सभ्य समाज पर मुजफ्फरनगर दंगा एक धब्बा है, जिसमें करीब 44 से अधिक लोग
अपनी जान गंवा चुके हैं। यह राजनीतिक पार्टियों का वोट बैंक एजेंडा तो हो
सकता है, परंतु इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के आपसी
भाईचारे को गहरा धक्का लगा है। इस दंगे की लपट में आने से हजारों किसानों
को गांवों से पलायन करना पड़ा है।
कवाल गांव की घटना तो एक नमूना भर
है। प्रदेश सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए ऐसे अनेक
निर्णय लिए हैं, जिससे दोनों समुदायों के बीच दरार बढ़ी है। प्रदेश में
पिछले 18 महीने में लगभग तीन दर्जन दंगे हुए हैं। किसी ने सोचा भी नहीं था
कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में कभी दंगे हो जाएंगे, क्योंकि वहां
एक ही जाति के हिंदू और मुसलमान रहते हैं। खासतौर से यह इलाका गन्ना बहुल
क्षेत्र है, जिसमें प्रति वर्ष दोनों समुदाय के किसानों को अपना गन्ना
मूल्य लेने के लिए आंदोलन करना पड़ता है। यह आंदोलन किसानों को एक सूत्र
में पिरोने का काम करता है। पर इस बार दोनों समुदायों में सरकार द्वारा
पक्षपात के कारण दरार इतनी चौड़ी हो गई कि गांव के प्रभावशाली एवं समझदार
व्यक्तियों की आवाजें भी दब के रह गईं और दंगों के कारण हजारों गांव वालों
को पलायन करने को मजबूर होना पड़ा।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान
हमेशा संगठित रहा है और राजनीतिक पार्टियों को उसके सामने झुकना पड़ा। सर
छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की आवाज पर लाखों
किसानों ने कई बार अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और सरकारों को उनकी मांगें
माननी पड़ीं। परंतु आज की मौजूदा स्थिति में किसान नेतृत्व कमजोर हो गया और
राजनीतिक पार्टियों ने किसानों को जात-बिरादरी की आरक्षण की नीतियों के
तहत बांट दिया। किसान नेता, किसानों की दिक्कतें समझ नहीं पाए और उनकी
मुश्किलों को दूर करने के बजाय उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से समझौते कर
लिए, जिससे वह किसान नेता से अपनी बिरादरी के नेता बनकर रह गए।
वर्ष
2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने किसानों को लुभाने का काम
किया। उसने गन्ने का भाव 350 रुपये प्रति क्विंटल, धान और गेहूं का भाव
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 50 फीसदी अधिक देने का वायदा किया, परंतु
किसान का धान एवं गेहूं एमएसपी से कम भाव पर बिका और गन्ने का भाव मात्र
280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया। यह गन्ने का भाव भी मिलों ने किसानों
को नहीं दिया, आज भी हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद लगभग 2,500 करोड़ रुपये
चीनी मिलों पर बकाया हैं। इस वर्ष 26 जनवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के
किसानों ने लगभग 20 वर्ष बाद अपनी एकता का सुबूत तब दिया था, जब मेरठ
कमिश्नरी पर दोनों समुदायों के किसानों ने हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने
के लिए अनिश्चितकालीन धरना दिया। यह धरना गन्ना मूल्य भुगतान के विलंब पर
ब्याज एवं वर्ष 2009-10 के बकाये भुगतान के बारे में था। 35 दिन बाद सरकार
झुकी और लिखित में किसानों की मांगें मान ली। तब ऐसा लगा कि पश्चिमी उत्तर
प्रदेश का किसान एक बार फिर जात-बिरादरीसे ऊपर उठकर एक सूत्र में बंधा हुआ
है।
मगर किसानों का एक साथ आना राजनीतिक पार्टियों के लिए शुभ
समाचार नहीं है, क्योंकि उनके लिए तो अंग्रेजों की डिवाइड ऐंड रूल की नीति
ही सबसे अच्छी है। किसानों को तोड़ने का मौका सरकार को 27 अगस्त की
छेड़छाड़ की उस घटना से मिला, जिसमें दोनों समुदाय के तीन युवक मारे गए। इस
घटना के बाद रिपोर्ट लिखने में पक्षपात किया गया और पीड़ित लड़की के
परिवार वालों के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज कर दी, जबकि दूसरे पक्ष के
खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। तत्कालीन डीएम और एसपी ने दूसरे पक्ष की
बात सुनने का आश्वासन दिया, मगर रातोंरात उनका तबादला हो गया।
हालांकि
बाद में लड़की के परिवारवालों के नाम प्राथमिकी से निकाल दिए गए, लेकिन यह
काम पहले हो गया होता, तो स्थिति इतनी विस्फोटक नहीं होती। इसके बाद दस
दिनों तक पंचायतें होती रहीं, मगर सरकार तमाशबीन बनी रही। सात सितंबर को
नंगला में बहुसंख्यक समुदाय की महापंचायत हुई, धारा 144 लागू थी, परंतु
किसी को रैली में जाने से नहीं रोका गया। उसके बाद जो कुछ हुआ, हम सबके
सामने है।
हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है, राजनीतिक पार्टियों का
जो भी एजेंडा हो, हमें तो एक साथ ही रहना है। इसलिए माहौल ठीक करने का
जिम्मा भी हमें ही उठाना होगा। आपको याद होगा कि 2009 के चुनाव में भाजपा
के एक युवा नेता ने एक समुदाय के हाथ-पांव काटने की बात कही थी। उस समय
तनाव इतना हो गया था कि कुछ भी हो सकता था, लेकिन हम लोगों के प्रयास से
पीलीभीत में कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। इस क्षेत्र की सांप्रदायिक
सौहार्द की एक मिसाल 2000 में सामने आई थी। उस समय पीलीभीत में प्रशासन ने
एक पुराना मंदिर तुड़वा दिया था। क्षेत्र की जनता मंदिर बनवाने में असमर्थ
थी, तब एक सिख ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी और एक मुस्लिम जज
ने मंदिर को संरक्षण देने का आदेश जारी किया था।
पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के किसानों ने पूरे राज्य के किसानों को एक रास्ता दिखाया है, यहां
का हर गांव भाईचारे का प्रतीक रहा है। किसान यदि फिर से एकजुट हो जाएं, तो
राजनीतिक पार्टियों को रोटी सेंकने का मौका नहीं मिलेगा। जात-बिरादरी से
ऊपर उठकर किसान बिरादरी के लिए यह संयम के साथ सोचने का वक्त है कि वह अपनी
आने वाली पीढ़ी को कैसी विरासत सौंपना चाहता है।