न जरूरत से ज्यादा पैदा किया जाता है लिहाजा सरकार को चिंता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर इंद्रदेव ने साथ नहीं दिया तो इस सबका एकीकृत असर खाद्यान्न सुरक्षा पर दिखाई दे सकता है। हमारी सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए। – देविंदर शर्मा, खाद्य एवं कृषि मामलों के विशेषज्ञ