बीड़ी मजदूरों का नहीं कोई खेवनहार

गोबर्धना (पच) संवाद सूत्र : बीड़ी के धुएं में घुटती जिंदगी। रामनगर के सोनखर पंचायत का शिवपुरवा गांव कुछ ऐसा ही बंया कर रहा है। लगभग दो सौ परिवारों का बंगाली बाहुल्य रिफ्यूजी परिवार जिसे सरकार के तरफ से चार एकड़ 18 डिसमिल जमीन जीवन यापन के लिए बंगला देश एवं पाकस्तिान बंटवारे के समय मिला हुआ था। आज बटते परिवारों के बीज जमीन के कई टुकड़े हो चुके हैं। कुछ परिवारों के पास केवल रहने के लिए घड़ारी ही रह गया है। ऐसे में इस गांव के लोग सारे परिवारों का मुख्य पेशा बीड़ी बनाना ही रह गया है। लगभग सारे परिवारों की महिलाएं इस धंधे से जुड़ी है। ठीकेदार तेंदु के पत्ते एवं तंबाकू दे जाता है ये दिन रात एक कर इसे बनाने में जुटे रहते हैं। धीरेन विश्वास, विनय मंडल, देवाशीष चक्रवर्ती, अशोक बोस आदि ग्रामीणों का कहना है कि ठेकेदार एक हजार बीड़ी बनाने के केवल 50 से 60 रुपये देता है। जबकि एक हजार बीड़ी तैयार करने में पूरा दिन तो कभी दो दिन लग जाते हैं। आज जबकि महंगाई के जमाने ं एक दिन की मजदूरी सरकार के तरफ से 138 रुपये रखी गई है। ऐसे में इतने कम पैसे में ठिकेदार इनका शोषण ही करता है। इधर इस घरेलू उद्योगों में मजदूरी कर रही मु. संध्या रानी, अनिता रानी, मंजू रानी, सुरूबाला, कदनी आदि महिलाएं का कहना है कि एक तो हमें बहुत कम मजदूरी मिलती है जिससे मुश्किल से सब्जी खरीदी जा सकती है। उपर से बैठकर बीड़ी बनाने से तंबाकू आंखों में लगती है जिससे असमय आंख खराब होना, पेट में दर्द होना एवं कभी कभी टीबी की बीमारी भी सौगात में मिल जाती है। सोनखर पंचायत के मुखिया अंजनी कुमार ने बताया कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत शिवपुरवा बंगाली कॉलोनी वासियों को काम दिया जाता है। उसके बाद भी बचे समय में ये लोग बीड़ी बनाने का कार्य करते हैं। ये इन लोगों का पुश्तैनी धंधा है। भले ही बाहरी ठेकेदार इन्हें बीड़ी बनाने के कम रुपये देता है लेकिन फिर भी इन्हें यहीं काम अच्छा लगता है।

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