किसानों पर भारी पड़ेगी खाद्य सुरक्षा- वी एम सिंह

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार आगामी लोकसभा चुनाव की
सीढ़ियां जिस खाद्य सुरक्षा अध्यादेश, 2013 के सहारे चढ़ना चाह रही है, वह
अध्यादेश खामियों से भरा हुआ है। खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू होने के बाद
जहां लाभार्थियों के अनाज आवंटन में कटौती होगी, वहीं वर्तमान में लाभ ले
रहे लाभार्थियों की संख्या में भी कटौती हो जाएगी। इस बिल में किसानों के
संरक्षण का कहीं कोई जिक्र ही नहीं किया गया है, जबकि केंद्र सरकार वर्तमान
सार्वजनिक प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से ही इसे लागू करने पर आमादा है।
जहां विपक्षी पार्टियों के साथ ही सहयोगी दल भी इस बिल पर संसद में बहस की
मांग करते आ रहे हैं, वहीं सरकार खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को संसद में हड़बड़ी
में पास करना चाहती है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही पूछा जा सकता है कि क्या
सरकार इस बिल से वाकई गरीबों का भला कराना चाहती है, या फिर केवल राजनीतिक
रोटियां सेंक रही है?

सरकार दावा कर रही है कि खाद्य सुरक्षा कानून
से गरीबों को भरपेट भोजन मिलेगा। मगर गहराई से बिल का अध्ययन करें, तो पता
चलेगा कि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश से गरीबों को वर्तमान में मिल रहे अनाज
में करीब 28 फीसदी की कटौती हो जाएगी। वर्तमान में अंत्योदय अन्न योजना
(एएवाई) और बीपीएल यानी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को हर महीने
35 किलो अनाज गेहूं या फिर चावल का आवंटन हो रहा है। केंद्र सरकार एक
परिवार पांच सदस्यों का मानती है। खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के प्रारूप में
परिवार के बजाय सदस्यों के आधार पर अनाज का आवंटन किया जाएगा। एक सदस्य को
हर महीने पांच किलो अनाज मिलेगा, इस तरह पांच सदस्यों के एक परिवार को केवल
25 किलो ही अनाज मिल पाएगा। ऐसे में उस परिवार को मिलने वाले अनाज में दस
किलो की कटौती हो जाएगी, जो उसे बाजार से खरीदना होगा। वैसे भी 25 किलो
अनाज पांच सदस्यों वाले परिवार के लिए 15 दिन का भी राशन नहीं है।

बात
की जाए अगर लाभार्थियों को होने वाले फायदे की, तो खाद्य सुरक्षा बिल में
इससे उलटा नुकसान हो रहा है। जहां बीपीएल परिवार को 145 रुपये में 35 किलो
गेहूं मिल रहा है, वहीं नए प्रारूप के आधार पर उसे केवल 25 किलो गेहूं 50
रुपये में मिलेगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर 10 किलो
गेहूं 135 रुपये में मिलेगा। नफा-नुकसान सामने है, बीपीएल परिवार को 145
रुपये के बजाय कम से कम 185 रुपये में 35 किलो गेहूं मिल पाएगा। जहां एएवाई
का सवाल उठता है, वहां स्थिति और भी गंभीर है। एएवाई परिवार को वर्तमान
में 35 किलो गेहूं 70 रुपये में मिल रहा है, नए प्रारूप में उसे 185 रुपये
में 35 किलो गेहूं मिलेगा। एएवाई और बीपीएल लाभार्थियों की वर्तमान में
संख्या करीब 45 करोड़ से अधिक है।

सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि
खाद्य सुरक्षा अध्यादेश से दो-तिहाई जनता को खाद्यान्न का लाभ मिलेगा, और
चूंकि यह गरीबों से जुड़ा हुआ मामला है तथा चुनाव नजदीक है, इसलिए कोई भी
पार्टी इस बिल का चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रही है। हकीकत यहहै कि खाद्य
सुरक्षा अध्यादेश लागू होने के बाद वर्तमान में पीडीएस से राशन ले रहे
लाभार्थियों की संख्या में भी कटौती हो जाएगी। वर्तमान में देश की 90 फीसदी
(करीब 100 करोड़) जनता को सरकार वर्तमान पीडीएस के माध्यम से अनाज का आवंटन
कर रही है, जबकि नए खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के माध्यम से वह 67 फीसदी
(लगभग 80 करोड़ जनता) को ही इसका लाभ देना चाहती है।

देश की जनता का
पेट भरने वाले किसानों के हितों का इस बिल में कोई जिक्र नहीं किया गया है।
आशंका व्यक्त की जा रही है कि एक, दो और तीन रुपये प्रति किलो की दर से जब
अनाज का आवंटन होगा, तो उसमें से काफी अनाज की कालाबाजारी भी होगी। वह
अनाज सस्ते दाम पर बाजार में आएगा, जिससे खाद्यान्न, जैसे गेहूं और चावल,
के दाम प्रभावित होंगे और इसका सीधा खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा।
किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं
मिलेगा। नतीजतन वह बर्बाद हो जाएगा। डॉक्टर, इंजीनियर या नेता का बेटा तो
अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना चाहता है, मगर किसान का बेटा किसान नहीं
बनना चाहता। अहम सवाल यह है कि जब तक खाद्यान्न को पैदा करने वाले हाथों के
हितों की रक्षा की गारंटी नहीं दी जाएगी, तब तक सरकार कैसे अनाज आवंटन की
गारंटी दे सकती है। इतना ही नहीं, खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में खाद्यान्न की
खरीद, भंडारण और परिवहन को दुरस्त करने का कहीं कोई जिक्र भी नहीं है।

केंद्र
सरकार आगामी चुनाव में बाजी पलटने वाले दांव के रूप में खाद्य सुरक्षा
अध्यादेश को पेश कर रही है, क्योंकि पिछले चुनाव में सरकार मनरेगा और
किसानों की कर्ज माफी जैसी योजनाएं चलाकर सत्ता पर कब्जा कर चुकी है। मगर
आज मनरेगा की क्या हालत है यह किसी से छिपा नहीं है। इसी तरह कर्ज माफी का
लाभ किसानों के बजाय बैंकों को कहीं अधिक मिला। एक भी किस्त देने वाले
किसान का कर्ज माफ नहीं हुआ, यह हकीकत है। दरअसल आम जनता को एक नया विधेयक
नहीं, बल्कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है, ताकि मौजूदा व्यवस्था
की खामियां दूर हो सकें।

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