“रिवीलिंग इंडियन फिलैंथ्रोपी” पढ़ने के बाद, फ्रांसेस्को ओबिनो का सवाल
है कि क्या भारत में लोकोपकार(फिलैंथ्रोपी) समतामूलक तथा टिकाऊ विकास में
मददगार हो सकता है ।
भारत में घरेलू लोकोपकार की बढ़ती हुई क्षमता आशा जगाती है। भारतीय
करोड़पतियों की संख्या 2012 में एक लाख तिरपन हजार (यूएस डॉलर के आधार पर)
थी और अनुमानों के मुताबिक साल 2017 तक यह संख्या दो लाख बयालीस हजार तक
पहुंच जायेगी जो अपने आप में चौंकाने वाली बात है। साल. उम्मीद है कि साल
2025 तक मध्यवर्ग के लोगों की तादाद भी भारत की आबादी में40 फीसद से लेकर
66 फीसद यानि 50 करोड़ से एक अरब के बीच हो जायेगी। भारत के नव-संभ्रांत
तथा मध्यम वर्ग, दोनों सामाजिक प्रतिष्ठा हासिल करने के लिहाज से दान-कर्म
को महत्वपूर्ण मानते हैं। इसके अलावा,हाल में भारतीय कंपनी बिल में संशोधन
करते हुए भारत के बडे व्यवसायिक उद्यमों के निवल लाभ के दो फीसद हिस्से को
कारपोरेट के सामाजिक उत्तरदायित्व (कारपोरेट सोशल रेस्पांस्बिलिटी) के मद
में नियत किया गया है। इससे सालाना 1 से 2 अरब डॉलर(यूएस) की अतिरिक्त
आमदनी होगी।
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