जनसत्ता ब्यूरो, भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से लाडली लक्ष्मी योजना और बेटी बचाओ अभियान चलाए जाने के बावजूद मध्य प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या की चिंतनीय स्थिति सामने आई है। ताजा जनगणना के मुताबिक बीते एक दशक में प्रदेश में स्त्री-पुरुष अनुपात तो बढ़ा है लेकिन 0 से छह साल तक के बच्चों का लिंगानुपात खासा घट गया है। यानी महिलाएं तो बढ़ गई हैं लेकिन लड़कियां घट गई हैं।
2001 से 2011 के दौरान शिशु लिंगानुपात में 14 अंकों की बड़ी गिरावट आई है। छह साल तक के आयु वर्ग में प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 932 से घटकर 918 रह गई है। यह 1981 से लेकर अब तक का सबसे कम लिंगानुपात है और राष्ट्रीय औसत से भी कम है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 927 से 8 अंक घटकर 919 रह गई है। यह 1961 से अब तक का सबसे कम लिंगानुपात है। इसमें सबसे ज्यादा 11 अंकों की गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में आई है। यह जानकारी मप्र के जनगणना निदेशक सचिन सिन्हा ने सोमवार को दी।
2011 की जनगणना के तुलनात्मक नतीजे जारी करते हुए उन्होंने बताया कि इस जनगणना के मुताबिक मप्र में बच्चों के मुकाबले बच्चियों की सबसे कम संख्या (1000 पर 829) मुरैना जिले में दर्ज की गई है। मुरैना के बाद ग्वालियर, भिंड, दतिया, श्योपुर, शिवपुरी जैसे चंबल क्षेत्रों के बाकी जिलों में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई है जबकि आदिवासी बहुल अलिराजपुर जिले में 6 साल तक के बच्चों का लिंगानुपात सबसे ज्यादा (1000 पर 978) रहा है। अलिराजपुर के बाद डिंडौरी, मंडला, बालाघाट, अनूपपुर, शहडोल, झाबुआ जैसे आदिवासी बहुल जिलों में भी बच्चों की तुलना में बच्चियों की संख्या बाकी जिलों से अधिक पाई गई है। इसकी वजह यह है कि आदिवासियों के लिए बेटी बोझ नहीं बल्कि फायदेमंद साबित होती है । इसलिए वे कन्या भ्रूण हत्या की बुराई से अभी तक बचे रहे हैं।
2001 से 2011 के दशक में मप्र की कुल जनसंख्या में 1 करोड़ 23 लाख का इजाफा हुआ है। जबकि छह साल तक के बच्चों की आबादी 27,181 ही बढ़ी है। यह आबादी देश में चार फीसद बढ़ी है जबकि मप्र में मात्र 0.25। इसमें भी प्रदेश में लड़कियों की संख्या 29 हजार घटी है जबकि लड़कों की संख्या 56 हजार बढ़ी है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की आबादी 1.18 लाख घटी है जबकि शहरी क्षेत्र में 1.45 लाख बढ़ी है। मप्र के 50 में से 26 जिलों में बच्चों की जनसंख्या में 2001 के मुकाबले गिरावट आई है। यह गिरावट छिंदवाड़ा, बैतूल व रीवा जिलों में सबसे ज्यादा हुई है।
प्रदेश की जनसंख्या 7 करोड़ 26 लाख और उसमें 6 साल तक के बच्चों की आबादी 1 करोड़ 8 लाख दर्ज हुई है। गांवों के मुकाबले शहरों में आबादी ज्यादा और लगातार बढ़ी है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ज्यादा बढ़ी है। नतीजे में लिंगानुपात 919 से 12 अंक बढ़कर 931 हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में 2001 में एक हजार पुरुषों पर 927महिलाएं थी जो 2011 में बढ़कर 936 हो गई है। शहरी क्षेत्र में महिलाओं का यह आंकड़ा 898 से बढ़कर 918 हो गया है। इस तरह लिंगानुपात में शहरी क्षेत्रों में 20 अंकों का इजाफा हुआ है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 9 अंकों की ही बढ़ोतरी हो सकी है।
स्त्री-पुरुष अनुपात में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी बालाघाट जिले में हुई है। इस आदिवासी बहुल जिले में लिंगानुपात 1021 पाया गया है। यानी महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो गई हैं। इस जिले के शहरी क्षेत्रों में एक हजार पुरुषों पर 1024 महिलाएं हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री-पुरुष संख्या बराबर है। हालांकि ये आंकड़े 2011 की जनगणना से कमतर हैं। 2001 में भी सर्वाधिक लिंगानुपात (1022) बालाघाट जिले में था, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 1030 और शहरी क्षेत्रों में 970 थी। अब ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में महिलाएं बढ़ गई हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सबसे कम लिंगानुपात (828) भिंड जिले में और शहरी क्षेत्र में सबसे कम लिंगानुपात (858) मुरैना जिले में दर्ज किया गया। कुल मिलाकर प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात बढ़ा है लेकिन शिशु लिंगानुपात में लगातार गिरावट देखी गई है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह लिंगानुपात 934 से घटकर 923 रह गया है जो 1981 से अब तक का सबसे कम है। चंबल क्षेत्र के बाद रीवा क्षेत्र में बच्चों के मुकाबले बच्चियों की संख्या सबसे कम पाई गई है।
बीते दशक में मप्र की जनसंख्या वृद्धि दर में 4 फीसद की कमी आई है। इसके बावजूद यह दर 20.3 फीसद है जो राष्ट्रीय दर 17.7 फीसद से अधिक है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में आबादी वृद्धि दर 18.4 फीसद रही है। जबकि शहरी क्षेत्र में यह 25.7 फीसद दर्ज की गई है। सर्वाधिक पांच करोड़ 26 लाख आबादी ग्रामीण क्षेत्र में और दो करोड़ आबादी शहरी क्षेत्र में रह रही है। मप्र का आबादी का घनत्व राष्ट्रीय औसत से कम पाया गया है। यह घनत्व सबसे ज्यादा भोपाल और इंदौर जिलों में और सबसे कम आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले में है।
डिंडौरी जिले के बाद श्यौपुर, रायसेन व पन्ना जिलों में जनसंख्या का घनत्व बाकी जिलों से कम है।
जनगणना से यह भी सामने आया है कि मप्र में 490 गांव कम हुए हैं जबकि 82 शहर बढ़े हैं। 28.8 घरों में ही शौचालय हैं जबकि 32.1 फीसद घरों में टीवी और 46.8 फीसद घरों में मोबाइल फोन हैं। सूबे की करीब 40 फीसद आबादी 18 साल से कम की है। सबसे ज्यादा शहरी आबादी इंदौर जिले में और सबसे ज्यादा ग्रामीण आबादी रीवा जिले में है।