दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक और बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह-संस्थापक मेलिंडा गेट्स मानती हैं कि आज का भारत पहले की तुलना में बेहतर है और वह गरीबी उन्मूलन के अपने लक्ष्य के काफी करीब पहुंच चुका है। वह यह भी मानती हंत कि हर भारतीय को आज स्वास्थ्य सेवा मिलती है। पिछले दिनों जब वह दिल्ली आई हुई थीं, तब उनसे विद्या कृष्णन ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं, बातचीत के अंश:
भारत में किन प्रोजेक्ट को लेकर आप बेहद उत्साहित हैं?
उत्साहित होने के लिए बहुत कुछ है। भारत में इंसानी सामर्थ्य काफी है और महसूस होता है कि यह हर दिन बढ़ता जा रहा है। पूरे देश में ऐसे कई बेमिसाल उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि जब लोग अपने और अपने परिवार के बेहतर भविष्य को आकार देने में जुट जाते हैं, तो क्या-क्या हो सकता है। इस तरह ये लोग भारत को बेहतर भविष्य की ओर ले जाने में मदद करते हैं। स्वयं-सेवी समूह ने उन लोगों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है, जिनकी आवाजें पहले बुलंद न थीं। जैसे एचआईवी से पीड़ित सेक्स वर्कर आज एड्स समस्या के समाधान से जुड़े हुए हैं। इसी तरह, कार्यकर्ताओं ने भारत को पोलियो मुक्त देश बनने में मदद पहुंचाई। हर क्षेत्र में हर बच्चे को टीका देने से यह हो पाया। उस मेहनत के लिए धन्यवाद। अब बुनियादी स्वास्थ्य सेवा हर भारतीय को मुहैया है। यहां तक कि देश के दूर-दराज के सबसे गरीब लोगों को भी। गेट्स फाउंडेशन में हमारे सभी काम इस मकसद के साथ चलाए जाते हैं कि सारी जिंदगियां समान हैं और हर शख्स को सेहतमंद और उत्पादक जिंदगी जीने का अधिकार होना चाहिए। पहले की अपेक्षा आज भारत इस लक्ष्य के काफी निकट है।
क्या आप वास्तव में ऐसा सोचती हैं कि साल 2035 आते-आते कोई भी देश गरीब नहीं होगा?
हां, यह हमारी महत्वाकांक्षा है, जो अच्छी चीज है। बिल गेट्स और मैं, दोनों इसे कोरी कल्पना नहीं मानते। यदि धरती पर कोई ऐसी जगह है, जिसने विकास को संभव बनाया है, तो वह भारत है। बीते 60 साल में भारत में प्रति व्यक्ति आय चार गुनी हुई है। ऐसा हो पाया, क्योंकि भारत की आबादी बड़ी और हुनरमंद है, लेकिन यह इसलिए भी है कि जब हम स्वस्थ बच्चों में निवेश करते हैं, तो हम भविष्य के लिए एक उत्पादक श्रम-शक्ति बनाते हैं। यह शक्ति सभी को तरक्की दिलाती है। कई बार राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक तरक्की एक देश के अंदर मौजूद विषमताओं को छिपा लेती है। लेकिन भारत यह दर्शा रहा है कि ऐसा कोई मामला नहीं है। यहां तक कि बिहार और उत्तर प्रदेश के रूझान भी सही दिशा में हैं। हालांकि, वहां अभी और काम बाकी हैं। साल 2012 में बिहार की अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत तक बढ़ी और 2013 में 14 प्रतिशत तक। बिहार और उत्तर प्रदेश में बाल मृत्यु-दर बाकी भारत की तरह तेजी से नीचे जा रही है। ऐसे रूझान हम सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में देख रहे हैं। मैक्सिको और ब्राजील में भी बदलाव दिखेहैं। आमदनी और मानव कल्याण के काम सभी जगह बढ़े हैं। अगर हमने इसे समर्थन देना जारी रखा और संसार के सबसे गरीब लोगों पर खर्च किया, तो हम अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
विदेशी मदद पर निर्भरता का मुद्दा कितनी चिंता की बात है? जब फंड खत्म हो जाता है, तब क्या होता है?
हम सीधे सरकार को पैसे नहीं देते। हम बड़ी समस्याओं से निपटने के लिए उनके साथ जुड़ते हैं। इस तरह की साझेदारी काफी मददगार होती है और कम समय में ही देश का विकास होता है। इससे वे लंबे समय तक विदेशी पैसों पर आश्रित नहीं रहते। दूसरे शब्दों में, आर्थिक मदद किसी देश को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकती है। हमने बोत्सवाना और थाईलैंड में देखा है कि उन्होंने पहले काफी पैसे लिए और अब लगभग न के बराबर लेते हैं। भारत को ही देखिए, यह देश आत्मनिर्भरता के रास्ते पर है। भारत सरकार ने ही पोलियो उन्मूलन के लिए फंडिंग की। केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर बिहार और उत्तर प्रदेश में खर्च किए, ताकि जनता को एक स्वस्थ और बेहतर भविष्य मिल सके। विदेशी मदद इस खर्च का विकल्प नहीं है। इसकी बजाय, यह सरकारों के साथ साझेदारी का रास्ता है, जो बताता है कि कैसे सही तरीके से धन खर्च करना है। आर्थिक सहायता इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि यह उन चीजों में मदद करती है, जो कोई देश अकेले नहीं कर सकता, जैसे कारगर टीके के लिए वैज्ञानिक शोध और टीबी जैसी संक्रामक बीमारी से लड़ने के तरीके। लेकिन अंतत: सभी देशों के सामाजिक कार्यक्रम उन्हीं देशों के सरकारी धन से चलते हैं।
आप परिवार नियोजन में निवेश को कृषि, शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य से कैसे जोड़ती हैं?
यह महत्वपूर्ण है। जब मैं भारत में घूम रही थी और लोगों से इस मसले पर बात कर रही थी कि उन्हें अपने और अपने परिवार की बेहतर जिंदगी के लिए क्या चाहिए, तो औरतों से मैंने सुना कि उन्हें शिक्षा, पोषण, सभी उम्र के लिए स्वास्थ्य सेवा, परिवार नियोजन के उपाय, ये सब कुछ चाहिए। ऐसे में, परिवार नियोजन महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि जब महिलाओं तक सूचनाओं और गर्भनिरोधक उपायों की पहुंच होगी, तब मां और बच्चे, दोनों स्वस्थ रहेंगे। उन्हें बेहतर पोषण और शिक्षा मिल पाएगा। इससे परिवार का ही लाभ नहीं होगा, बल्कि पूरे समाज पर अच्छा असर पड़ेगा।