वर्ल्ड टीबी डे: चार दशक से नहीं आई टीबी की नई दवा

ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) बीमारी से निजात पाने के लिए करीब चार दशक से कोई नई
दवा बाजार में नहीं आई है। इससे न सिर्फ मरीजों की परेशानी, बल्कि
चिकित्सकों की चुनौती भी बढ़ गई है।

बीमारी को लेकर चल रहे शोधों
को देखते हुए चिकित्सकों और विशेषज्ञों ने तीन से चार वर्ष में टीबी की नई
असरकारक दवा बाजार में उपलब्ध होने की उम्मीद जताई है।

अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ.
रणदीप गुलेरिया ने बताया कि टीबी के लिए जिम्मेदार जीवाणुओं की प्रकृति में
बदलाव आया है, लेकिन इसकी दवा में पिछले करीब चार दशक से कोई परिवर्तन
नहीं आया है। पुरानी दवाओं का असर उतना ज्यादा नहीं होता।

पुरानी
दवा न सिर्फ लंबे समय तक खानी पड़ती है, बल्कि उन दवाओं का शरीर पर गलत
प्रभाव भी पड़ता है। ऐसे में नई दवा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नई दवा
के लिए रिसर्च जरूर चल रहा है, लेकिन बाजार में कोई दवा नहीं आई है। उम्मीद
है कि अगले तीन से चार वर्ष में टीबी के लिए असरकारक दवा बाजार में उपलब्ध
हो जाए।

डॉ. गुलेरिया ने कहा कि टीबी मरीज के इलाज के लिए
बेटाकुलिन दवा को स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन अभी यह बाजार में उपलब्ध
नहीं है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी देशों में टीबी के इलाज के लिए नई दवा
पर शोध कार्य चल रहा है। तीन-चार वर्ष में कई नई दवा बाजार में उपलब्ध
होंगी।

उन्होंने बताया कि दिल्ली में टीबी के करीब 50 हजार मरीज हैं। यहां प्रति वर्ष टीबी के हजारों मरीजों की मौत हो जाती है।

वर्ष
2008 में 2632, वर्ष 2009 में 2558, वर्ष 2010 में 3446, वर्ष 2011 में
3968 और वर्ष 2012 में 3496 टीबी मरीजों की मौत हुई थी।� बता दें कि टीबी
मरीजों के लिए सरकार की ओर से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और डॉट्स
केंद्रों पर मरीजों को मुफ्त दवा दी जाती है।

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