यह सूचना के अधिकार की ताकत का ही नतीजा है कि आज राजनीतिक दल इस कानून से काफी आतंकित है। वे सूचना के अधिकार कानून के तहत जवाब देने से कतरा रहे हैं। केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले का विरोध करते हुए एक हो गए हैं। कह रहे हैं राजनीतिक दल कोई सरकारी संस्था थोड़े ही है जो उस पर सूचना के अधिकार का शिकंजा कसा जाए।कहा जा रहा इससे लोकतंत्र कमजोर होने का डर है और यह संवैधानिक संकट है।
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