7 अक्टूबर, 2013। अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट भवन का आठवां माला। कक्ष नंबर, 21, मुझे यहीं बुलाया था उन्होंने। अहमदाबाद के तमाम सरकारी दफ्तरों की तरह इस कोर्ट के तमाम कक्षों के बाहर गुजराती में लिखी तख्तियां लटकी हुई हैं। गुजराती लिपि कुछ-कुछ हिंदी से मिलती-जुलती है। मैं पढ़ने की कोशिश करता हूं। गुजराती कुछ-कुछ घुमावदार है, मगर तमिल, तेलुगू या मलयालम की तरह नहीं। कुछ अक्षर तो हिंदी से बिल्कुल मिलते-जुलते हैं। कक्ष के बाहर लगी तख्ती में लिखे शब्दों में ‘मेट्रोपोलिटन’ और ‘मजिस्ट्रेट’ तो समझ में आ रहे हैं। ‘देशाई’ भी समझ में आया, अनुमान लगाता हूं कि यह देसाई है। फिर एक सज्जन से मैंने पूछा तो उसने बताया, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ए. एस.देसाई। ‘स’ और ‘श’ का यह फर्क संभवतः उच्चारण में भी है…. गांधी जी के भाषणों की एकाधिक बार सुनी कुछ रिकॉर्डिंग याद आईं… वह भी ‘स’ का उच्चारण ‘श’ की तरह करते थे।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ के कोर्ट भवनों या कचहरियों में मुझे कुछेक बार जाने का मौका मिला है। लेकिन वहां जैसी आपाधापी यहां नजर नहीं आ रही है। आठ मंजिला इमारत में भीड़ जरूर है, लेकिन धक्का-मुक्की जैसी स्थिति नहीं है। बल्कि आठवें माले के गलियारे में लगी कुर्सियों पर तो आराम से बैठा भी जा सकता है। यह भवन अपेक्षाकृत साफ-सुथरा भी है। मजिस्ट्रेट्स कक्ष बड़े-बड़े हैं। आठवें माले से अहमदाबाद का नजारा भी देखा जा सकता है।
मैं सुबह ठीक 11 बजे वहां पहुंच गया था। तकरीबन सवा घंटे के इंतजार के बाद मेधा पाटकर अपने दो-तीन वकीलों के साथ वहां पहुंचीं। उनसे कुछ देर बात हुई। पूछा, ‘यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।’ मैं उनकी सादगी और सदाशयता देख रहा हूं…। यूं फोन पर तो मेरी उनसे पहले कई बार बातचीत हुई थी, दिल्ली और रायपुर में कई कार्यक्रमों और कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस में आमना-सामना भी हुआ था। लेकिन पहली बार मैं उनसे इस तरह रू-ब-रू था। उनकी व्यस्तताओं की वजह से यह तय हुआ था कि मैं सीधे कोर्ट आ जाऊं और उनके साथ ही रहूं। थोड़ी देर बाद हम कोर्ट के भीतर घुसे और वहां बैठ गए।
इस कोर्ट में उनका क्रॉस एक्जामिनेशन चल रहा है। मामला गोधराकांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के समय का है। 7 अप्रैल, 2002 को वे एक शांति सभा में हिस्सा लेने अहमदाबाद आई थीं और साबरमती गांधी आश्रम की ओर जा रही थीं, तभी उन पर हमला किया गया था। जैसा कि खबरों में बताया गया था, कि मेधा पाटकर पर भीड़ ने हमला किया था, जिसमें भाजपा और उससे जुड़े संगठनों के साथ ही कांग्रेस के लोग भी शामिल थे। इस मामले में जो चार बड़े आरोपी हैं, उनमें शामिल हैं- अमित शाह (भाजपा महासचिव नहीं) अहमदाबाद के पूर्व मेयर, अमित ठक्कर जोकि तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बड़े नेता थे, रोहित पटेल और वी. के. सक्सेना। अपने वकील के साथ ये चारों भी कोर्ट में मौजूद थे।
तकरीबन 15 मिनट में उनका बुलावा आ गया। वह अब कठघरे में खड़ी हैं। उनके सामने हैं, बचाव पक्ष के अनुभवी और दबंग आवाज वालेवकील अजय चौकसी। जज साहब कार्यवाही शुरू करने का संकेत करते हैं। वकील साहब कागजों के पुलिंदों और अपने सहयोगी वकीलों के साथ तैयार हैं। वह एक-एक कर सवाल दागे जा रहे हैं, मेधा पाटकर उनका जवाब दे रही हैं। वे कुछ का सीधा जवाब दे रही हैं, कुछ बातें उन्हें याद नहीं हैं। वकील साहब उस घटना के संदर्भ में मेधा पाटकर की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर और फैक्स से भेजी गई शिकायत में दर्ज बातों में अंतरविरोध तलाश रहे हैं….
‘आप शांति की अपील करने आई थीं या बैठक में शामिल होने… क्या आप सभा की आयोजक थीं।’
मेधा कहती हैं, ‘मैं दंगों के बाद भड़की हिंसा को रोकने के लिए हुई शांति सभा में शामिल होने के लिए आई थी।’
वकील साहब कभी कुछ अंग्रेजी में पढ़ते हैं, उसका गुजराती और हिंदी में तर्जुमा करते हैं और मेधा पाटकर को घेरने की कोशिश करते हैं। अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती में कुछ बात उलझ रही है। मेधा समझाने की कोशिश करती हैं कि अंग्रेजी में Abuse का मतलब असभ्यता और गालियां देना भी होता है। वकील साहब Abuse और indecency का अंतर बताने लगते हैं। ऐसा कई बार होता है। फिर वे मेधा पाटकर की शिकायत में दर्ज उस हिस्से को पकड़ लेते हैं, जिसमें उन्होंने लिखा था…. They question my position in Ahmedabad। वकील साहब कहते हैं कि उन्होंने (हमलावरों) आपसे क्या सवाल किया। मेधा समझाने की कोशिश करती हैं, ‘यहां question का मतलब, प्रश्न से नहीं, मेरी भूमिका से है।’
वकील साहब उन्हें बड़वानी की ओर ले चलते हैं, जो कभी उनकी कर्मभूमि रही थी।
पूछते हैं, ‘आपने यह फैक्स (शिकायत) बड़वानी से भेजा था।’
मेधा को यह बात याद नहीं है।
– ‘बड़वानी में तो आपका कार्यालय है, वहां तो फोन और फैक्स वगरैह होगा?’medha- 1
– ‘फोन था और फैक्स भी था, लेकिन शायद फैक्स खराब हो गया था।’
– ‘बड़वानी कितनी बड़ी जगह है, तीस-चालीस हजार आबादी तो होगी?
-’ हां, होनी चाहिए। ‘
– ‘बड़वानी जिला है क्या है?’
– ‘मेरे ख्याल से बाद में बना।’
मेधा को ये सवाल विषयांतर से लगते हैं। वे जज साहब की ओर देखती हैं।
बहस चल रही है। कोर्ट में अमित ठक्कर, अमित शाह, रोहित पटेल और वी. के. सक्सेना भी मौजूद हैं।
वकील साहब ने अब फिर एक अंग्रेजी का शब्द Body ache पकड़ लिया है। पूछते हैं, आपने पूरे शरीर में दर्द होने की बात लिखी है, तो क्या आपको जब मारा गया तो कहीं से खून निकला था। मेधा कहती हैं, नहीं। फिर वकील साहब शरीर के Vital Organ की शिनाख्त करने लगते हैं..
पूछते हैं, आंख में मुक्का मारेंगे तो चोट लगेगी या नहीं। यदि कोई जोर से मुंह पर मारे तो जबड़े पर चोट लगेगी या नहीं।
मेधा समझाने की कोशिश करती हैं कि उन्हें मुक्के मारे गए, और बाल पकड़कर खींचा गया जिससे वह नीचे गिर गई थीं।
वकील साहब फिर पूछते हैं, ‘खून निकला था कि नहीं?’ मेधा कहती हैं, नहीं।
वकील साहब कुछ ऐसे ही और सवाल कर रहे हैं। जज साहब घड़ी की ओर देखते हैं…. सवा दो बजेकेकरीब उन्होंने भोजनावकाश घोषित कर करीब एक घंटे के लिए कार्यवाही मुल्तवी कर दी।
कोर्ट से बाहर 30 डिग्री के करीब तापमान है और बेहद उमस है। मेधा अपने वकीलों के साथ कक्ष से बाहर निकलती हैं और हम सब नीचे आते हैं। अजय चौकसी की तुलना में मुझे उनके वकील नौसिखिए लगते हैं। उनमें से एक ने तो शायद अभी उम्र के तीसरे दशक को छुआ ही है। मेधा बताती हैं कि ये दलित संगठन से जुड़े कुछ युवा हैं और उनकी पैरवी कर रहे हैं। वह वकीलों के साथ पुराने कागज पलट रही हैं…।
तीन बजते-बजते हम सब फिर आठवें माले पर पहुंच जाते हैं। अमित शाह, अमित ठक्कर, रोहित पटेल और वी. के. सक्सेना भी वहीं हैं।
छूटते ही अजय चौकसी मेधा पाटकर से पूछते हैं, ‘आप अहमदाबाद कितने बार आई हैं?’
– ‘कई बार।’
‘आप तो अहमदाबाद में रही भी हैं, 84 से 91 के दौरान…सरस्वती नगर में…’
– ‘हां’
– ‘ कहां रहती थीं आप?’
– ‘आपको जब पता है, तो क्यों पूछ रहे हैं।’
वकील साहब बात जिस ओर ले जाना चाह रहे हैं, लगता है मेधा समझ रही हैं। बीच-बीच में वे वकील साहब से कहती भी हैं कि मैं जानती हूं कि आप क्या कहना चाहते हैं। वकील साहब कई बार ऊंची आवाज में बोलने लगते हैं, तो कहती हैं आप तो डरा रहे हैं। जज साहब हस्तक्षेप करते हैं।
लगता है वकील साहब ने अब वह सिरा पकड़ लिया है, जो मेधा पाटकर की दुखती रग है।
– ‘आपका जो नर्मदा बचाओ आंदोलन था, उसे आपने कब शुरू किया था?’
– ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन, था नहीं, है। 1985 में।’
– ‘आपका जो नर्मदा बचाओ आंदोलन था, क्या वह रजिस्टर्ड है या ट्रस्ट है?’
– ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन, था नहीं, है। यह रजिस्टर्ड नहीं है।’
– ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन जो था, उसको 1985 से 2002 के बीच जैसा समर्थन था, वैसा तो अब नहीं है न…’
– ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन है, यह आपका नजरिया है, आज भी 42 हजार प्रभावित परिवार हैं…’
वकील साहब मेधा पाटकर से जिस तरह से सवाल कर रहे हैं, उससे लगता है मानो यह दंगों से नहीं सरदार सरोवर के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन के किसी प्रदर्शन से जुड़ा मामला है।
शाम ढल रही है, घड़ी की सुई छह बजे के करीब पहुंच रही है। कार्यवाही जारी है। जज साहब घड़ी की ओर इशारा करते हैं। वकील साहब कुछ देर और चाहते हैं। आखिरकार दोनों पक्षों से बात करने के बाद जज साहब अगली सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तारीख तय कर देते हैं।
अमित शाह, अमित ठक्कर, रोहित पटेल और वी. के. सक्सेना अब भी कोर्ट में हैं।
कोर्ट मुल्तवी होने के बाद मेधा पाटकर, उनके वकीलों के साथ मैं भी कक्ष से बाहर आता हूं। नीचे उतरते हुए कहती हैं, अरे मैं तो भूल ही गई थी, ‘आपने खाना खाया या नहीं? मुझे ध्यान ही नहीं आया, यहीं कोर्ट में कैंटीन में खाना भी मिलता है…।’
कोर्ट परिसर से बाहर आते-आते शाम के पौने सात बज गए। तकरीबन साढ़े चार-पांच घंटे चले क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान मेधाको कठघरे में खड़ा रहना पड़ा। उन्हें कमर में पट्टा भी बांधना पड़ता है।
58 बरस की हो चुकी मेधा पाटकर कुछ थकी-सी लग रही हैं…पस्त नहीं।