केलकर रिपोर्ट: पेट्रोलियम नियामक डीजीएच ने जताई कड़ी आपत्ति

तेल खोज व उत्खनन क्षेत्र के विनियामक डीजीएच ने
कंपनियों के साथ अनुबंध के मौजूदा नियमों को आगे की परियोजनाओं के लिए भी
जारी रखने के विजय केलकर समिति के सुझावों पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
 
अनुबंध की मौजूदा व्यवस्था में कंपनियां परियोजना से अपनी पूरी लागत
निकालने के बाद ही तेल या गैस में सरकार को हिस्सा देना शुरू करती हैं जो
नई परियोजनाओं में राजस्व में पहले दिन से सरकार की हिस्सेदारी की व्यवस्था
लागू करने की रंगराजन समिति की सिफारिशों के उलट है।
 
हाइड्रोकार्बन महानिदेशक आर.एन. चौबे ने एक परिपत्र में कहा कि समिति
ने अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर रिपोर्ट और ऐसे आंकड़े पेश किए जिनके
लेखक या स्रोत का कोई अता-पता नहीं है।
 
चौबे केलकर समिति में भी रहे हैं। मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि
समिति ने अपनी रिपोर्ट के द्वितीय अध्याय में तेल व गैस क्षेत्र के लिए
मौजूदा उत्पादन साझा अनुबंध (पीएससी) व्यवस्था को जारी रखने की सिफारिश की
है जिसमें कंपनियों को अनुमति है कि वे सरकार को उसके हिस्से का भुगतान
करने से पहले लागत की वसूली करें।
 
प्रधानमंत्री द्वारा गठित रंगराजन समिति ने राजस्व-बंटवारा मॉडल की ओर
रूख करने का सुझाव दिया है। इसमें कंपनियों को उत्पादन के पहले दिन से तेल
या गैस उत्पादन का एक निश्चित हिस्सा सरकार के साथ साझा करने की जरूरत
होगी, भले ही उत्पादन लागत जो भी हो।
 
सूत्रों ने कहा कि चौबे ने अपने परिपत्र में संकेत दिया है कि
पेट्रोलियम मंत्रालय ने शुरुआत में केलकर समिति को रंगराजन समिति की
सिफारिशों की समीक्षा करने को कहा था, लेकिन बाद में उसने यह काम समिति से
वापस ले ली थी।
 
केलकर 1995 में पेट्रोलियम सचिव थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट का पहला
हिस्सा अभी पिछले सप्ताह ही सौंपा है। चौबे ने केलकर समिति के इस दावे को
भी चुनौती दी है कि उत्पादन में हिस्सेदारी का वर्तमान मॉडल बनाए रखने से
राजस्व में हिस्सेदारी की तुलना में 7 अरब बैरल अतिरिक्त तेल प्राप्त हो
सकता है। उन्होंने कहा है कि यह स्पष्ट नहीं है कि यह आंकड़ा कहां से आया
है।

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