झारखंड बने 13 साल से अधिक हो चुके हैं, पर यह आज भी अति पिछड़े राज्यों
की गिनती में आता है. किसी भी राज्य के विकास में केंद्रीय सहायता का
विशेष योगदान होता है. झारखंड में केंद्रीय सहायता की अपर्याप्त मात्र की
वजह से आधारभूत संरचनाओं के निर्माण को गति नहीं मिल पायी. झारखंड के
निर्माण के समय भी राज्य में आधारभूत संरचनाओं की अत्यधिक कमी थी.
साथ ही राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार निर्माण के मामले में भी अत्यंत
कमजोर था. ऐसे में केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि वह कमजोर व पिछड़े
राज्यों का हाथ पकड़े और उन्हें विशेष सहायता देकर विकसित राज्यों के बराबर
में लेकर आये. जिस तरह से संविधान में कमजोर वर्गो के आरक्षण का प्रावधान
किया गया है, वैसे ही सरकार द्वारा पिछड़े राज्यों को विशेष आर्थिक सहायता
का प्रावधान किया गया है. यह सच है कि झारखंड खनिज संपदा व प्राकृतिक
संसाधनों से भरपूर है.
परंतु उन संसाधनों के समुचित दोहन के लिए भी पर्याप्त आर्थिक व आधारभूत
संरचनाएं चाहिए, जिससे विकास के पहिये को गति दी जा सके . झारखंड में खनिज
संपदा के सहारे विकास संभव है, अगर राज्य प्राथमिक गतिविधियों से आगे चल कर
उस संपदा में मूल्य संवर्धन व प्रसंस्करण के क्षेत्र में बढ़े. इस सबके
लिए भी भारी उद्योगों की स्थापना करनी होगी. राज्य में निजी क्षेत्र में
उद्योग स्थापित करने में अपार अड़चनें हैं. ऐसे में केवल विशेष केंद्रीय
मदद के माध्यम से ही यह संभव है.
पिछले 13 वर्षो में एक भी भारी उद्योग झारखंड को नहीं दिया गया. जो
उद्योग चल रहे थे, वे भी संसाधनों के अभाव में मर रहे हैं. राज्य से भारी
मात्र में पलायन हो रहा है. इस सबसे राज्य का पिछड़ापन और बढ़ेगा ही. अत:
राज्य को विशेष राज्य का दरजा देकर आर्थिक विकास के चक्र को गति देनी होगी.
राज्य विशेष राज्य के दरजे के लिए सभी मापदंड पूरा करता है. फिर केंद्र
द्वारा सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. इसकी मुख्य वजह शायद राज्य में
राजनीतिक अस्थिरता भी है. राज्य के द्वारा पहले कभी भी विशेष राज्य की मांग
पर जोर नहीं दिया गया. यही वजह है कि केंद्र की सरकार का सौतेला व्यवहार
और बढ़ता गया.
एक उदाहरण से इसे समङों- टाटा मोटर्स तो कई दशकों से राज्य में वाहन
उत्पादन कर रही है, केवल करों में छूट के कारण नया कारखाना उत्तराखंड में
स्थापित करती है. अगर यह छूट अपने झारखंड में मिल जाती, तो कोई कारण नहीं
था कि कंपनी उत्तराखंड जाती. इस तरह के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं.
विशेष राज्य के दरजे से कर संग्रहण में अधिक हिस्सेदारी राज्य के आर्थिक
संसाधनों की कमी को पूरा करती. आज राज्य को विनिवेश के लिए उधार पर निर्भर
होना पड़ रहा है. राज्य इस स्थिति से बच सकता था. दूसरे पक्षपातपूर्ण
स्थिति का उदाहरण अगर देखें, तो लौह आधारित मूल्य संवर्धित उद्योगों का ऐसे
राज्यों में स्थापित किया जाता है, जहां लौह उद्योग है ही नहीं.
उदाहरण के तौर पर रेल पहिया कारखाना उत्तरप्रदेश में स्थापित होना.
आयातित तेल पर आधारित रिफाइनरी का पंजाब या उत्तर प्रदेशमें लगाया जाना.
अगर राज्य को विशेष दरजा प्राप्त होता है और राज्य सरकार साथ ही उद्योगों,
शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष प्रयत्न करती है, तो झारखंड बहुत
कम समय में विकास की गति पकड़ सकता है. राज्य की जनता को अपने इस
विशेषाधिकार के लिए लड़ना होगा और आगे बढ़ कर राजनीतिक अस्थिरता को खत्म
करने की पहल करनी होगी.
विशेष राज्य का दरजा झारखंड की अनिवार्यता
अर्जुन मुंडा, नेता प्रतिपक्ष
झारखंड जिन सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है, उससे केंद्र अवगत है
और यदि यह कहा जाये कि झारखंड की समस्याएं केंद्र सरकार की लंबी
सामाजिक-आर्थिक विकास मूलक उपेक्षा का परिणाम है तो अतिरेक नहीं होगा.
मैंने अपने विगत 28 महीने के मुख्यमंत्री कार्यकाल में राज्य की सारी
समस्याओं के सहभागी समाधान के लिये केंद्र से पुरजोर वकालत की.
प्रधानमंत्री को बार-बार लिखा, एनडीसी में इस विषय को उठाया. राज्य को
विशेष राज्य का दरजा शीघ्र दिया जाये, इसके लिए सभी सामाजिक-आर्थिक
मापदंडों को केंद्र के समक्ष रखा.
इस प्रसंग में क्रमश: एनडीसी की बैठक 22 अक्तूबर, 2011 एवं 27 दिसंबर,
2012 की चर्चा प्रासंगिक है. मैंने कहा ‘‘विकास के महत्वपूर्ण मानकों का
यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाये, तो झारखंड का अधिकांश मानक अभी
भी ऐसे राज्यों से पीछे हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा विशेष राज्य
घोषित किया गया है. झारखंड के पिछड़ेपन के मद्देनजर तथा उग्रवादी
गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह आवश्यक हो गया है कि इस
राज्य को विशेष राज्य का दरजा दिया जाये. मैं राष्ट्रीय विकास परिषद की इस
बैठक में झारखंड को विशेष राज्य का दरजा देने की मांग करता हूं.’’ दिसंबर,
2012 की बैठक में भी मैंने कहा ‘‘ झारखंड विशेष राज्य की सभी अर्हता पूरी
करता है. अत: राज्य की जनता की ओर से मेरा अनुरोध है कि झारखंड को विशेष
राज्य का दरजा दिया जाये और इसके लिये विशेष पैकेज उपलब्ध कराया जाये.’’
चौथी पंचवर्षीय योजना के पहले मिलनेवाली केंद्रीय सहायता का कोई तय
फॉरमूला नहीं था. 1969 में गाडगिल फॉरमूला को केंद्रीय सहायता नीति के रूप
में स्वीकार किया गया. इसे क्रमश: 1980, 1990 और 1991 में संशोधित किया
गया, जिसे अंतिम रूप से गाडगिल मुखर्जी फॉरमूला कहा जाता है. इस बात से सभी
अवगत हैं कि विशेष दरजा के लिए पहाड़ी और कठिन पहुंच के क्षेत्र, जनसंख्या
का कम घनत्व, जनजातीय आबादी की अधिकता, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन,
पड़ोसी देशों से सीमा का मिलना आधार माना गया है, जिसे झारखंड पूरा करता
है.
मैंने प्रधानमंत्री को प्रेषित पत्र में झारखंड की पूरी स्थिति से अवगत
कराया है. यह भी कहा कि झारखंड के प्राकृतिक खनिज संसाधनों पर केंद्र का
नियंत्रण है, केंद्र ही अधिशुल्क की दरों एवं कुल लगान तय करता है. वित्त
आयोग की कतिपय सिफारिशों के बावजूद मूल्य आधारित रॉयल्टी का भुगतान नहीं
किया जाता है. वर्तमान प्रभावी दर 13 प्रतिशत को बढ़ा कर कम से कम 20
प्रतिशत करना चाहिए. झारखंड की खनिज संपदा के दोहन से केंद्रीय लोक उद्यमों
को लाभ हुआ है, पर इससे झारखंड के नागरिकों को कोई विशेष लाभ नहीं मिला
है. इससे स्थानीय रोजगार सृजन भी नहीं हुए. ढुलाई दरों को एकसमानकरने की
नीति से भी राज्य को नुकसान हुआ. वहीं अन्य राज्यों को लाभ हुआ. केंद्र की
इस भेदभाव पूर्ण नीति से झारखंड को काफी हानि हुई है.
इतना ही नहीं, यह भी कहा गया कि झारखंड जहां अपनी खनिज संपदा में अन्य
राज्यों को हिस्सा देकर उनके विकास में योगदान दे रहा है, वहीं इसे
पर्यावरण क्षरण के प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु कदम उठाना पड़ता है. दोहन के
लिए परिवहन, अधिसंरचनाओं, विस्थापन-पुनर्वास, वैकल्पिक रोजगार, खनन
क्षेत्रों में अन्य सेवाएं-सुविधाओं की समस्या से जूझना पड़ता है.
संविधान के अनुच्छेद-275 का आशय है कि पिछड़े राज्यों को सहायता अनुदान
मिले. रीयल इनकम एप्रोच के बदले एसजीडीपी एप्रोच के लागू करने से ऐसी
परिस्थिति बनी है कि प्रमुख रूप से जनजातीय आबादी वाले अनुसूचित क्षेत्रों
का उनका अपेक्षित हिस्सा नहीं मिल पा रहा है. 2007-08 के भारत सरकार की
सांख्यिकी के अनुसार मात्र कोयला और आयरन ओर के खनन के कारण झारखंड के
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय में 8486 रुपये जोड़े गये. यह राज्य के
निवासियों की वास्तविक आर्थिक स्थिति का निरूपण नहीं है. पत्र में स्थायी
आवास, पेय जलापूर्ति, ऊर्जा, स्वच्छता, पारिवारिक आर्थिक दशा का विस्तृत
ब्योरा भी दिया गया एवं राज्य को विशेष दरजे की मांग की गयी.
भारत सरकार द्वारा विशेष दरजा प्राप्त राज्यों को 30 प्रतिशत राशि दे दी
जाती है, शेष 70 प्रतिशत राशि में अन्य सभी राज्यों को दिया जाता है. जहां
विशेष दरजा प्राप्त राज्य को 90 प्रतिशत ग्रांट और 10 प्रतिशत लोन दिया
जाता है, वहीं अन्य को 70 प्रतिशत लोन एवं 30 प्रतिशत ग्रांट मिलता है. जिन
राज्यों को विशेष दरजा प्राप्त नहीं है, उनके मामले में जनसंख्या को 60
प्रतिशत आधार, आय को 25 प्रतिशत, शेष वितरण का आधार, प्रति व्यक्ति आय व
वित्तीय प्रबंधन को आधार माना गया है. राज्य इन मानकों पर खरा उतरा है.
11वीं पंचवर्षीय योजनावधि में योजनागत परिव्यय 89 प्रतिशत रहा है तथा
अन्य वित्तीय मानकों में राज्य का प्रबंधन संतुलित रहा है. अपने संसाधन पर
राज्य ने योजनागत निवेश को निरंतर बढ़ाया है.
राज्य के साथ केंद्र के भेदभाव एवं आर्थिक असंतुलित व्यवहार की फेहरिश्त
लंबी होगी. राज्य की जनता समस्याओं से रूबरू है. हमने राज्य की
प्राथमिकताओं को प्रमुखता से रेखांकित कर हर वित्तीय-आर्थिक मंच पर रखा.
जनजातीय आबादी एवं उनकी सामाजिक-आर्थिक दशा, युवा शक्ति एवं शिक्षा-रोजगार,
ढांचागत विकास, कृषि एवं संवद्घ सेवाएं पर्यावरण संतुलन एवं विकास,
सामाजिक सेवाएं एवं कल्याण, उद्यमिता विकास तथा उद्योग, समाज कल्याण,
स्वास्थ्य, नगरीय समस्याएं आदि सभी ज्वलंत प्रश्नों की ओर ध्यानाकृष्ट
कराते हुए विशेष राज्य के दरजे की मांग की. मेरी मांग राजनीतिक लाभ नहीं
अपितु राज्य के दूरगामी हित एवं समस्याओं के समाधान के लिए थी.
राज्य की समस्याओं से केंद्र अवगत है, पर नजर अंदाज करने की प्रवृत्ति
रही है. लाभ-हानि के तराजू पर राज्यहित को तौलना और संसाधनों के दोहन के
बावजूद अतार्किक आधार पर विशेष राज्य के प्रश्न को झुठलाना झारखंड की घोर
उपेक्षा है. समय रहते केंद्र सरकार को 11 राज्यों एवं हाल में सीमांघ्र के
मामले को देखते हुए राज्य की समस्याओं के एकमुश्त समाधान हेतु झारखंड को
विशेष राज्य का दरजा देना अब समय की अनिवार्यता है.