मुंबई। विशेषज्ञों तथा विश्लेषकों ने नये भूमि अधिग्रहण कानून की आलोचना
करते हुए कहा है कि यह 12वीं पंचवर्षीय योजना में ढांचागत क्षेत्र में
1000 अरब डालर के निवेश लक्ष्य के लिए झटका है क्योंकि नये नियमों में भूमि
अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे तथा प्रभावित पक्षों से ‘संपूर्ण सहमति’ की
बात है।
भूमि अधिग्रहण विधेयका को पिछले सप्ताह लोकसभा में पूरे बहुमत के साथ पारित कर दिया गया।
कुशमैन एंड वेकफील्ड के कार्यकारी प्रबंध निदेशक संजय दत्त ने कहा, ‘नये
भूमि विधेयक से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सबसे तीव्र झटका लगेगा
क्योंकि लागत बढने से उनके अव्यवाहारिक होने की आशंका है।’
उन्होंने कहा कि ढांचागत परियोजनाएं तो पहले से ही दबाव में है इसलिए निजी क्षेत्र की उनमें रूचि नहीं हैं।
भूमि अधिग्रहण विधेयक दशकों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून (1894) की जगह लेगा
जिसमें भूमि अधिग्रहण के लिए किए जाने वाले भुगतान के बारे में स्थित बहुत
स्पष्ट है।
एचसीसी ग्रुप के मुख्य परिचालन अधिकारी राजगोपाल नोग्जा
ने कहा कि विधेयक से ढांचागत विकास पर और विराम लगेगा जहां अनेक परियोजनाएं
तो भूमि अधिग्रहण नहीं हो पाने के कारण पहले ही अटकी हैं।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के कार्यकारी निदेशक मनीष अग्रवाल ने कहा,
‘इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवल्परों तथा बैंकों पर वित्तीय दबाव को देखते हुए
उनमें नयी परियोजनाएं लेने की इच्छा नहीं है।’
(भाषा)