चीनी को लेकर खाद्य व कृषि मंत्रालय में तनातनी, फंसा राहत पैकेज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नकदी संकट और घाटे से जूझ रहे चीनी उद्योग को एक और राहत पैकेज देने को लेकर कृषि और खाद्य मंत्रालय के बीच तनातनी के चलते आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) में फैसला नहीं हो सका। फैसला कैबिनेट की अगली बैठक के लिए टाल दिया गया है।

खाद्य मंत्रालय ने मंत्रिसमूह (जीओएम) की सिफारिशों के विपरीत कैबिनेट नोट तैयार किया था। इस पर कृषि मंत्रालय ने कड़ी टिप्पणी की थी। संबंधित मंत्रालयों के सचिवों की समिति बुधवार को इस पर विचार कर बीच का रास्ता सुझाएगी।

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खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने बैठक के बाद बताया कि उनके मंत्रालय ने कैबिनेट नोट में कच्ची चीनी पर 2,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से निर्यात सब्सिडी देने का प्रस्ताव तैयार किया था। चीनी उद्योग की खराब हालत पर विचार करने के लिए गठित जीओएम ने 3,500 रुपये प्रति टन की सिफारिश की थी। कृषि मंत्रालय ने भी इसी पर अपनी मुहर लगाई है।

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जीओएम के अध्यक्ष कृषि मंत्री शरद पवार थे। इसी वजह से खाद्य मंत्रालय के उक्त कैबिनेट नोट पर कृषि मंत्रालय ने कड़ी टिप्पणी भी की थी। सूत्रों के मुताबिक बैठक में भी खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव पर आपत्ति जताई गई। जीओएम में पवार के अतिरिक्त वित्तमंत्री पी चिदंबरम, उद्योग व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और खाद्य मंत्री केवी थॉमस सदस्य थे।

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जीओएम ने अपनी सिफारिश घरेलू कच्ची चीनी की उत्पादन लागत 26,500 रुपये प्रति टन के आधार पर दी थी। यह कीमत अंतरराष्ट्रीय मूल्य के मुकाबले अधिक है। सीसीईए में विवाद की वजह से फैसला अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया। बताया गया कि बैठक में वाणिच्य मंत्री आनंद शर्मा के उपस्थित न होने की वजह से फैसला नहीं हो पाया। शर्मा अफ्रीका के दौरे पर हैं। निर्यात सब्सिडी अगले दो सालों के लिए पूर्व में घोषित 40 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात पर दी जानी है। सरकार इसके पहले भी चीनी उद्योग को 6,600 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज देने का एलान कर चुकी है। चीनी मिलों को यह कर्ज पैकेज किसानों को गन्ना बकाये का भुगतान करने के लिए दिया गया है।

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