हमीरपुर. बेशक घनाल कलां गांव के कई बुजुर्गों की उम्र 80 साल
हो गई है, लेकिन अपनी जमीन के कागजों को लेने के लिए उन्हें नौ किलोमीटर
दौडऩा पड़ रहा है। पिछले 8 सालों से वे अपने घर के पास सिर्फ एक पटवारखाने
की आस में कई किलोमीटर का सफर कर चुके हैं। मगर अब जीवन के आखिरी पड़ाव में
इन बुजुर्गों की आस अपनी जमीन के लिए टूटने लगी है।
गांव में पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर बुजुर्गों का टोला इसी उम्मीद में
एक दूसरे को ढांढस बंधाता है कि कल की सुबह उनके लिए खुशी लाएगी। घनाल
गांव में 2005 में बंदोबस्त का काम शुरू हुआ था। गांव के पास कहीं पर इससे
जुड़े काम के लिए पटवारखाना न होने के चलते बुजुर्गों को वहां से 9
किलोमीटर दूर गांव से उल्टी दिशा में कलंझड़ी में स्थित पटवारखाने में जाना
पड़ता है।
लाठी लेकर बुजुर्ग पहले हमीरपुर आते हैं, फिर वहां से बस पकड़ कर
कलंझड़ी जाते हैं। पिछले कई सालों से उनकी ऐसी ही हालत है। कभी कर्मचारी
नहीं मिलते, कभी काम नहीं होता। गांव में अधिकतर महीने अब भी बुजुर्गों के
नाम पर ही होने के कारण उन्हें ही उम्र पीछे छोड़ कर कई किलोमीटर का
अकेले सफर करना पड़ रहा है।
फासला नापना मुश्किल
बुजुर्गों के लिए अपनी उम्र के आगे फासला नापना मुश्किल हो रहा है। गांव
के अधिकतम बुजुर्ग 65 से 80 साल की उम्र के बीच हैं। पुरखों की जमीन से
उनका नाता है। इस संबंध में कार्यकारी तहसीलदार बंदोबस्त हमीरपुर और ताल के
नायब तहसीलदार स्वर्ण सिंह का कहना है कि इस बारे में उच्चाधिकारियों को
बताया जाएगा। जल्द ही समस्या हल होगी।
टूट रही आस
ञ्चजमीन के कागजों और पटवारखाना खुलने की आस अब इन बुजुर्गों में बढ़ती
आखिरी उम्र के साथ टूट रही है। गांव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर शिवनगर
में पटवारखाना है। यहां रिकॉर्ड आए तो उनकी दौड़ खत्म होगी।
क्या कहते हैं बुजुर्ग
80 साल के गरीब दास, ब्रह्मी देवी (78), रणजीत सिंह (76), कश्मीर चंद
(76), किशन चंद (78), संसार चंद(72), पुरुषोत्तम सिंह(72), सुखदेव (66),
सरोज देवी (65), हंसराज (65), ध्यान सिंह, मोहिंद्र सिंह, सतीश कुमार कहते
हैं कि वे कई सालों से जमीन के दस्तावेजों और पटवारखाने के लिए 9 किलोमीटर
दौड़ रहे हैं। अब उनकी आस टूट रही है।