जमशेदपुर:
स्कूलों में ड्रॉप आउट रोकने के लिए मिड डे मील योजना धरातल पर उतारी गयी.
योजना के कारण स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी, लेकिन बच्चों को
मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता का अंदाजा महज इससे लगाया जा सकता है कि हर
दिन पांचवीं तक के एक बच्चे के लिए 3 रुपये 51 पैसे और छठी से आठवीं तक के
एक बच्चे के लिए सरकार 5 रुपये 25 पैसे देती है.
वहीं दूसरी ओर सरकारी बाबुओं के एक कप चाय के लिए सरकार 5 रुपये खर्च करती
है. इसके लिए बाकायदा अलग से फंड दी जाती है. इस फंड का इस्तेमाल सरकारी
बाबू अपने तरीके से करते हैं.
प्रभात खबर की ओर से की गयी पड़ताल में यह बात सामने आयी कि शिक्षा विभाग
के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी के एक कप चाय पर जो खर्च आता है, वह भी एक
प्लेट मिड डे मील के खर्च से ज्यादा है. हालांकि मिड डे मील के लिए चावल
अलग से दी जाती है. 3.51 रुपये में दाल, सब्जी के साथ सप्ताह में एक दिन
खीर और बिरयानी देने का प्रावधान है. जबकि यह राशि 1 जुलाई 2013 को बढ़ाने
के बाद है. पहले 3.51 रु की जगह बच्चे को 3.33 रु और छठी से आठवीं तक के
बच्चे को 5.25 की जगह 4.99 रु दी जाती थी.
फैक्ट फाइल (पूर्वी सिंहभूम)
इतने विद्यालय में है मिड डे मील की सुविधा – 2027
पहली से पांचवीं तक मिड डे मील का लाभ लेने वाले बच्चे – 84,727
छठी से आठवीं तक मिड डे मील खाने वाले बच्चों की संख्या- 38,357
पहली से पांचवीं तक प्रति बच्चे के लिए राशि (प्रतिदिन)- 3.51 रुपये
छठी से आठवीं तक प्रति बच्चे के लिए राशि (प्रतिदिन)- 5.25 रुपये
क्या है कंटीजेंसी फंड
सरकार ने कंटीजेंसी फंड बनाया है. इस फंड का इस्तेमाल सरकारी कार्यालय में
बाबुओं के पेट्रोल, कागज, चाय, नाश्ता समेत कई अन्य मदों में खर्च के लिए
किया जाता है. तय किया गया है कि विभाग के कुल बजट का 2 फीसदी फंड
कंटीजेंसी फंड के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा. 2013-2014 में झारखंड
शिक्षा परियोजना की ओर से पूर्वी सिंहभूम जिले को कुल 40 करोड़ रुपये का
फंड एलॉट किया गया. इस फंड का 2 फीसदी यानी 80 लाख रुपये सरकारी बाबू के
चाय, नाश्ता, पेट्रोल, सरकारी खर्च के रूप में किये जायेंगे.
कंटीजेंसी फंड से ही चाय का खर्च निकलता है. इस फंड के लिए कुल फंड का 2
फीसदी राशि खर्च की जाती है. पिछले साल 40 करोड़ रुपये परियोजना को बजट की
गयी थी, इस अनुसार 80 लाख रुपये खर्च करने के लिए मिले थे. इस बार बजट की
राशि करीब 72 करोड़ रुपये पेश किया गया है.
-प्रकाश कुमार, एडीपीओ, झारखंड शिक्षा परियोजना