बाजार मुहैया कराने की भी योजनाएं

देश की अर्थवस्था को गति देने में छोटे और मंझोले उद्यमियों की बड़ी भूमिका है. रोजगार, आर्थिक उत्पादन और घरेलू जरूरत की चीजों को तैयार करने के अलावा भारत की कई लोकप्रिय वस्तुओं के निर्यात के आधार को भी ये मजबूत करते हैं. विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में भी ये बड़े माध्यम हैं. इसलिए सरकार इन्हें हर स्तर पर सुविधा,  सहायता, संरक्षण, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन उपलब्ध कराती है.

इसे लेकर कई योजनाएं हैं.  केंद्र में इसके लिए अलग से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम मंत्रालय है, जिसका काम ही है इस श्रेणी के उद्योगों के विकास के  लिए योजना बनाना और उसे लागू करना. इस विभाग के अंदर कई सरकारी संस्थान और उपक्रम हैं, जो इस लक्ष्य को पूरा करने में लगे हैं. इनकी योजना के दायरे में सभी वर्ग के सूक्ष्य, लघु और मध्यम  उद्यमी और उनका उद्योग आता है. इन योजनाओं में सब्सिडी और आर्थिक मदद के साथ-साथ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार उपलब्ध कराना, उनके उत्पादों से बड़े स्तर पर ग्राहकों का संपर्क बढ़ाना, मेले और प्रदर्शनी के जरिये ऐसे  सामानों की विशेषता और गुणवत्ता से उपभोक्ताओं और खरीदारों को अवगत कराने का अवसर तैयार करना तथा इन सब के बीच उनके आर्थिक और कानूनी हितों की रक्षा करना शामिल है. हर उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसी-न-किसी रूप में सरकार की योजना है और उस पर सरकारी धन खर्च होता है.

बिक्री की सुविधा और सहायता योजना
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्यमियों की सबसे बड़ी परेशानी अपने उत्पादित माल को बेचने को लेकर होती है. स्थानीय स्तर पर उन्हें बाजार नहीं मिलता. जो बाजार उपलब्ध है, वह सीमित है. बड़े बाजार में अपने बूते पांव जमाना उनके लिए आसान नहीं होता. बड़े बाजार में प्रतिस्पर्धा ज्यादा है और इसमें तकनीक और पूंजी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है.

इसकी बदौलत वे अपने ग्राहकों का बड़ा वर्ग तैयार कर लेते हैं, जबकि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए अपने उत्पादों के ग्राहक को तलाशना और उसे अपने उत्पादों की खूबियों के बारे में बताना बड़ी चुनौती होती है. देश के किसी एक हिस्से में अगर कोई वस्तु उत्पादित होती है, तो देश के दूसरे हिस्से के खरीदारों को उसकी विशेषता और उपयोगिता बताना तथा उन तक उन्हें पहुंचना सरल नहीं होता. संचार और इलेक्ट्रॉनिक प्रचार माध्यमों के विस्तार ने टेली-मार्केट्रिंग की सुविधा तैयार की है. इसमें टीवी, अखबार और इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ता सामानों की खरीद-बिक्री और नीलामी होती है, लेकिन अभी इसे और विकसित होना है. दूसरा कि ऐसी खरीद-बिक्री में सीमित वर्ग के लोग भाग ले पाते हैं.

तीसरी बात कि इसमें बिचौलिया को ज्यादा लाभ मिलता है. चौथी बात कि खरीद-बिक्री में चीजों को छू कर, देख कर और परख कर व्यवहार का जो प्रभाव होता है, वह इसमें नहीं है. इसलिए इन श्रेणियों के उद्योगों द्वारा वस्तुओं को समुचित बाजार उपलब्ध कराने की चुनौती को हल करने के लिए केंद्र सरकार ने योजना लागू की है, जिसमें इन उद्यमियों और दस्तकारों को अपने सामानों की बिक्री की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. इस काम में राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम की मदद ली जारही है. इस निगम को संक्षेप में एनएसआइसी कहते हैं. निगम के जरिये इन उद्यमियों को अपने माल को बेचने का बड़ा अवसर उपलब्ध कराया जाता है. इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों तथा विदेशों में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले और प्रदर्शनी लगाये जाते हैं. उनमें ऐसे उद्यमियों को अपने उत्पादों के साथ आमंत्रित किया जाता है. उन्हें मेलों में बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध करायी जाती है. दिल्ली के दिल्ली हाट, प्रगति मैदान आदि स्थानों पर, हरियाणा के सूरजकुंड आदि में इस तरह के मेले हर साल लगते हैं. वहां बड़ी पर्यटक और देश-विदेश के बड़े खरीदार आते हैं. यहां फुटकर बिक्री के साथ-साथ थोक व्यापार का बड़ा अवसर उद्यमियों को मिलता है. साथ ही एक समान तरीके के दूसरे उद्योगों और उनके उत्पादों को जानने-समझने, उनके व्यापार के तौर-तरीकों को देखने तथा बाजार के स्वाभाव को जानने का मौका मिलता है.

एनएसआइसी किस-किस तरह के करता है आयोजन
एनएसआइसी विदेशों में अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी प्रदर्शनियों और मेले खुद आयोजित करता है. उसमें देश भर से छोटे और मंझोले उद्यमियों और यहां तक कि दस्तकारों को भी भाग लेने का अवसर देता है.

घरेलू आयोजन के तहत राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मेले और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. वहां भी उन्हें आमंत्रित किया जाता है.

इस तरह के मेले और प्रदर्शनी का आयोजन दूसरे संगठन, औद्योगिक संघ और कई एजेंसियां भी करती हैं. एनएसआइसी उनमें इन उद्यमियों को भाग लेने में मद करता है.

एनएसआइसी खरीदार और विक्रेताओं की बैठकें भी आयोजित करता है और उन्हें बड़ा प्लेटफॉर्म मुहैया कराता है.

इसके अलावा गहन अभियान तथा बिक्री बढ़ाने के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं.

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए बाजार विकास सहायता योजना

योजना के अंतर्गत लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को एमएसएमइ स्टाल के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेने के लिए उनके उत्पादों की ग्रेडिंग कर उनका रजिस्ट्रेशन किया जाता है. इसमें उद्योग संघ, निर्यात संवर्धन परिषद तथा भारतीय निर्यात संगठन फैडरेशन की मदद ली जाती है. ये संगठन बाजार के अध्ययन के आधार पर इस कार्य को करते हैं. उद्यमियों का उत्पाद डंप न हो जाये, इस बात की चिंता को दूर करने के लिए बार कोडिंग की जाती है. इस रजिस्ट्रेशन का शुल्क तय है. सरकार इस शुल्क के बड़े हिस्से की भरपाई करती है. यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने माल को बेचने में लगे छोटे और मंझोले उद्यमियों के हितों की रक्षा का बड़ा माध्यम है. सरकार रजिस्ट्रेशन के वार्षिक शुल्क की 75}  राशि की भरपाई करती है.

कच्चे माल संबंधी सहायता
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम यानी एनएसआइसी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्यमियों को कच्चे माल उपलब्ध कराने में सहायता के लिए भी योजना चला रहा है. इस कच्च माल सहायता योजना का उद्देश्य कच्चे माल की खरीद में उन्हें आर्थिक सहायता दी जाये. यह सहायता घरेलू और विदेशी दोनों स्तर पर  कच्चे माल की खरीद के लिए है. इससे लघु उद्योगों को यह मौका मिलता है कि वे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

योजना के उद्देश्य
कच्चे माल की खरीद के लिए 90 दिन तक वित्तीय सहायता

बड़े पैमाने पर खरीद के लाभ,जैसेबृहत खरीद, नकद डिसकाउंट आदि पाने में लघु उद्योगों की मदद.

आयात के मामले में सभी प्रक्रिया और ऋण-पत्र जारी करने के मामलों को एनएसआइसी देखता है.

उद्यमी बनने में मददगार
सूक्ष्य, लघु एवं मध्यम उद्यमियों की सहायता के लिए विकास आयुक्त (सूलमउ) का कार्यालय बड़ी संख्या में व्यावसायिक और उद्यमिता विकास कार्यक्र म आयोजित करता है. उद्यमिता विकास कार्यक्र म (इडीपी)  विकास संस्थानों के माध्यम से आयोजित किये जाते हैं, जिनमें उद्यमिता कौशल विकास के साथ ही  इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, खाद्य प्रसंस्करण जैसे व्यवसायों से संबंधित इस तरह के प्रशिक्षण दिये जाते, जिससे कि प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अपना उद्योग स्थापित कर सके.

उद्यमिता विकास कार्यक्र म (इडीपी)
यह सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की स्थापना के लिए युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए है. इसके तहत आइटीआइ, पालिटेक्निक तथा इसी तरह के दूसरे तकनीकी संस्थानों में प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है.

व्यवसाय कौशल विकास कार्यक्र म बीएसडीपी
चुने गये बिजनेस स्कूलों एवं तकनीकी संस्थानों के माध्यम से नये उद्यमियों के लिए बिजनेस कौशल विकास कार्यक्रम नामक विशेष पाठ्यक्रम चलाया जाता है. शिक्षित बेरोजगार युवाओं को सूक्ष्म अथवा लघु उद्यम का स्व-रोजगार वेंचर शुरू करने के लिए तैयार किया गया है.

प्रबंधन विकास कार्यक्रम (बीएसडीपी)
इसके तहत 60 प्रकार के विषयों में उद्योगों के प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है. शारीरिक और सामाजिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए यह प्रशिक्षण नि:शुल्क है. उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती है.

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