नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्याज का मूल्य थमने से पहले ही खाद्य तेलों में तेजी की तैयारी शुरू हो गई है। सरकार रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात शुल्क में ढाई फीसद की वृद्धि करने जा रही है। इससे त्योहारी सीजन में खाद्य तेलों में महंगाई भड़कने की आशंका है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ यह फैसला सरकार के गले की हड्डी बन सकता है।
खाद्य मंत्रालय ने इसका मसौदा तैयार कर कैबिनेट के पास विचार के लिए भेज दिया है। खाद्य तेलों का आयात शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार करने से पहले वित्त, खाद्य, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण और वाणिज्य मंत्रालयों के बीच गहन विचार-विमर्श हो चुका है। सरकार ने यह कदम घरेलू खाद्य तेल रिफाइन करने वाली यूनिटों के हित संरक्षण के लिए उठाने का फैसला किया है। आयातित रिफाइंड खाद्य तेलों के मुकाबले घरेलू रिफाइंड तेल महंगा पड़ने लगा है। उनकी मांगों के मद्देनजर सरकार यह उपाय करने की सोच रही है।
खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इसका मकसद रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात पर प्रतिबंध लगाना है। क्रूड व रिफाइंड खाद्य तेलों के मूल्य के बीच का अंतर बढ़ाना भी इस उपाय का मकसद है। फिलहाल दोनों के बीच का अंतर केवल पांच फीसद है। क्रूड ऑयल पर ढाई फीसद आयात शुल्क है तो रिफाइंड पर साढ़े सात फीसद। हालांकि घरेलू रिफाइनर आयात शुल्क के इस अंतर को बढ़ाकर 14 फीसद करना चाहते हैं। लेकिन सरकार के मसौदे में यह साढ़े सात फीसद है।
सरकार के पास यह मसौदा पिछले कई महीने से लंबित है। संप्रग सरकार के भीतर राजनैतिक तौर पर इसका विरोध हो रहा है। माना जा रहा है कि इस फैसले से खाद्य तेलों के मूल्य बढ़ जाएंगे। इससे महंगाई भड़केगी। इसके उलट कृषि मंत्रालय का कहना कि आयात घटने से घरेलू तिलहन किसानों को लाभ होगा। खासतौर पर सोयाबीन किसानों को। अच्छे मानसून की वजह से इस बार सूरजमुखी और मूंगफली की खेती का रकबा बहुत बढ़ा है।
नवंबर, 2012 से इस साल जून के बीच 69.4 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ है। यह पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 11 फीसद अधिक है। वहीं, रिफाइंड तेलों का आयात 15.4 लाख टन हुआ, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 27 फीसद ज्यादा है। इससे पहले मई में पिछले साल के समान महीने के मुकाबले 44 फीसद अधिक रिफाइंड खाद्य तेलों का आयात किया गया था।