काला सागर के किनारे स्थित जॉजिर्या कभी सोवियत संघ का हिस्सा था. अब
वहां भारतीय किसान अपनी मेहनत से खेतों में सोना उगा रहे हैं. इनमें से
अधिकतर पंजाब के हैं. जॉजिर्या सरकार कृषि में निवेश बढ़ाने के लिए
विदेशियों को अपने यहां न्योता दे रही है. जमीनें सस्ती दरों पर उपलब्ध
हैं, जिन्हें भारतीय किसान खरीद रहे हैं. लेकिन, स्थानीय किसान इसका विरोध
भी कर रहे हैं.
जॉजिर्या की राजधानी तिब्लिसी से 25 किलोमीटर दक्षिण में एक गांव. खेतों
में गेहूं, आलू, लहसुन, प्याज और अन्य फसलें लहलहा रही हैं. ये फसलें उपजी
हैं भारतीय किसानों के पसीने से. जी हां, हजारों भारतीयों ने जॉजिर्या में
जमीनें खरीदी हैं. इनमें से अधिकतर पंजाबी हैं. जॉजिर्या के खेतों में
पगड़ीधारी सिखों का दिखना एक आम बात हो चुकी है. पिछले एक साल में, केवल एक
इमिग्रेशन कंसल्टेंसी ने दो हजार पंजाबी किसानों को जॉजिर्या में जमीन
दिलवायी है.
सस्ती दर पर जमीनें : पंजाब के ही एक सिख किसान रमनदीप सिंह पलहान ने 30
हेक्टेयर (लगभग 74 एकड़) जमीन खरीदी है. वह बताते हैं कि यहां जमीनें बहुत
सस्ती हैं. महज 63 हजार से 95 हजार रुपये में एक हेक्टेयर खेती की जमीन
खरीदी जा सकती है, जिसकी पंजाब में कल्पना भी नहीं जा सकती. उन्होंने पंजाब
में अपनी एक हेक्टेयर जमीन बेची है. इस पैसे से वह जॉजिर्या में 200
हेक्टेयर (लगभग 495 एकड़) जमीन ले सकते हैं.
पंजाब के बहुत से किसान उनके ही रास्ते पर चल रहे हैं. रमनदीप बताते हैं
कि यहां आया हर भारतीय किसान अधिक से अधिक जमीन खरीदना चाहता है.
लालफीताशाही व भ्रष्टाचार नहीं: पलहान जैसे किसानों को अखबारों में छपे
विज्ञापन से पता चला कि जॉजिर्या सरकार कृषि क्षेत्र में विदेशियों को अपने
यहां बुला रही है. तिब्लिसी के उपनगरीय इलाकों में इमिग्रेशन कंसल्टेंसी
चलानेवाली फर्मो ने विदेशियों के स्वागत में बड़े-बड़े पोस्टर लगाये हुए
हैं.
ऐसी ही एक फर्म के निदेशक हैं धरमजीत सिंह सैनी, जिन्होंने बीते एक साल
में दो हजार भारतीय किसानों को जॉजिर्या बुलाया. वह कहते हैं कि पंजाबी
किसानों को जॉजिर्या इसलिए आकर्षक लगता है, क्योंकि यहां लालफीताशाही नहीं
है. सब कुछ पारदर्शी है. यहां भारत की तरह भ्रष्टाचार नहीं है. जॉजिर्या
सरकार घरेलू स्तर पर कृषि उत्पादन को बढ़ाना चाहती है, ताकि देश खाद्यान्न
के मामले में आत्मनिर्भर हो सके.
जॉजिर्या को भी है जरूरत: जॉजिर्या 80 प्रतिशत डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ
विदेशों से आयात करता है. उसके कृषि मंत्री डेविड किरवलिज कहते हैं कि
हमारे देश की मिट्टी, आबो-हवा सब खेती के अनुकूल है, पर दुर्भाग्य है कि
हमे बाहर से खाद्यान्न मंगाना पड़ता है. साल 2006 में जॉजिर्या की जीडीपी
में कृषि का कुल योगदान 12.8 प्रतिशत था, जो घट कर 8.3 प्रतिशत पहुंच चुका
है. अब जॉजिर्या सरकार कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में निवेश
बढ़ाने के कदम उठा रही है. विदेशी किसानों का भी स्वागत किया जा रहा है. इस
साल बजट में कृषि के लिए आवंटित राशि में 60 प्रतिशत बढ़ोतरी की गयी है.
विरोध के स्वर भी : एक तरफ सरकार जहां विदेशियों को निवेश के लिए
आमंत्रित कर रही है, वहीं स्थानीय किसान इसकाविरोध भी कर रहे हैं. राल
बाबुनाशिवली के नेतृत्व में जॉजिर्याई किसान संघ का गठन किया गया है. राल
का मानना है कि पहले सरकार ने कृषि को कभी प्राथमिकता सूची में नहीं रखा.
किसान हाशिये पर चले गये. उन्हें अपनी जीविका चलाने और दूसरा कारोबार करने
के लिए अपनी जमीनें सस्ते में बेचनी पड़ रही हैं. वह कहते हैं कि सरकार को
विदेशियों के बजाय जॉजिर्याई लोगों को सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए. खेती
के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है और न ही जॉजिर्याई भारतीयों की तरह खेती में
निपुण हैं. भारतीय इसी का लाभ उठा रहे हैं.