राज्य का विकास कैसे हो, यह वहां की सरकार की प्रतिबद्धता से जुड़ा होता
है. बिहार विकास के मामले में देश के अन्य राज्यों से पीछे है. लेकिन
पिछले कुछ वर्षो से इसमें बदलाव आया है. बिहार और झारखंड को विकास के लिए
विशेष दरजा दिया जाना चाहिए. बिहार सरकार की यह मांग जायज भी है, क्योंकि
झारखंड अलग होने के बाद बिहार में संसाधन नहीं के बराबर रह गये. इसके एवज
में केंद्र सरकार से बिहार को विशेष आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए थी. लेकिन
इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षो में सीमित संसाधनों के बल पर ही बिहार में
हालात काफी बेहतर हुए हैं.
झारखंड में भी विशेष राज्य का दरजे के लिए अभियान चलाया जा रहा है.
लेकिन झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के कारण हालात और खराब हो गये. जबकि
झारखंड से कम संसाधन होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में विकास बेहतर हुआ,
क्योंकि वहां एक स्थिर सरकार रही. विकास के लिए प्रतिबद्ध लीडरशिप होना
आवश्यक है.
जिन राज्यों में पुख्ता नेतृत्व है, वे बेहतर विकास कर रहे हैं. झारखंड,
बिहार और ओड़िशा में विकास के लिए जरूरी ढांचा विकसित नहीं किया गया. ऐसे
में अन्य विकसित राज्यों के स्तर पर पहुंचने के लिए बिहार-झारखंड को बड़े
पैमाने पर संसाधन की जरूरत है. इसके लिए केंद्रीय मदद बेहद आवश्यक है.
केंद्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन कमेटी ने भी बिहार-झारखंड को पिछड़ा
माना. लेकिन राजनीतिक कारणों से बिहार को विशेष राज्य का दरजा नहीं दिया जा
सका. राज्य में विकास के बावजूद अभी भी कई मानकों पर बिहार राष्ट्रीय स्तर
से काफी नीचे है. प्रति व्यक्ति आय से लेकर सड़क उपलब्धता के मामले में
राज्य काफी पीछे है. राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के लिए भी बिहार को बड़े
पैमाने पर निवेश करना होगा. अगर केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दरजा
दे, तो इस लक्ष्य को हासिल करने की राह आसान हो जायेगी.
जहां तक झारखंड का सवाल है, तो झारखंड को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने
से ज्यादा जरूरी वहां की नेतृत्व क्षमता के अभाव को दूर करना है. अस्थिर
सरकारें भी झारखंड के विकास में बाधक रही हैं. इसलिए झारखंड में सबसे पहले
गवर्नेस और नेतृत्व क्षमता विकसित करने की जरूरत है. इसमें कोई शक नहीं है
कि कई मापदंडों पर झारखंड की स्थिति ठीक नहीं है, फिर भी जब तक राज्य में
स्थिर सरकार और नेतृत्व क्षमता को विकसित नहीं किया जाता, तब तक राज्य का
विकास होना मुश्किल है. विशेष दरजा मिलने के बाद केंद्र सरकार से कई
रियायतें मिलती हैं, लेकिन उन रियायतों का फायदा उठाने के लिए नेतृत्व
क्षमता और राजनीतिक स्थिरता जरूरी होता है, जिसका अभाव झारखंड गठन के समय
से ही रहा है.
मेरे ख्याल से बिहार को कुछ बुनियादी क्षेत्रों के विकास पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
ये हैं- सड़क, बिजली, कृषि, सेवा क्षेत्र और शिक्षा. इन बुनियादी
क्षेत्रों का विकास होने से राज्य की तकदीर बदल सकती है. बिहार में सड़कों
की स्थिति सुधरी है, लेकिन अभी ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाना
होगा. ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी सड़कें होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था
मजबूतहोगी. बिजली के मामले में राज्य काफी पीछे है. बिहार प्रति व्यक्ति
बिजली खपत के मामले में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे है. नये
पावर प्लांट लगाने की जरूरत है. कई निजी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश
करने की इच्छुक हैं. बिना बिजली की उपलब्धता के पूंजीनिवेश और उद्योग लगाना
संभव नहीं है. इसके लिए केंद्र सरकार को भी कोशिश करनी होगी, ताकि बिहार
में पूंजी निवेश का बेहतर माहौल बन सके. अगर बिहार में निवेश करनेवाली
कंपनियों को विशेष रियायतें मिले, तो राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश की
संभावना है. इससे राज्य का औद्योगिक विकास होगा, लेकिन यह बिना केंद्र की
सहायता से संभव नहीं है.
शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है, लेकिन राज्य में उच्च शिक्षा का
स्तर बढ़ाना सरकार के सामने आज भी सबसे बड़ी चुनौती है. बिहार की
अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है, लेकिन पर्याप्त सिंचाई सुविधा न होने
के कारण उत्पादन नहीं बढ़ पाया है. कई राज्य आज आइटी के मामले में काफी आगे
निकल चुके हैं, लेकिन बिहार में आइटी सेक्टर नाम की कोई चीज नहीं है. इस
सेक्टर के विकास से रोजगार के नये अवसर सामने आयेंगे. अगर सरकार इन
क्षेत्रों के विकास पर ध्यान दे, तो बिहार विकास के मामले में काफी आगे
निकल सकता है. पहले के मुकाबले अब पूंजी की समस्या नहीं है. कई निजी
कंपनियां इंफ्रास्ट्रचर के विकास के लिए पूंजी निवेश करने के लिए तैयार
हैं, लेकिन विकास के लिए एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए.
झारखंड को हक मिलना ही चाहिए
जनार्दन प्रसाद, भाकपा माले के राज्य सचिव
विशेष राज्य के दरजे की मांग का हमने समर्थन किया है. पहले से भी हमारी
पार्टी इस बात को उठाती रही है. झारखंड की प्राकृतिक संपदा का दोहन केंद्र
की योजनाओं और कॉरपोरेट द्वारा होता है. राज्य को उसका हिस्सा मिलना चाहिए.
बाजार दर के मुताबिक मिलना चाहिए. यहां की संपदा पर यहां की जनता का हक
होना चाहिए. इसका विशेष राज्य से भी ज्यादा महत्व है. यह राज्य का अपना
स्वाभाविक हक बनता है. पिछड़ा राज्य होने के कारण झारखंड को विशेष पैकेज की
जरूरत है.
यह विडंबना ही है कि रेलवे का इतना बड़ा कारोबार है, पर यहां रेलवे का
एक जोनल ऑफिस भी यहां नहीं है. डीवीसी का सारा काम यहां होता है, पर
मुख्यालय कोलकाता में है. सेल का बड़ा कारोबार झारखंड के साथ है, पर सारा
संचालन बाहर होता है. कॉरपोरेट के योगदान का मामला हो या केंद्रीय
संस्थानों का, जो झारखंड को मिलना चाहिए वह नहीं मिला.
झारखंड पिछड़े राज्य की श्रेणी में है. कृषि पर आधारित राज्य है. जमीन
की बहुलता है और नदी नालों की प्रचुरता है. आबादी का बड़ा हिस्सा ग्रामीण
क्षेत्र में है. झारखंड का विकास करना है, तो कृषि को प्राथमिकता देकर
केंद्रीय पैकेज मिलना चाहिए. हर खेत में पानी कैसे पहुंचायेंगे. मुफ्त
बिजली कृषि को कैसे देंगे. वैकल्पिक खेती डेवलप कैसे करेंगे.
स्पेशल स्टेट्स में ये सारे पहलू शामिल हैं. झारखंड प्राकृतिक रूप से
धनी राज्य है, पर यहां पलायन है, बेरोजगारी है. झारखंड पर खास ध्यान देने
की जरूरत है. इसकेबिनाझारखंड को देश के मानचित्र में उचित स्थान नहीं मिल
पायेगा. यह भारत का सबसे धनी संपन्न राज्य यहां की जनता के लिहाज से भी
होना चाहिए. भले ही यह धनी राज्य है पर यहां की जनता बदहाल है. यह एक
विरोधाभास है. विशेष राज्य के पीछे मूल बात यही है.
विशेष राज्य को लेकर बंद का आयोजन किया गया है. पर जो पार्टियां आज मुखर
हो रही हैं, उनकी पूर्व में इन मुद्दों को लेकर ईमानदारी नहीं रही है.
लोकतंत्र में बंद करने का अधिकार है, कर सकते हैं, पर मुद्दों पर उनकी
ऑनेस्टी नहीं रही है. आजसू सत्ता में रही. वह चाहती तो पहले प्रस्ताव ला
सकती थी. पर उसने ऐसा नहीं किया. अब विशेष राज्य की मांग कर रही है.
बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. उस समय केंद्र व राज्य
दोनों में बीजेपी की सरकार थी.
जिस समय वह सत्ता में थे, तब कहां थे. तब क्यों नहीं विशेष राज्य की
मांग की थी. तब आसानी से मिल सकता था. बाबूलाल सांसद रहे, पर आजतक कभी
विशेष राज्य को लेकर सदन में आवाज नहीं उठायी. संसद में उनके जरिये दबाव बन
सकता था, पर वहां भूमिका नहीं निभायी. पर अब स्वांग रच रहे हैं. इन
मुद्दों को लेकर इन दोनों पार्टियों ने कभी ईमानदारी नहीं दिखायी है.
सीमांध्र को लेकर जो मसला बना, विशेष राज्य की मांग उठनी लगी, झारखंड
के सांसदों द्वारा संसद में उसी समय दबाव बनाना चाहिए था. इन्हें झारखंड को
लेकर गोलबंद होना चाहिए था. दबाव बनाते तब यह ज्यादा लाभदायक होता. जब काम
करना होता है तब ये काम नहीं करते, अब फील्ड में बड़ी बात करते हैं. जनता
को कुछ और जहां कहना है, वहां कुछ न कहना भ्रम में डालनेवाली बात है.