1 सितंबर से आरंभ हुए इंदिरा सागर बांध विस्थापितों के जल सत्याग्रह ने एक बार फिर इस विशालकाय बांध परियोजना और नर्मदा नदी पर बने अन्य बांधों के विस्थापितों से हुए अन्याय पर ध्यान केंद्रित किया है। इंदिरा सागर परियोजना में विस्थापन की समस्या विशेष तौर पर बहुत बड़े पैमाने की है। जैसा कि जल सत्याग्रह के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल बताते हैं, भारत के सबसे बड़े व एशिया के दूसरे नंबर के जलाशय इंदिरा सागर से 254 गांवों में रहने वाले लगभग 50000 परिवारों के तीन लाख सदस्य विस्थापित हो रहे हैं। भूमि के बदले भूमि के वायदे का उल्लंघन इतने व्यापक स्तर पर हुआ है कि आज विस्थापित किसानों में से लगभग 85 प्रतिशत किसान भूमिहीन मजदूर बनने की स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं। इस अन्याय को दूर करने के स्थान पर सरकारी तंत्र ने न्यायालयों के निर्देशों पर उल्लंघन करते हुए जलाशय में जल स्तर की सीमा 260 मीटर से ऊपर बढ़ानी शुरू की जिसके कारण बिना पुनर्वास के ही अनेक विस्थापित संकटग्रस्त हो गए। इस अन्याय के विरुद्ध विस्थापन क्षेत्र के तीन जिलों खंडवा, हरदा व देवास के प्रभावित गांवों में अभी तक 5 स्थानों पर जल सत्याग्रह आरंभ किया गया है। जल सत्याग्रह की शुरुआत पिछले वर्ष नर्मदा क्षेत्र में ओंकरेश्वर बांध के विस्थापितों ने की थी। इस आंदोलन से जल में खड़े होकर सत्याग्रह करने का नया तरीका नर्मदा बचाओ आंदोलन ने अपनाया था जिसने देश दुनिया में ध्यान आकर्षित किया था। जल सत्याग्रह के फलस्वरूप मध्य प्रदेश सरकार ने ओंकरेश्वर बांध के विस्थापितों के पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था के लिए पैकेज की घोषणा भी की थी जिसे आंदोलन की महत्वपूर्ण उपलब्धि माना गया। उम्मीद है कि इंदिरा बांध विस्थापितों से हो रहा अन्याय भी दूर होगा व उनके पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था संभव होगी। फिलहाल आरंभिक दौर में तो प्रशासन ने डराने धमकाने और गिरफ्तारी का रास्ता ही अपनाया है, जैसा कि उसने पहले ओंकरेश्वर बांध विस्थापितों के साथ भी किया था। हाल ही में विस्थापितों के लिए पूर्ण समर्पण से कार्य करने के लिए दूर दूर तक ख्याति प्राप्त करने वाली जल-सत्याग्रह की कार्यकर्ता चित्तरूपा पाटिल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया व विभिन्न आंदोलन स्थानों से लगभग 75 अन्य कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया। आंदोलन की उचित न्यायसंगत पुनर्वास की मांग व बांध के जल स्तर को 260 मीटर तक लाने की मांग इतनी जायज है कि सरकार को उत्पीड़न की राह अपनाने के स्थान पर शीघ्र ही समझौते की राह अपनानी चाहिए। अन्यथा नाहक पानी में निरंतर खड़े अनेक सत्याग्रहियों का स्वास्थ्य तेजी से गिरेगा। उधर नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों ने भी उनसे जारी अन्याय के विरुद्ध जिले की तीन तहसीलों में विरोध प्रदर्शन किए हैं। इन प्रदर्शनकारियों ने पुनर्वास संबंधी अनुचित व अतिश्योकितपूर्ण दावों के विरुद्ध आवाज उठार्इ है। साथ में बांधों द्वारा छोड़े गए पानी से उनके खेत व आवास डूबने का विरोध भी किया है। इन प्रदर्शनों ने पुनर्वास के नियम कानूनोंकी याद दिलाते हुए सरकार को कहा है कि जब तक पुनर्वास ठीक से पूरा नहीं होता है, उनके गांव जलमग्न नहीं किए जा सकते हैं। यहां यह बताना भी उचित होगा कि एक भिन्न संदर्भ में उत्तरप्रदेश में भी हाल के समय में जल सत्याग्रह हुआ था। जहां आंदोलनकारियों ने इस माध्यम से भूमि कटाव की बढ़ती समस्या की ओर सरकार का ध्यान केंद्रित किया था। इन जल सत्याग्रह का आयोजन सीतापुर जिले में हुआ। उत्तरप्रदेश में हजारों परिवार नदियों द्वारा भूमि कटाव के कारण दर दर भटकने को मजबूर है। गाजीपुर जिले (उत्तरप्रदेश) में गांव बचाओ आंदोलन के समंवयक प्रेमनाथ गुप्ता ने बताया, केवल हमारे जिले में 50 गांवों में 5000 एकड़ भूमि भूमि- कटाव की समस्या से प्रभावित हुर्इ है। सेमरा जैसे कर्इ गांवों का असितत्व मात्र संकट में है, पर सरकार के पास पुनर्वास की कोर्इ निशिचत योजना नहीं है। हजारों किसान भूमिहीन, बेघर होकर बेहद अनिशिचत भविष्य की आरे धकेले जा रहे है। (लेखक स्वतत्रं पत्रकार है) (विविधा फीचर्स)
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