भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी इन दिनों देश के
विभिन्न भागों का दौरा करके अपने ज्ञान, गुण, विद्वता और गौरव का बखान कर
रहे हैं। पिछले दिनों एक सभा में उन्होंने कहा, मैं तो अकेला हूं, फिर
किसके लिए भ्रष्टाचार करूंगा? जैसे भ्रष्टाचार कोई परिवार का गुण हो। एक
समय राजनीति में किन्नरों का प्रवेश भी इसी तर्क के साथ हुआ था कि उनका कोई
परिवार नहीं होता, इसलिए उनके भ्रष्ट होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
लेकिन अगर यही सत्य होता, तो राष्ट्रीय राजनीति में किन्नरों की पैठ आज
बहुत अधिक हो गई होती। लेकिन ऐसा है नहीं।
इस देश की तीन दिग्गज
राजनीतिक महिलाएं, मायावती, जयललिता और ममता एकाकी हैं और तीनों
मुख्यमंत्री पद तक पहुंची हैं। मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की
मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल और जयललिता तमिलनाडु
की वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। जयललिता और मायावती पर मुख्यमंत्री पद पर
रहने के दौरान पद का दुरुपयोग एवं अनुचित आय अर्जित करने के आरोप लगे हैं,
जिनके मामले सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचे हैं और सीबीआई जांच भी कर रही है।
मायावती के मामले में सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी थी, पर उसे भी चुनौती दी
जा रही है। शीर्ष अदालत का कहना है कि मामला बंद नहीं होना चाहिए।
दूसरी
ओर, महात्मा गांधी का उदाहरण हमारे सामने है। वह तो परिवार वाले व्यक्ति
थे, लेकिन सारी दुनिया में उनकी प्रशस्ति गाई जाती है। वह सादगी के प्रतीक
होने के साथ ही विचारों के धनी और भावी व्यवस्थाओं के नायक भी कहे जाते
हैं। लेकिन पारिवारिक व्यक्ति होने के कारण उन पर कभी भ्रष्टाचरण या अनैतिक
तौर-तरीके अपनाने का आरोप नहीं लगा।
इसी तरह अपने देश में कई ऐसे
विरक्त भी हुए हैं, जिन्होंने भले ही संन्यासी का जीवन जीया, लेकिन उनके
आश्रमों में करोड़ों के स्वर्ण भंडार और सोने के सिंहासन मिले। मूल
शंकराचार्य तो एक ही बताए जाते हैं, लेकिन अब देश में कई अन्य भी अपने को
शंकराचार्य कहकर गौरवान्वित अनुभव करते हैं। वे भी स्वर्ण सिंहासनों पर
बैठते हैं। इन स्थानों के लिए विवाद भी अदालतों तक पहुंचते हैं। महात्मा
बुद्ध तो राजपरिवार के लड़के थे, जिनकी शादी हुई थी और बच्चा भी था। लेकिन
अंत में उन्होंने इस संसार को देखकर इसमें व्याप्त मृत्यु, बीमारी, असहायता
आदि से दुखी होकर राज परिवार और संपत्ति को छोड़कर अलग रास्ता चुना।
यह
नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी जिस परिवार को भ्रष्टाचार का मूल बता
रहे हैं, आज वैयक्तिक लालसा के कारण वही टूट के कगार पर है। अत्यधिक
भौतिकतवादी जीवन से मौजूदा दौर में जो दो संस्थाएं सर्वाधिक प्रभावित हो
रही हैं, उनमें से एक है, परिवार और दूसरा है, विवाह।
सामाजिक
अध्ययन बताता है कि किसी एक देश में नहीं, बल्कि दुनिया भर में अनुचित लाभ
और भ्रष्टाचार की प्रवृत्तियां निरंतर बढ़ रही हैं, भले ही सामाजिक और
राजनीतिक व्यवस्थाएं कुछ भी हों। चीन जैसे साम्यवादी कहे जाने वाले देश में
भी बड़े अधिकारी को भ्रष्टाचार के लिए दंडित करना पड़ रहा है। हम इस
मानवीय प्रवृत्ति को न तो पूरी तरह समझ पाए हैं और न ही इसपर नियंत्रण का
कोई रास्ता तलाश पाए हैं।
वस्तुतः नरेंद्र मोदी का यह कथन कई भ्रमों
को जन्म देता है। अपना कोई परिवार न होने की बात बताकर वह आखिर क्या कह
रहे हैं? वह कई बार कह चुके हैं कि चाय की दुकान में वह अपने पिता का हाथ
बंटाते थे। अपनी मां से आशीर्वाद लेने के उनके फोटो दिखाई पड़े हैं। क्या
अपने माता-पिता के साथ उनका कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं रहा? क्या सिर्फ
शादीशुदा और बाल-बच्चेदार होने को ही परिवार मानेंगे?
फिर जिस
भ्रष्टाचार की नरेंद्र मोदी बात कर रहे हैं, वह केवल रुपये-पैसे का ही नहीं
होता, वह व्यक्तित्व में भी दिखता है। कई बार वह विवादों में घिरे हैं,
लेकिन कभी उन्होंने अपनी कमी नहीं स्वीकारी। इसे क्या कहेंगे? उल्टे अपने
बारे में यही प्रचार करते हैं कि बहुत छोटी जगह से वह बड़ी जगह पर पहुंचे
हैं और उन्हीं के प्रयासों से गुजरात विकसित हुआ है। चुनावी सभाओं में खुद
को ईमानदार बताकर भी वह आत्मप्रचार ही कर रहे हैं।