तमाम सरकारी दावों के बावजूद हर साल डेंगू से प्रभावित होने वाले लोगों का
आंकड़ा पिछले साल की अपेक्षा बढ़ता जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि
आधिकारिक आंकड़े वास्तविक आंकड़ों की तुलना में काफी कम होते हैं, क्योंकि
इनमें सिर्फ वही मामले गिने जाते हैं, जिसमें मरीज इलाज कराने के लिए
सरकारी अस्पतालों में जाते हैं, और जिनकी पुष्टि सरकारी प्रयोगशालाओं
द्वारा होती है।
डेंगू मच्छरों द्वारा फैलाया जाने वाला एक
विषाणुजनित संक्रामक रोग है, जिसके लक्षण फ्लू के लक्षणों से मिलते-जुलते
हैं और कई मामलों में यह जानलेवा भी सिद्ध हो सकता है। डेंगू विषाणु से
संक्रमित होने के बाद संक्रमित व्यक्ति इस रोग का वाहक हो जाता है, जिससे
उसके आसपास के लोगों में इसके फैलने का खतरा बढ़ जाता है। चूंकि डेंगू के
लक्षण फ्लू के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं अतः कई बार इसका पता लगाना
मुश्किल हो जाता है।
उष्णकटिबंधीय बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ स्कॉट
हैलस्टीड का मानना है कि भारत में हर वर्ष अनुमानतः लगभग तीन करोड़ 70 लाख
लोग डेंगू फैलाने वाले वायरस से संक्रमित होते हैं, जिनमें से तकरीबन दो
लाख 27 हजार 500 लोग ही इलाज कराने के लिए अस्पतालों में भर्ती होते हैं।
आंकड़ों
को कम करके प्रस्तुत किए जाने की प्रवृत्ति से डेंगू की विकरालता का
वास्तविक स्तर समझ पाने में समस्या आती है, नतीजतन इससे निपटने के लिए जिस
स्तर की व्यापक तैयारी की जानी चाहिए, वह नहीं होती, और डेंगू से होने वाली
मौतों में वृद्धि होती है। भारत मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली इस घातक
बीमारी का केंद्र बनता जा रहा है। स्वास्थ्य प्रबंधन के अभाव में इसने
खतरनाक रूप धर लिया है और पिछले कुछ वर्षों में डेंगू बच्चों में बीमारी और
उनकी असमय मृत्यु का एक प्रमुख कारक बनकर उभरा है।
1970 से पूर्व
केवल नौ देशों ने डेंगू को महामारी के रूप में झेला था। परंतु 21वीं सदी के
पहले दशक तक आते-आते तकरीबन 100 देशों में इस बीमारी ने अपने पांव पसार
लिए हैं। आंकड़े भारत में डेंगू के फैलाव की कहानी खुद कह रहे हैं। इस वर्ष
तीस सितंबर तक पूरे देश में डेंगू से अब तक 109 मौतें दर्ज की गई हैं,
जबकि 38,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। भारत में हर साल डेंगू और उसके
कारण मौत की संख्या बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस साल
डेंगू से दक्षिण भारत के राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। केरल में डेंगू
के 7,000 मामले और 23 मौतें, आंध्र प्रदेश में 5,680 से ज्यादा मामले और 12
मौतें, ओडिशा में 5,012 मामले और पांच मौतें और तमिलनाडु में 4,294 मामले
दर्ज किए गए, यहां किसी की डेंगू से मौत नहीं हुई। गुजरात और महाराष्ट्र
में भी डेंगू के क्रमश: 2,600 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।
स्वास्थ्य
जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर व्यवस्था न होने के कारण डेंगू
भारत जैसे तमाम अल्पविकसित देशों के लिए एक ऐसी स्वास्थ्य चुनौती बनता जा
रहा है, जिस पर अगर ध्यान न दिया गया, तो नतीजे भयावह होंगे। जरूरत
जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर करने की है। विश्व स्वास्थ्य
संगठनके अनुसार, डेंगू सामान्यतः शहरी गरीब इलाकों, उपनगरों तथा ग्रामीण
क्षेत्रों को अधिक प्रभावित करता है, लेकिन उष्ण कटिबबंधीय एवं
उपोष्णकटिबंधीय देशों के समृद्ध क्षेत्रों में भी इसका काफी प्रभाव पड़ता
है। पिछले 50 वर्षों में डेंगू के मामलों में 30 गुना इजाफा हुआ है और
प्रतिवर्ष पांच से दस करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं। तस्वीर का एक
और पहलू लोगों के नजरिये और साफ-सफाई के प्रति जागरूकता का न होना भी है।
डेंगू जैसी बीमारियां तब फैलती हैं, जब हम अपने आसपास की जगहों की पर्याप्त
सफाई नहीं करते और जलभराव होने देते हैं।
भारत में कूड़ा प्रबंधन
जैसी अवधारणाएं अभी कागज पर ही हैं, व्यवहार में कुछ ठोस नहीं हुआ है।
हमारे महानगर पर्याप्त रूप से गंदे हैं और इसके लिए सबको प्रयास करना होगा।
डेंगू का कोई इलाज नहीं है, स्वच्छता एवं सावधानी ही इससे निपटने का
एकमात्र रास्ता है।