विशेष आर्थिक क्षेत्र यानि सेज के प्रति डेवलपर
कंपनियों और निर्यातकों की दिलचस्पी घटने के बाद पिछले मार्च में केंद्र
सरकार ने इनके आकार में छूट देने की पहल की। इसके अलावा जमीन के उपयोग में
ज्यादा आजादी और ऐसे प्रोजेक्ट से बाहर निकलने के लिए आसान प्रक्रिया बनाई
गई थी। लेकिन सरकार ने कोई टैक्स छूट देने से साफ इंकार कर दिया। इस वजह से
नई नीति से भी डेवलपर्स की दिलचस्पी बिल्कुल नहीं बढ़ी है। पिछले माह
सरकार ने 30 सेजों के विकास की अवधि बढ़ाने की भी अनुमति दी है। लेकिन
विभिन्न राज्यों में सेजों के विकास का काम एकदम सुस्त पड़ा है। अपवाद
स्वरूप चुनिंदा सेजों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर सेज चालू नहीं हो पाए
हैं। उत्तर राज्यों में सेजों के विकास की रफ्तार लगभग थम ही गई है।
निर्यातकों की बेरुखी के चलते कंपनियां विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज)
से किनारा करने लगी हैं। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में कुल 21 सेज में से
12 से कंपनियां अलग हो गई हैं। इनमें आदित्य बिड़ला समूह की हिंडाल्को
लिमिटेड का सिंगरौली सेज भी शामिल है। इसके अलावा जो सेज अभी बचे हुए है,
उनमें 6 सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े हुए है।
मध्य प्रदेश में फिलहाल 10 नोटीफाइड सेज हैं। इसमें से चार कंपनियों ने
सेज से अपने हाथ खींच लिये है। इन सेज को विकसित करने के लिए जो अवधि दी गई
थी वह खत्म हो चुकी है और उसको बढ़ाने के लिए कंपनियों ने कोई रुचि नहीं
दिखाई है।
इसमें पाŸवनाथ समूह तथा मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रानिक्स डेवलपमेंट
कॉरपोरेशन (एमपीएसआईडीसी) का आईटी सेज, औद्योगिक केन्द्र विकास निगम
(एकेवीएन) का एग्री सेज तथा हिंडाल्को का अल्यूमीनियम सेज शामिल है।
हिंडाल्को सेज की अवधि तो अक्टूबर 2013 में समाप्त हुई, किन्तु कंपनी ने
इसे आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखा रही है। नोटीफाइड सेज में दो में
उत्पादन शुरू हो गया है, इसमें पीथमपुर का मल्टी प्रोडक्ट सेज और इंदौर का
क्रिस्टल आईटी पार्क शामिल है।
प्रदेश में कुछ समय पहले तक केवल पीथमपुर का सेज ही एकमात्र सेज था,
जहां पर उत्पादन हो रहा था। इसी वर्ष क्रिस्टल आईटी पार्क में भी कंपनियों
ने काम करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा नोटीफाइड सेज में टीसीएस, इंफोसिस
और इंपिटस के सेज भी शामिल है। टीसीएस और इंफोसिस के सेज में जल्द ही
उत्पादन शुरू होने की संभावना है।
राज्य में औपचारिक अनुमति प्राप्त 11 सेज है। ये इस तरह के सेज है,
जिन्होंने अपने लिए जमीन और अन्य आवश्यक अनुमतियां प्राप्त कर ली हैं और उस
पर लगाना चाह रहे हैं। इनको केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय की ओर से अधिसूचित
नहीं किया गया है। ऐसे 11 सेज में से केवल तीन ही ऐसे हैं, जिन्हें विकसित
करने की अवधि अभी बची है।
ऐसी कंपनियों में रुचि रियल्टी, एग्रो वेब और एकेवीएन इंदौर शामिल है।
रुचि रियल्टी और एग्रो वेब आईटी सेज लाना चाह रहे हैं तथा एकेवीएन ने काफी
समय पहले से डायमंड सेज के लिए अनुमति प्राप्त की हुई है।
इसके अलावा शेष सभी कंपनियों नेअपने हाथ खींच लिये है। इस तरह की
कंपनियों में एमपीएसआईडीसी के भोपाल और जबलपुर आईटी सेज, राइटर्स एंड
पब्लिशर्स का छिंदवाड़ा का सेज, इंदौर में आने वाला जूम डेवलपर का मल्टी
प्रोडक्ट सेज, मान इंडस्ट्री का इंदौर का मालवा आईटी पार्क, क्रेसेन्ड
रियल्टी का इंदौर में आईटी सेज तथा ग्वालियर में आने वाला मल्टी प्रोडक्ट
सेज शामिल हैं।
राज्य में जिन कंपनियों के सेज की अवधि खत्म हुई है, उसमें ज्यादातर
पिछले एक साल के दौरान के हैं। ये सभी कंपनियां सेज में कोई रुचि ही नहीं
दिखा रही थी। इसके अलावा जिन सेज की अवधि अभी बची हुई है उनमें भी कई ऐसे
है जो आगे काम नहीं करेंगे। राज्य की ओर से सेज की अवधि बढ़ाने के लिए जो
अंतिम आवेदन गया था वह पिछले साल की शुरूआत में गया था। उसके बाद से इस तरह
का कोई आवेदन अभी तक नहीं गया है।
सेज में कंपनियों की कम होती रुचि के बारे में मध्य प्रदेश के उद्योग
विभाग के अपर मुख्य सचिव पी. दास कहते है कि पिछले कुछ सालों से लगातार
विश्व बाजार में औद्योगिक गतिविधि धीमी पड़ी हुई है। इसके उलट घरेलू बाजार
में कंपनियों को बेहतर स्थिति दिखाई दे रही है। इसी का नतीजा है कि
कंपनियां सेज की पाबंदियों में सीमित नहीं होना चाहती है।