अस्पताल के लिए गर्भवती पत्नी को पीठ पर लादकर 40 किमी चला आदिवासी

ईएनएस व एजंसियां, कोट्टायम। एक आदिवासी युवक अपनी सात महीने की गर्भवती पत्नी के इलाज के लिए उसे कंधों पर लादकर भारी बारिश में जंगल में 40 किलोमीटर तक भटकता रहा। पूरे दिन चलने के बाद उसे एक गाड़ी मिली जिससे वह अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल पहुंचा। वहां उसकी पत्नी तो बच गई। लेकिन डाक्टर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को नहीं बचा पाए।
कोन्नी के जंगल में स्थित अपने घर से अय्यप्पन अपनी गर्भवती पत्नी सुधा को लेकर शुक्रवार को चला था। कुछ देर बाद सुधा ने और चलने इनकार कर दिया। इसके बाद अयप्पन ने एक कपड़े के जरिए सुधा को अपनी पीठ पर बांधा और चल पड़ा। देर शाम उसे एक गाड़ी मिली। हालांकि अयप्पन यह नहीं बता पा रहा है कि जंगल में उसने कितना लंबा रास्ता तय किया। लेकिन माना जा रहा है कि गर्भवती पत्नी को अपनी पीठ पर बांधकर वह करीब 40 किलोमीटर तक जंगल में चलता रहा।
शनिवार सुबह करीब छह बजे वह गाड़ी से पथनामथिट्टा जिले के जिला अस्पताल पहुंचा। अय्यप्पन की पत्नी के पेट की मांसपेशियों में खिंचाव होने की वजह से उसे रविवार को कोट्टायम मेडिकल कालेज अस्पताल रेफर कर दिया गया। कोट्टायम मेडिकल कालेज अस्पताल की स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डा. कुंजम्मा रॉय ने बताया कि महिला को पेट की मांसपेशियों में खिंचाव हो रहा था। उन्होंने बताया कि मां को तो बचा लिया गया। लेकिन बच्चे को

नहीं बचाया जा सका। सुधा का प्रसव कराकर मृत शिशु को निकाल लिया गया। डा. रॉय ने कहा कि महिला को जब अस्पताल लाया गया, तब उसका शरीर सूजा हुआ था, रक्तचाप बढ़ा हुआ था और उसके पेट की मांसपेशियों में खिंचाव हो रहा था। गर्भावस्था में यह स्थिति मां और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदेह होती है।
पथनामथिट्टा जिले के आदिवासी कल्याण विभाग के अधिकारी मोहन कुमार ने बताया कि यह दंपति खानाबदोशों की तरह जीवन यापन करने वाले मालामबंदराम समूह का सदस्य है। ये लोग अस्थायी रूप से झोपड़ियां बनाकर रहते हैं। कहीं और जाने से पहले वे किसी खास जंगल से कुछ महीने तक जंगली उत्पाद जमा करते हैं। मोहन कुमार ने बताया कि एक महीने पहले ही पड़ोसी जिले कोल्लम से यह दंपति कोन्नी के जंगलों में आया है। इस जंगल में इस समय मालामबंदराम जनजाति समुदाय के करीब दो दर्जन परिवार रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि अगर ये लोग किसी खास इलाके में हैं तो वे वहां कुछ निशानियां छोड़ देते हैं, जैसे नजदीकी जंगली सड़क के किसी पोल पर बोतल टांग देना। आदिवासी कल्याण विभाग के कर्मचारी ऐसी जगहों पर इनके खाने के लिए कुछ खाद्यान्न छोड़ आते हैं। मोहन कुमार ने बताया कि इन जनजातियों का बाहरी दुनिया से संपर्क बहुत कम ही होता है।
वन विभाग के अधिकारी सुरेश बाबू ने बताया कि हो सकता है कि यह जोड़ा जंगल में रास्ता भटक गया हो।

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