नई दिल्ली। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार दिलाने का कोई स्थायी उपाय नहीं है।
‘आईडीएफसी लिमिटेड की भारतीय ग्रामीण विकास रिपोर्ट 2013’ को जारी करते हुए रमेश ने कहा, ‘‘मैं नरेगा को स्थायी रोजगार पैदा करने वाला कार्यक्रम नहीं मानता। यह उन इलाकों में 20 से 25 साल का अवस्थांतरण कार्यक्रम है, जहां रोजगार का और कोई विकल्प नहीं है।’’
मंत्री ने कहा कि सरकार नरेगा के तहत टिकाऊ सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करके संप्रग की इस महत्वाकांशी योजना के क्रियान्वयन में बदलाव लाएगी।
इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में बेरोजगार लोगों को कम से कम 100 दिन का रोजगार दिया जाता है।
इस कार्यक्रम के साथ पेश आने वाली ‘मूलभूत समस्याओं’ पर टिप्पणी करते हुए मंत्री ने कहा कि ये योजना के तीन मुख्य लक्ष्यों के परस्पर विरोधी होने से पैदा हुई हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘नरेगा का पहला लक्ष्य मजदूरी देना है, दूसरा लक्ष्य सरकारी सामुदायिक संपत्ति का निर्माण करना है और तीसरा लक्ष्य ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाना है। ये तीनों लक्ष्य एकसाथ कभी भी हासिल नहीं किए जा सकते।’’
रमेश ने कहा कि सरकार नरेगा परियोजना के तहत कौशल विकास को लाने की भी योजना बना रही है क्योंकि वह इस योजना को माओवाद प्रभावित इलाकों में शुरू करने वाली है। इन इलाकों में 50 हजार युवाओं को कौशल और रोजगार दोनों उपलब्ध कराए जाएंगे।
इस कार्यक्रम के सकारात्मक पहलुओं के बारे में मंत्री ने कहा कि इससे बिहार और ओडिशा से पंजाब और हरियाणा के लिए प्रवास में काफी कमी आई है। ऐसा रेलवे द्वारा महसूस किया गया है क्योंकि बहुत अधिक अपेक्षित यात्रियों ने इन दोनों स्थानों के बीच यात्रा नहीं की है।
(भाषा)