पटना:
राज्य में अब वैज्ञानिक तरीके से बालू घाटों की नीलामी होगी. ठेका लेने के
पहले ठेकेदारों को पुलिस थानों से चरित्र प्रमाणपत्र लेकर खान विभाग से
निबंधन कराना होगा. ये प्रावधान नयी बालू नीति में किये गये हैं, जिसे
राज्य मंत्रिमंडल ने मंगलवार को मंजूरी दी. सुप्रीम कोर्ट के
दिशा-निर्देशानुसार बनायी गयी इस नीति में राजस्व में वृद्धि के साथ ही
पर्यावरण सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी गयी है.
बिहार लघु खनिज समनुदान नियमावली, 1972 के तहत मंत्रिमंडल ने नयी बालू नीति
को मंजूरी दी है. नयी नीति के अनुसार, बालू निकासी के लिए एक योजना बना कर
देनी होगी. खनन योजना के अलावा बालू घाटों का ठेका लेनेवालों को पर्यावरण
स्वच्छता प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा. बालू उत्खनन क्षेत्रों का विकास,
पुनरुद्धार व पुनर्वास के लिए अलग से कोष बनाया जायेगा.
बालू निकासी के लिए गहराई की अधिकतम सीमा तय की गयी है, जो तीन मीटर तक
होगी. पांच वर्षो की बंदोबस्ती अवधि, बंदोबस्ती छोड़ने संबंधी प्रतिबंध व
पात्रता संबंधी शर्त के अनुपालन को अधिक प्रभावशाली बनाया गया है. कोईलवर
जैसे रेल पुल की रक्षा के लिए 600 मीटर की परिधि में बालू निकासी नहीं
होगी. इसी तरह एनएच व एसएच के पास भी बालू की निकासी नहीं होगी. बालू घाट
का संचालन प्रारंभ करने की तिथि तक राजस्व हित को ध्यान में रखते हुए वर्ष
2009 की वैकल्पिक व्यवस्था को लागू रखने का निर्णय लिया गया है.
इकाई माना गया है. भोजपुर, पटना व सारण जिलों को एक इकाई माना गया है. इसी
तरह रोहतास व औरंगाबाद एक इकाई होंगे. जमुई व लखीसराय को एक इकाई माना गया
है. यह नियम अन्य जिलों से गुजरनेवाली नदियों पर भी लागू होगा. इन इकाइयों
में बालू घाटों की छोटी-छोटी इकाई बांट कर उसका ठेका होगा. वर्ष 2007 से
बालू घाटों की नीलामी प्रतिवर्ष के बजाय तीन साल के लिए होती है. ठेका
लेनेवाले को उसके अगले साल 20 प्रतिशत अधिक और तीसरे साल भी 20 प्रतिशत
अधिक रकम देनी होती है.