रिन्युएबल एनर्जी को बढ़ावा देने का है वक्त – संजीव कुमार

वैश्विक स्तर पर सरकारें औद्योगिक क्षेत्र
की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रीन इंडस्ट्रियल पॉलिसी पर काम कर
रही है। इसके तहत रिन्युएबल एनर्जी के उत्पादन एवं खपत की दिशा में अधिक
जोर दिया जा रहा है। यह ट्रेंड वैश्विक स्तर पर न केवल विकसित बल्कि
विकासशील देशों में भी तेजी से अपनाया जा रहा है। इसका मकसद जीवाश्म ईंधन
के बढ़ते इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटना है। इस लिहाज से
विकल्प के तौर रिन्युअबल एनर्जी के इस्तेमाल को अधिक तरजीह दी जा रही है
ताकि औद्योगिक ऊर्जा की मांग में हो रही बढ़ोतरी की पूर्ति की जा सके।
पेश है रिन्युएबल एनर्जी की मौजूदा हालात पर संजीव कुमार की रिपोर्ट…

देश की बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के साथ ऊर्जा की मांग में भी तेजी
से इजाफा हुआ है। इन जरुरतों की पूर्ति करने के लिहाज से सरकार ऊर्जा
उत्पादन से संबंधित सभी क्षेत्रों में तेजी से काम कर रही है। साथ ही इस
दौरान इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर क्लाइमेट चेंज
की चुनौतियों से कैसे निपटा जाए।

इस लिहाज से से देश में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाने के अलावा
ऊर्जा के दूसरे विकल्पों को विकसित किए जाने को तरजीह दी जा रही है ताकि
एक एक पंथ दो काज को अंजाम दिया जा सके। इसके नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने
सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नेशनल हाउसिंग बैंक के साथ समझौता किया
है।

समझौता पत्र में क्या है खास
सब्सिडी के लिए एनएचबी को नोडल एजेंसी बनाया गया है। इसका काम जवाहर लाल
नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत दिए जाने वाले सब्सिडी को एक नई दिशा
देना है। इस सब्सिडी को खुदरा स्तर पर कर्ज देने के लिए बैंक (व्यावसायिक,
कॉपरेटिव, और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक) और हाउसिंग फाइनांस कंपनियां काम
करेंगी।

इन संस्थानों का काम सरकार द्वारा सोलर एनर्जी के इस्तेमाल करने वाले
लाभार्थियों को सब्सिडी मुहैया कराना है। यह सब्सिडी सरकार की ओर से किए गए
मंजूर उपकरण की खरीदारी और उसे स्थापित करने के लिए गए लोन पर दी जाएगी।
लोन की राशि मानक लागत के 30 फीसदी तक सोलर हीटिंग सिस्टम के लिए मिलेगा
जबकि सोलर लाइटिंग सिस्टम के मामले में यह मानक लागत का 40 फीसदी होगा।

क्या है जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन
जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन को 2010  में लांच किया गया था। इस
मिशन के तहत 2022  तक 20,000  मेगावाट सोलर एनर्जी का उत्पादन करना है जो
ग्रिड से जुड़ा होगा। इस मिशन के तहत सोलर पावर जेनरेशन की लागत कम करने के
लिए काम किया जा रहा है। इसके लिए लंबी अवधि की नीति बनाकर, बड़े स्तर पर
रिसर्च एवं डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के साथ सोलर एनर्जी प्रोडक्शन से
संबंधित महत्वपूर्ण कच्ची सामग्री, कंपोनेंट एवं उत्पादों का घरेलू स्तर पर
उत्पादन करने की कोशिश की जा रही है।

सब्सिडी में कैसेे की जा सकती है बचत
भारत ग्रीन एनर्जी सेक्टर को सब्सिडी के तौर पर दी जाने वाली राशि का 78
फीसदी बचा सकती है अगर वह रिन्युएबल एनर्जी पॉलिसी में बदलावकरे। हाल ही
में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत का मौजूदा विंड एवं सोलर
एनर्जी पॉलिसी लागत-प्रभावी (कॉस्ट इफेक्टिव) नहीं है जैसा कि इसे होना
चाहिए था। यह स्टडी संयुक्त रुप से क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव एवं भारती
इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी द्वारा की गई है।

विंड एनर्जी के मामले में कर्ज की लागत में 5.9 फीसदी की कमी आ सकती है
बशर्ते इसके कर्ज की अवधि को 10 साल के लिए बढ़ा दिया जाए। वही सोलर एनर्जी
के मामले में जो बहुत ही कैपिटल इंटेसिव है, यहां पर कर्ज की लागत को 1.2
फीसदी तक घटाया जा सकता है अगर कर्ज की अवधि को 10 साल के लिए बढ़ा दिया
जाए। ऐसा करते ही सरकारी सब्सिडी में 28 फीसदी की कमी आ जाएगी।

सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट बनाने की हो रही है तैयारी
भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली सोलर प्लांट बनाने की तैयारी कर रहा है। यह
सोलर पावर प्लांट  आकार की तुलना में चार न्यूक्लियर रिएक्टर के बराबर और
दूसरे किसी भी सोलर प्लांट से करीब दस गुना बड़ी होगी। यह करीब 77 वर्ग
किलोमीटर में फैला होगा जो कि मैनहटन आईलैंड से भी बड़ा होगा।

इसका  निर्माण छह सरकारी कंपनियों द्वारा एक संयुक्त उपक्रम के जरिए
किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में करीब सात साल का समय लगेगा।
इसके पहले चरण की शुरुआत 2016 में होगी। इसकी अनुमानित लागत 4.4 अरब डॉलर
है। इस प्लांट को राजस्थान के सांभर के साल्ट लेक के निकट स्थापित किया
जाना प्रस्तावित है।

इस योजना से जुड़ी खास बातें..
आम तौर पर एक फोटोवोल्टेइक पावर प्लांट की अनुमानित जीवन 25 साल की होती है
और ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह अपने लाइफ टाइम में 6.4 अरब किलोवाट
आवर सालाना ऊर्जा की आपूर्ति करेगा। इससे भारत के कार्बन डाईऑक्साइड
उत्सर्जन में करीब सालाना 40 लाख टन से अधिक की कमी आएगी। भारत में फिलहाल
2208 मेगावाट सोलर पावर की क्षमता है जो ग्रिड से कनेक्टेड है। 2010 में यह
17.8 मेगा वाट था जब सरकार ने जवाहर लाल नेहरु राष्ट्रीय सोलर मिशन को
लांच किया था।

सोलर एनर्जी के लिए सैटेलाइट की भी ली जा रही है मदद
सैटेलाइट से लिए गए तस्वीर की सहायता से देश भर में सोलर एनर्जी के उत्पादन
से संबंधित संभावनाएं तलाश रही हैं। इस अभियान में अमेरिका भी भारत के साथ
है। इसके साथ ही देश भर में 51 जगहों पर सोलर रेडिएशन की उपलब्धता का
आंकलन करने के लिए समर्पित मापन स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। इस आंकड़े को
बाद में 45 मेटियोरोलॉजिकल आब्जर्वेशन के साथ जोड़ा जाएगा।

जहां तक आबादी का सवाल है तो भारत चीन से आबादी के मामले में बहुत अधिक
पीछे नहीं है लेकिन यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक भारत
में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत चीन के मुकाबले एक चौथाई है। इसलिए प्रति
व्यक्ति ऊर्जा खपत बढ़ाने के लिए ग्रीन एनर्जी की उपलब्धता बढ़ाई जा रही
है।

देश में रिन्युएबल एनर्जी क्षमता
देश ने 2022 तक रिन्युएबल एनर्जी की क्षमता को 74 मेगावाट तक करने का
लक्ष्य तय किया है। इसमें 22 गीगा वाट सोलर एनर्जी उत्पादनभीशामिल है।
देश में रिन्युएबल एनर्जी की स्थापित क्षमता 27.7 गीगा वाट है (यह देश में
स्थापित कुल ऊर्जा का करीब 13 फीसदी है)। देश पहले से ही इस दिशा में
वैश्विक लीडर बना हुआ है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत देश में 30 गीगा
वाट रिन्युएबल एनर्जी की क्षमता स्थापित की जाएगी।

इसके लिए सरकार ने 4 अरब डॉलर रुपये आवंटित किए हैं। इसमें निजी सेक्टर
की भूमिका भी काफी अहम है। एक अनुमान के मुताबिक 12 वी पंचवर्षीय योजना के
तहत इंफ्रास्ट्रक्चर में कुल योजनागत निवेश का इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर के लिए
करीब एक तिहाई रखा गया है। राज्य सरकारें भी केंद्रीय नीति को ध्यान में
रखकर पॉलिसी बना रही हैं।

क्या है आरपीओ (रिन्युएबल परचेज ऑब्लीगेशन)
राष्ट्रीय स्तर पर वित्त वर्ष 2009-10 के लिए 5 फीसदी निर्धारित की गई थी
जिसे हर साल एक फीसदी की दर से अगले दस साल तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया
गया था। इसके तहत 2020 तक खपत होने वाली 15 फीसदी आरई की खरीदारी का लक्ष्य
तय किया गया है।

इसके अलावा सौर ऊर्जा आधारित आरपीओ भी निर्धारित किया गया था जिसके तहत
2012 में 0.25 फीसदी की हिस्सेदारी तय हुई थी जिसे 2022 तक 3 फीसदी के स्तर
पर ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य सरकार सौर ऊर्जा के उत्पादन एवं
मैन्युफैक्चरिंग के लिए छूट दे रही है।

यह छूट आरई तकनीक के आयात पर मिल रही है। साथ ही सरकार ने स्थानीय वस्तु
की जरूरत को लागू किया है जिसे जेएनएनएसएम के दूसरे चरण में 75 फीसदी करने
का लक्ष्य रखा गया है।

रिन्युएबल एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए कर्ज की सुविधा
इरेडा-नेशनल क्लीन एनर्जी फंड (एनसीईएफ) स्कीम के तहत सरकारी बैंकों को
रिन्युएबल परियोजनाओं के लिए दो फीसदी ब्याज दर से कर्ज दिए जाएंगे। बैंक
उस कर्ज को अधिकतम पांच फीसदी की ब्याज दर से रिन्युएबल परियोजनाओं को दे
सकती है। इरेडा के मुताबिक पांच फीसदी की दर से रिन्युएबल परियोजनाओं को
परियोजना लागत की 30 फीसदी लागत के लिए कर्ज मिल सकता है। बाकी के कर्ज पर
बैंक अपनी सामान्य दरों को लागू कर सकता है।

इस स्कीम का लाभ हर प्रकार की रिन्युएबल परियोजना को मिलेगा, चाहे वह सोलर से जुड़ी हो या विंड से या फिर बायोमास से।
इरेडा के मुताबिक 2500 करोड़ रुपये का कर्ज रियायती दरों पर चालू वित्त
वर्ष 2014-15 के दौरान रिन्युएबल परियोजनाओं को दिए जाएंगे। पिछले वित्त
वर्ष के दौरान 100 करोड़ रुपये का ही कर्ज रिन्युएबल परियोजनाओं को दिया
गया था  

रिन्युएबल एनर्जी को बढ़ावा देने में इरेडा का है अहम योगदान
इरेडा एक एनबीएफसी है जो रिन्युएबल एनर्जी एवं एनर्जी एफिशिएंसी से जुड़े
प्रोजेक्ट्स को वित्त सुविधा मुहैया कराती है। इसका गठन 1987 में किया गया
था। अब तक इरेडा ने 2000 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है और करीब 8,000 करोड़
रुपये का कर्ज बांट चुकी है। इरेडा का उद्देश्य ‘सदा के लिए ऊर्जा’ है।

सरकार ने अगले पांच साल के भीतर 30,000 मेगावाट सोलर ऊर्जा उत्पादन का
लक्ष्य रखा है। यह एक कैपिटल इंटेसिव सेक्टर है। कुछ साल पहले तक जहां एक
मेगावाट की उत्पादन लागत 20 करोड़ रुपये आती थी।

इसलिएप्रति यूनिट 18-19 रुपये की लागत आती थी लेकिन मौजूदा समय में यह
लागत 6 से 7 रुपये के बीच है। 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 3500
मेगावाट की क्षमता विंड एनर्जी सेक्टर में स्थापित हुई है। अगले पांच साल
में 15000 मेगावाट की क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य है। अगले तीन सालों
में 11000 मेगावाट की क्षमता विंड एनर्जी सेक्टर में स्थापित करने की जरूरत
है।

इरेडा के सामने क्या है चुनौतियां
जहां तक पॉलिसी का सवाल है तो मंत्रालय संबंधित पक्षों से उनकी राय लेती
रहती है। सेक्टर को सस्ते कर्ज की दरकार है जो नेशनल क्लीन एनर्जी
डेवलपमेंट फंड के तहत संभव है।

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