नयी दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने देश में मिलावटी दूध की बिक्री पर चिंता जताते हुए आज कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है और इस पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकारों की ओर से कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन और पिनाकी चंद्र घोष ने पूछा, ‘‘यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसा पूरे देश में हो रहा है। सरकार क्या कार्रवाई कर रही है?”
पीठ ने हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली की सरकारों को निर्देश दिया कि वे अपना जवाब दाखिल कर बतायें कि वे मिलावटी दूध पर रोक लगाने के लिए क्या कार्रवाई कर रहे हैं क्योंकि केंद्र ने कहा है कि इस मुद्दे पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है।
न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर जनहित याचिका के दायरे को विस्तारित करके उसमें देश के अन्य राज्यों को शामिल करेगा।
पीठ ने मामले की अगली सुनवायी की तिथि 31 जुलाई तय की और स्पष्ट किया कि राज्यों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय नहीं दिया जाएगा।
न्यायालय ने माना कि मिलावट मांग और आपूर्ति में अंतर के चलते होती है। न्यायालय उत्तराखंड के स्वामी अच्युतानंद तीर्थ के नेतृत्व में नागरिकों के एक समूह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवायी कर रहा था।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि यूरिया, डिटर्जेंट, रिफाइंड तेल, कॉस्टिक सोडा और सफेद पेंट का इस्तेमाल करके सिंथेटिक दूध और मिलवाटी दूध और दूध से बने उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। अध्ययनों के अनुसार ये मानव जीवन के लिए ‘‘बहुत नुकसानदायक” है तथा इससे कैंसर जैसी बीमारी होे सकती है।
जनहित याचिका में सिंथेटिक और मिलवटी दूध एवं विभिन्न डेयरी उत्पादों पर रोक लगाने की मांग के साथ ही गुणकारी, स्वच्छ और प्राकृति दूध के उत्पादन, आपूर्ति और बिक्री पर एक ‘समग्र’ नीति बनाने की मांग की है। गत 21 अक्तूबर को केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया था कि देश में 68 प्रतिशत से अधिक दूध भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण :एफएसएसएआई: द्वारा तय मानकों के अनुरूप नहीं है।
केंद्र ने एफएसएसएआई के सर्वेक्षण का उल्लेख किया था जिसमें पाया गया था कि ‘‘मानक पूरा नहीं करने वाला” 68 प्रतिशत दूध शहरी क्षेत्रों में पाया गया जो कि खुला दूध था।
एफएसएसएआई के वर्ष 2011 सर्वेक्षण के अनुसार मिलावट का सबसे समान और आसान तरीका पानी की मिलावट है। मानकों के अनुरूप नहीं होने का मुख्य कारण ग्लूकोज और स्किम्ड दूध पाउडर का मिलाना है। यह भी पाया गया कि कुछ नमूनों में डिटर्जेंंट था।
केंद्र के हलफनामे में यह भी कहा गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में मानक के अनुरूप नहीं रहने वाला 83 प्रतिशत दूध खुला दूध था।
हलफनामा न्यायालय द्वारा नौ मई 2012 को जारी नोटिस के जवाब में दाखिल किया गया था।