बढ़ गई हैं बुजुर्गों की आर्थिक मुश्किलें – जयंतीलाल भंडारी

दुनिया में 60 साल की उम्र पार कर चुके बुजुर्गों की संख्या 84.10 करोड़
है, जबकि भारत में ऐसी बुजुर्ग आबादी नौ करोड़ के करीब है। भारत में साल
2015 में यह आबादी 12 करोड़ के आस-पास पहुंचने का अनुमान है। जाहिर है,
बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उनके लिए कहीं कुछ नहीं हो
रहा। संयुक्त राष्ट्र की बुजुर्गों से संबंधित एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया
है कि भारतीय समाज में बुजुर्गों को परिवार से मिलने वाले सम्मान में कमी
आती जा रही है। अधिकांश भारतीय बुजुर्ग अपने ही घर में उपेक्षित व एकाकी
जीवन जीने को अभिशप्त हैं। इसी तरह, पिछले दिनों रिसर्च ऐंड एडवोकेसी सेंटर
ऑफ एजवेल फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण में  शामिल भारत के 59.3 फीसदी लोगों 
ने कहा है कि युवा पीढ़ी बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति जागरूक नहीं है।
वर्तमान दौर में बढ़ती हुई महंगाई, परिवार द्वारा क्षमता से ज्यादा खर्च और
कर्ज से गड़बड़ाते बजट का प्रभाव बुजुर्गों के  जीवन पर भी पड़ रहा है।

साथ ही, हमारी आर्थिक और वित्तीय नीति भी बुजुर्गों को कोई सहारा नहीं दे
पा रही है। भारत में विकसित देशों के विपरीत जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा
अपने जीवन-संध्या की बेला में आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा से बहुत दूर है।
जिस असंगठित क्षेत्र में देश के कुल श्रम-बल का करीब 90 प्रतिशत समाया हुआ
है, वहां अब भी आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा अनजाना शब्द बना हुआ है। संगठित
क्षेत्र के श्रमिकों और सरकारी कर्मचारियों तथा कॉरपोरेट सेक्टर के कुछ
कर्मचारियों को कुछ हद तक पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा हासिल है। लेकिन
सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी जो धन-राशि पाते हैं, वह जीवन के सांध्य काल
के लिए बहुत कम होती है। इसके अलावा, कई राज्यों में मिलने वाली
वृद्धावस्था पेंशन भी मामूली है।

अर्थव्यवस्था की सबसे ज्यादा मार भी उन्हीं पर पड़ी है। वे बढ़ती हुई
महंगाई से परेशान हैं। जो अपनी आर्थिक बचत के भरोसे थे, वे कम ब्याज की
परेशानी भुगत रहे हैं। देश में बुजुर्गों के हितों पर ध्यान देना इसलिए भी
जरूरी है, क्योंकि हमारे यहां विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा का
उपयुक्त ताना-बाना नहीं है। लेकिन यहां तो चीजें उल्टी दिशा में जा रही
हैं। मसलन, प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में रिटायरमेंट पर
मिलने वाली सभी तरह की बचत पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव है। इसके अनुसार,
रिटायर होने पर व्यक्ति के पूरे रिटायरमेंट बेनिफिट को उसकी पूरी आय में
जोड़ा जाएगा।

यह प्रस्ताव बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति असंवेदनशील है, जबकि सरकार से
यह उम्मीद की जा रही थी कि बदलती जरूरतों को देखकर वह बुजुर्गों को कम
ब्याज दर और ज्यादा कर राहत की सुविधाएं देगी। इसके साथ ही बुजुर्गों के
इलाज और  पुनर्वास का सवाल भी है, जिस पर सरकार ही नहीं, पूरे समाज को
सोचना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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