पटना। यह अजीब है कि बिहार में 1200 करोड़ से ज्यादा के हुए चावल घोटाले पर एनडीए सरकार के मुखिया नीतीश कुमार क्यों खामोश हैं? 900 करोड़ के पशुपालन घोटाले पर लालू प्रसाद की सरकार को जाना पड़ा था।
सूचना के अधिकार के तहत मुहैया कागजातों के आधार पर यह बात स्थापित हो गयी है कि करोड़ों के चावल मिल मालिक, अधिकारी और लुटेरे चुग गये। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति पर चलने वाली एनडीए सरकार ने इस मामले में सर्टिफिकेट केस, कइयों पर एफआइआर और लाइसेंस रद्द करने की खानापूरी की है। पर असल सवाल यह है कि लूट की रकम की वापसी कैसे होगी? लूट का खुलासा सरकार के दस्तावेजों से ही होता है। यह कोई विरोधी दल का आरोप नहीं है।
यह मामला वर्ष 2011-12 के दौरान का है। तब खाद्य उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने नीति में बदलाव करते हुए धान की खरीद के बाद उसकी मीलिंग की जिम्मेदारी मिलों को दे दी। मजे की बात यह है कि ऐसे-ऐसे मिलों को मीलिंग के लिए धान दिये गये जो सिर्फ कागजों पर कायम हैं। बक्सर या पटना के मिल मालिकों ने उत्तर बिहार के जिलों से धान का उठाव किया है। राज्य में राइस मिलों की तादाद 1300 सौ है।
आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय को काफी हिल-हुज्जत के बाद जो सूचनाएं मिलीं वह चौंकाने वाली है। धान लेकर भाग गये राइस मिलों का चयन दोबारा धान की मीलिंग के लिए किया गया है। ऐसा राज्य खाद्य निगम की ओर से किया गया है। यानी ऐसे मिल जिन पर धान नहीं लौटाने के आरोप हैं, वैसे ही मिलों का चयन किस आधार पर किया गया? उदाहरण कि लिए भोजपुर के राज राइस मिल, लाइफ लाइन राइस मिल, अन्नपूर्ण राइस मिल जैसे नाम शामिल है। इस सूची में दर्जनों नाम हैं।