अपने देश में चिकित्सा पर्यटन यानी सस्ती एवं बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं एवं
सेवाओं के लिए देश के ही भीतर अथवा दूसरे देशों में की जाने वाली यात्रा,
पिछले कुछ वर्षों में एक प्रमुख पर्यटन उत्पाद के रूप में उभरी है। इसकी
वजह यहां की भौगोलिक विविधता और समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और सस्ती स्वास्थ्य
सेवाएं हैं, जिस कारण यहां आने वाला मरीज इलाज कराने के साथ-साथ आस-पास के
इलाकों में घूमकर स्वास्थ्य लाभ भी करता है। हालांकि भारत को सिंगापुर,
मलयेशिया, थाइलैंड जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है, पर यहां
इस पर्यटन के विकास की संभावनाएं तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। भारत सरकार
के पर्यटन मंत्रालय की वर्ष 2012-13 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के
अनुसार, नवोन्नत चिकित्सा सुविधाएं, बेहतर डॉक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मी,
उत्कृष्ट नर्सिंग सेवाएं अपेक्षाकृत कम प्रतीक्षा समय एवं आयुर्वेद व योग
जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां, जो एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ
मिलकर समग्र निरोगिता प्राप्त करने में सहायक होती हैं, कुछ ऐसे कारण हैं,
जो भारत को एक पसंदीदा चिकित्सा पर्यटन गंतव्य बनाते हैं।
गिरते
रुपये ने भले ही भारतीय अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रखा है, परंतु
चिकित्सा पर्यटन के लिए यह शुभ संकेत बनकर उभरा है, क्योंकि रुपये की गिरती
कीमत ने देश में पहले से ही सस्ती चिकित्सा सुविधाओं को विदेशियों के लिए
और भी सस्ता बना दिया है। अभी देश में चिकित्सा पर्यटन उद्योग लगभग 7,500
करोड़ रुपये का है, जिसके 2015 तक बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद
है। भारत में चिकित्सीय सेवाओं के सस्ते होने का अंदाजा इसी से लगाया जा
सकता है कि दिल की बाइपास सर्जरी के लिए अमेरिका में लगभग 1,50,000 डॉलर
खर्च करने पड़ते हैं, वहीं भारत में इसका खर्च सिर्फ 5,000 से 6,000 डॉलर
आता है। इसी तरह कूल्हे बदलने के लिए अमेरिका में 50,000 डॉलर तक खर्चने
पड़ते हैं, जबकि अपने देश में सिर्फ 7,000 डॉलर। इसी तरह दांतों के रोपण,
एंजियोप्लास्टी, लेसिक जैसी चिकित्सीय सुविधाएं अन्य देशों के मुकाबले यहां
सस्ती हैं।
चिकित्सा पर्यटन के माध्यम से भारत सरकार बहुमूल्य
विदेशी मुद्रा अर्जित कर अपना व्यापार घाटा नियंत्रित कर सकती है। इससे नए
रोजगार का सृजन भी किया जा सकता है। केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने
चिकत्सीय सेवाओं के लिए यहां आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष ‘चिकित्सा
वीजा’ की व्यवस्था की है। यहां आने वाले चिकित्सा पर्यटकों में विकसित
देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका, आदि से लेकर पड़ोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान,
बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देशों के पर्यटक भी शामिल हैं।
भले ही
अपने देश में चिकित्सा पर्यटकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, परंतु इसका
स्याह पक्ष भी है। आधारभूत सुविधाओं के अभाव में यहां चिकित्सा पर्यटन का
विकास उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है, जितना होना चाहिए। नीतिगत प्रश्न भी
इसके विकास में बाधा डाल रहे हैं। इसके अतिरिक्त, देश में बड़ी जनसंख्या तक
आज भी मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। चिकित्सा को
उद्योग बना देने से इस पेशे में आंतरिक रूप से निहित सेवा भाव के खत्म हो
जाने की आशंका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।
मानव अंगों की
तस्करी इस उद्योग का एकऔर स्याह पक्ष है। विकसित देशों में मानव अंग आसानी
से उपलब्ध नहीं हैं, जबकि भारत जैसे गरीब देशों में पैसों के लालच अथवा
ताकत के प्रभाव का प्रयोग कर गरीबों के उत्पीड़न की आशंका बराबर बनी रहती
है। इतना ही नहीं, चिकित्सा पर्यटकों की बेहतर क्रय क्षमता सरकारी
अस्पतालों से बेहतर डॉक्टरों को दूर कर देगी, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर
लोगों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी। पर्यटन का यह क्षेत्र
निजी अस्पतालों को बढ़ावा देगा, जिससे आने वाले समय में चिकित्सा के
क्षेत्र में पहले से ही मौजूद विसंगतियां और बढ़ेंगी। चिकित्सा पर्यटन से
हुए फायदे का लाभ आम भारतीय को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में
किया जा सकता है, लेकिन जरूरत इसके लिए दीर्घकालीन नीति बनाने की है। क्या
सरकार इसके लिए तैयार है?