फायदा या नुकसान: घरेलू बचत का सिकुड़ता दायरा चिंताजनक

आघात – केंद्र ने अप्रैल 2013 से डाकघर बचत तथा पब्लिक प्रॉविडेंट फंड जैसी बचत योजनाओं में देय ब्याज में 0.10 फीसदी कर दी।

हाल ही कर्मचारी भविष्य निधि फंड में 0.25 की वृद्धि की गई है जो
निम्न और मध्यवर्गीय नौकरीपेशा वर्ग के लिए मामूली राहत वाली बात कही जा
सकती है। भारतीय समाज के ये दो वर्ग ऐसे होते हैं जो अपने जीवन के
महत्वपूर्ण कामों के लिए पीएफ और घरेलू बचत योजनाओं पर ज्यादा निर्भर होते
हैं। लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति और अन्य कारणों से देश में घरेलू बचत का
आंकड़ा भी सिकुड़ता जा रहा है।

घरेलू बचत संबंधी केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के ताजा आंकड़े
चिंताजनक हैं। वित्त वर्ष 2012-13 में सकल घरेलू बचत जीडीपी के 29 फीसदी के
स्तर पर आ गई है। यह वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान जीडीपी की 30.8 फीसदी
थी, जबकि 2007-08 के दौरान जीडीपी की 36.8 फीसदी।

देश की कुल बचत में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाली घरेलू बचत का
लगातार गिरना संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है। भारतीय रिजर्व बैंक
की रिपोर्ट 2012-13 में कहा गया कि महंगाई के लगातार ऊंचे स्तर पर बने
रहने से लोगों की घरेलू बचत घट गई है।

साथ ही, वैश्वीकरण और बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति के वर्तमान दौर में
भारतीय परिवारों द्वारा क्षमता से ज्यादा खर्च, कर्ज लेने की बढ़ती
प्रवृत्ति, क्रेडिट कार्ड के अधिक उपयोग और बचत योजनाओं में ब्याज की कमाई
का आकर्षण कम हो जाने के कारण घरेलू बचत घटती गई है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने घरेलू बचत को लेकर जो
सर्वेक्षण किया है, उसमें बताया गया है कि इस समय देश के 22.7 करोड़
परिवारों में से केवल 2.45 करोड़ परिवार ही शेयर, म्यूचुअल फंड और
डेरिवेटिव्स में निवेश करते हैं।

पिछले छह वर्षों में जहां जमीन, मकान, सोने-चांदी जैसी परिसंपत्तियों
में निवेश ने जोर पकड़ा है, वहीं बैंक जमा, बांड, म्यूचुअल फंड, शेयर, बीमा
और पेंशन कोष जैसी वित्तीय योजनाओं में निवेश से लोग पीछे हटने लगे हैं।
घरेलू बचत में भारी गिरावट के कारण पूंजी बाजार और शेयरों के लिए निकलने
वाली पूंजी का हिस्सा कम हुआ है।

देश में बचत संबंधी नया परिदृश्य बता रहा है कि वित्तीय योजनाओं में अब
घरेलू बचतों के योगदान में भारी कमी से उत्पादक क्षेत्रों में पूंजी नहीं आ
पा रही है, जिससे पूंजीगत व्यय चक्र और जीडीपी वृद्धि दर, दोनों पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। देश में घरेलू बचत कम होने का कारण यह भी है
कि सरकार घरेलू बचत योजनाओं को प्रोत्साहन नहीं दे रही।

केंद्र सरकार ने अप्रैल 2013 से डाकघर बचत तथा पब्लिक प्रॉविडेंट फंड
जैसी बचत योजनाओं में देय ब्याज में 0.10 फीसदी की कटौती की है। इसी तरह
वर्ष 2013-14 के बजट से निम्न एवं मध्यवर्ग के करोड़ों परिवारों को यह
अपेक्षा थी कि वित्त मंत्री घरेलू बचत बढ़ाने के लिए बचत योजनाओं पर ब्याज
दरों में वृद्धि करेंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

इस बजट में दो से पांच लाख रुपये की आय वाले करदाताओं को 2,000 रुपये की
टैक्स छूट देने का प्रावधान किया गया है। देश केकुल आयकरदाताओं के करीब
89 फीसदी इसी दायरे में आते हैं। देश में घरेलू बचत घटने से उन तमाम छोटे
निवेशकों और बचतकर्ताओं का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन चरमरा रहा है। अब समय आ
गया है कि घरेलू अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए घरेलू बचत को प्रोत्साहित
किया जाए।

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