बगैर परीक्षण वाली दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल तभी हो सकेगा जब उसकी मॉनीटरिंग की समुचित व्यवस्था हो जाएगी
जिन लोगों पर नई दवाओं का परीक्षण होता है, उनकी जिंदगी खतरे में न पड़े, उसका भी इंतजाम करना होगा
पूर्व मंजूरी खारिज
162 दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के लिए केंद्र से मिली मंजूरी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी है रोक
सरकार ने माना
2005 से 2012 के बीच 475 नई दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के दौरान हुई थी 2,644 लोगों की मौत
सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में सरकार को दिए हैं निर्देश
नई दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल अब आसानी से नहीं हो सकेगा। बगैर
परीक्षण वाली दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल तभी हो सकेगा जब उसकी मॉनीटरिंग की
समुचित व्यवस्था कर दी जाएगी। इसी तरह जिन लोगों पर नई दवाओं का परीक्षण
किया जाता है, उनकी जिंदगी खतरे में न पड़े, उसका भी पक्का इंतजाम करना
होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस आशय के निर्देश केंद्र सरकार को दिए।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अगुवाई वाली खंडपीठ ने उपर्युक्त व्यवस्था
सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि वह बगैर
परीक्षण वाली दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति कतई नहीं दे। केंद्र
सरकार ने भी अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन दे दिया है कि वह उन
162 दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति नहीं देगी जिनके बारे में उसने
पहले मंजूरी दे रखी थी।
खंडपीठ ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा है कि वह विभिन्न पक्षों
द्वारा दिए गए उन सुझावों पर विचार करे जो किसी भी तरह के गंभीर एवं
प्रतिकूल असर को टालने की खातिर दिए गए हैं।
अदालत ने इससे पहले कहा था कि मानव पर नई दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल से
पहले कुछ खास अनिवार्य मानकों का पालन करना पड़ेगा। खंडपीठ ने इसके साथ ही
क्लिनिकल ट्रायल की मॉनीटरिंग की समुचित व्यवस्था करने का भी निर्देश सरकार
को दिया था।
गौरतलब है, केंद्र सरकार ने अपने एक हलफनामे में यह स्वीकार किया था कि
वर्ष 2005 से वर्ष 2012 के बीच 475 नई दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के दौरान
2,644 लोगों की मृत्यु हो गई थी।