1991 जैसे संकट की नौबत नहीं: मनमोहन

नई दिल्ली। डालर के मुकाबले गिरते रुपए और शेयर बाजार में जारी गिरावट को थामने के सरकार के प्रयासों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में 1991 के भुगतान संकट की पुनरावृत्ति और अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण की राह से हटने की आशंकाओं को शनिवार को खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री ने वैश्वीकरण और वित्तीय समस्याओं से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमाओं और संभावनाओं पर नए सिरे से गौर किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने समष्टिगत आर्थिक नीति निर्माण, उसके लक्ष्य और साधनों को लेकर नई सोच से काम करने का भी आह्वान किया।
मनमोहन सिंह ने कहा कि 1991 के दोहराए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उस समय विदेशी मुद्रा विनिमय निर्धारित दर पर होता था जबकि आज यह बाजार पर निर्भर है। हम केवल रुपए के उतार-चढ़ाव को ठीक कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि 1991 में देश में केवल 15 दिन की जरूरतों के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी। आज हमारे पास छह-सात महीने के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार है। इसलिए दोनों में कोई तुलना नहीं है। प्रधानमंत्री से जब यह पूछा गया कि 1991 जैसी संकट की स्थिति फिर बनने संबंधी आशंकाओं का कोई आधार नहीं है? उन्होंने कहा- नहीं, कोई सवाल नहीं उठता।
देश के चालू खाते के ऊंचे घाटे (कैड) और डालर के मुकाबले रुपए के सर्वकालिक नए निम्न स्तर तक गिरने के बीच प्रधानमंत्री से पूछा गया कि कुछ हिस्सों में ऐसी आशंका जताई जा रही है कि देश वापस 1991 जैसे संकट में घिर सकता है। 1991 के इस संकट के समय विदेशी मुद्रा पाने के लिए देश से सोना गिरवी रखना पड़ा था। इसके बाद ही देश को सुधारों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था और वैश्वीकरण की राह पर आगे बढ़ा।
प्रधानमंत्री शनिवार को यहां ‘आरबीआइ हिस्ट्री: लुकिंग बैक एंड लुकिंग एहेड’ नामक रिजर्व बैंक के इतिहास पर जारी चौथे खंड को जारी करने के अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर उनके रेसकोर्स स्थित सरकारी आवास पर एक छोटे कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मनमोहन सिंह से जब कहा गया कि चालू खाते का घाटा अभी भी काफी ऊंचा है, प्रधानमंत्री ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि सोने के अधिक आयात का इसमें प्रमुख योगदान है। लगता है कि हम गैर-उत्पादक आस्तियों में बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं। सरकार ने सोने के आयात को नियंत्रित करने और कैड को 70 अरब डालर के दायरे में रखने के लिए सोना, चांदी और प्लेटिनम के आयात पर शुल्क बढ़ाकर 10 फीसद कर दिया। ऊंचे कैड की वजह से रुपए पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार ने रुपए की गिरावट थामने के लिए भी कई उपाय किए हैं। इन आलोचनाओं के बारे में पूछे जाने पर    
कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जरूरत से ज्यादा जुड़ गई है और मौजूदा समस्या के लिए यही स्थिति जिम्मेदार है, क्या इस रास्ते से वापस कदम खींचे जा सकते हैं, प्रधानमंत्री ने कहा- ऐसी कोई संभावना नहीं है।
रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति की चिंता को लेकर सख्त मौद्रिक नीति के रास्तेपर चलने और सरकार की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की प्राथमिकता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री ने वैश्वीकरण और वित्तीय समस्याओं से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमा व संभावनाओं पर नए सिरे से गौर करने पर जोर दिया। उन्होंने आर्थिक नीति निर्माण, उसके लक्ष्य और साधनों पर नई सोच से काम करने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा- अब समय आ गया है जब हमें वैश्वीकरण की इस दुनिया में वित्तीय अड़चनों से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमाओं और संभावनाओं के कुछ क्षेत्रों पर नए सिरे से गौर करना चाहिए। वृहद आर्थिक नीति निर्माण, लक्ष्य और साधन अन्य क्षेत्र है जहां नई सोच की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि रिजर्व बैंक के गवर्नर पद के लिए नामित रघुराम राजन सहित भविष्य में बनने वाले गवर्नर इनमें से कुछ क्षेत्रों पर गौर करेंगे। रघुराम राजन भी इस अवसर पर श्रोताओं में मौजूद थे। रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति की चिंता को लेकर सख्त मौद्रिक नीति के रास्ते पर चलने और सरकार की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की प्राथमिकता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री की ये टिप्पणियां काफी महत्त्व रखती हैं। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण और बड़े देश में सामाजिक और आर्थिक बदलावों को आगे बढ़ाने के लिए एक हद तक राष्ट्रीय सहमति कायम किए जाने की जरूरत है।
रिजर्व बैंक की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस संस्थान ने देश की पूरी क्षमता के साथ सेवा की है लेकिन फिर भी सबसे बेहतर अभी होना बाकी है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक का इतिहास आजादी के बाद से भारत की आर्थिक वृद्धि की कहानी है। इस दौरान केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक व कर्ज नीतियों को दिशा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज सुविधा पहुंचाने में जो भूमिका निभाई है उसके लिए देश को उस पर गर्व है। प्रधानमंत्री ने सेवानिवृत्त होने जा रहे मौजूदा गवर्नर सुब्बाराव को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उन्होंने रिजर्व बैंक और देश की पूरी लगन व निष्ठा के साथ सेवा की। रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभालने जा रहे रघुराम राजन का स्वागत करते हुए मनमोहन ने कहा- राजन के रूप में हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त एक बेहतर अर्थशास्त्री मिला है, मुझे पूरी उम्मीद है कि उनके गवर्नर बनने के बाद रिजर्व बैंक नई ऊंचाइयों को छुएगा।
(भाषा)

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