किसानों को जल्द ही गेहूं की ऐसी वैरायटी उपलब्ध कराई जाएंगी, जिसकी खेती बहुत कम पानी के इस्तेमाल से की जा सकती है। अब तक गेहूं की फसल कम से कम छह सिंचाई में अच्छी पैदावार देती है, लेकिन नई किस्में आने के बाद सिर्फ दो सिंचाई में ही गेहूं की फसल ली जा सकेगी।
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (नई दिल्ली) ने वैज्ञानिकों द्वारा ईजाद की गईं ऐसी आठ किस्मों को ट्रायल के लिए कृषि अनुसंधान केंद्रों को भेजा है। बुलंदशहर के अनुसंधान केंद्र पर एक सफल ट्रायल हो चुका है, जबकि दूसरे परीक्षण की रिपोर्ट अप्रैल तक आ जाएगी।
तीन ट्रायलों में अगर प्रयोग सफल रहा, तो वैरायटी को बाजार में उतार दिया जाएगा। प्रदेश में एक बड़ा इलाका ऐसा है, जहां पानी की उपलब्धता बहुत कम हैं। इन क्षेत्रों में गेहूं की फसल आसानी से पैदा करना संभव नहीं है। क्योंकि गेहूं की बुआई से लेकर फसल तैयार होने तक छह बार खेतों में एक एकड़ फसल में एक बार की सिंचाई पर करीब 1,200 से 2,000 रुपये तक का खर्च बैठता है। अगर यह प्रयोग सफल हो जाता है, तो गेहूं की खेती में एक बड़ा बदलाव आ जाएगा।
बुलंदशहर अनुसंधान संस्थान के ऑफिसर इंचार्ज डॉ. शिव सिंह बताते हैं कि इस गेहूं में सूखा सहन करने की क्षमता (ड्राट रजिस्टेंस) पैदा की जाती है।
इस बीज को इस तरह से तैयार किया गया है, जो केवल धरती की नमी से ही काम चला लेगा। बोने से पहले एक बार सिंचाई नमी के लिए की जाएगी और एक बार बोने के बाद।
ट्रायल हो चुका है शुरू
मुरादाबाद मंडल में अनुसंधान केंद्र नगीना और कृषि विभाग के कई फार्म हाउस पर इसका ट्रायल चल रहा है। बुलंदशहर के अनुसंधान केंद्र पर एक ट्रायल सफल रहा है। दूसरा ट्रायल अप्रैल में होगा।
तीसरे ट्रायल में भी अगर गेहूं की फसल कम पानी में भी अच्छी होगी, तो इस किस्म को हरी झंडी मिल जाएगी। अभी इन वैरायटी को कोई नाम नहीं दिया गया है केवल कोड नंबर से पहचान होती है।
क्या है ड्रॉट रजिस्टेंस
गेहूं की कई किस्मों की पैदावार अच्छी होती है, लेकिन पानी भी ज्यादा चाहिए होता है। कुछ किस्मों में पैदावार कम होती है, लेकिन यह कम पानी में भी पनप जाती हैं। ड्रॉट रजिस्टेंस पैदा करने के लिए इन दोनों किस्मों के बीच क्रास कराया गया। उससे जो वेरायटी निकली उसमें कम पानी में अच्छी पैदावार देने की क्षमता थी।