भारत में 17 करोड़ से ज्यादा बच्चों का मुश्किल में जीवन

नई दिल्ली। सरकार अपने कुल खर्च का एक फीसद से भी कम बच्चों के संरक्षण पर खर्च करती है

और देश में 17 करोड़ से ज्यादा बच्चे और किशोर कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। यह बात गुरुवार को बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने कही।
बाल श्रम विरोधी कार्यकर्ता शांता सिन्हा ने यहां प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि बाल एवं किशोर अधिकारों की रक्षा व उनको बढ़ावा देने की खातिर कानूनी और प्रशासनिक ढांचे में सुधार के लिए सरकार के काफी प्रयत्न के बावजूद बाल सुरक्षा पर कुल सरकारी खर्च मात्र 0.034 फीसद है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एफएक्सबी केंद्र और पीएचएफआई के भारतीय लोक स्वास्थ्य संस्थान की ओर से बाल अधिकारों पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 14 से 18 साल उम्र वर्ग में चार करोड़ 20 लाख बच्चे हैं, जो स्कूल नहीं जाते और वित्तीय और निजी सुरक्षा के बगैर ऐसे वातावरण में रहते हैं जहां उनका उत्पीड़न आसानी से संभव है। उन पर जल्द शादी और लैंगिक भेदभाव का खतरा

रहता है। उन्हें गरिमापूर्वक जीवन जीने और स्वतंत्रता से रहने के लिए राज्य एवं इसकी सेवाओं की जरूरत है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष के श्रीकांत रेड्डी का मानना था कि स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए समुदाय आधारित समाधान, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों एवं किशोरों की सामाजिक एकजुटता उन्हें शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखने का बेहतरीन मार्ग हैं।
एफएक्सबी केंद्र में रिसर्च प्रोग्राम आॅन चिल्ड्रेन एंड ग्लोबल एडवर्सिटी (आरपीसीजीए) के निदेशक डा थेरेसा बेटनकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को अपने द्रुत आर्थिक विकास को समान और सभी नागरिकों के लिए निरंतर बनाए रखना होगा। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य भारत में बाल एवं किशोर अधिकारों को आगे बढ़ाना है।
सम्मेलन में बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने बाल अधिकार योजना लागू करने में सरकारी नीतियों जैसे समन्वित बाल सुरक्षा योजना (आईसीपीएस) के समक्ष उपेक्षित और उत्पीड़ित बच्चों की आवश्यकताओं का समाधान करने में आ रही चुनौतियों पर भी चर्चा की। (भाषा)

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