सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। मूल्य बढ़ने की आस में किसानों ने गेहूं बिक्री से हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया है। इस वजह से गेहूं उत्पादक राज्यों की मंडियों में आवक लड़खड़ा गई है। व्यापारियों की प्रतिस्पर्धा में सरकारी एजेंसियों की खरीद पर भी असर पड़ रहा है।
देश की प्रमुख अनाज मंडियों में गेहूं की आवक घट गई है। यह गिरावट सरकार के लिए चिंता का सबब भी हो सकती है। लेकिन गेहूं उत्पादक राज्यों से मिली अधिकृत सूचना में बताया गया है कि मंडियों में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक बोला जाने लगा है। इसी के मद्देनजर आगामी महीने में और अच्छा भाव मिलने का अनुमान है। लिहाजा, ज्यादातर किसानों ने फिलहाल गेहूं बेचने से हाथ रोक लिया है।
गेहूं की सरकारी खरीद एक अप्रैल से शुरू होकर जून तक चलती है। गेहूं खरीद वाली विभिन्न मंडियों में दैनिक आवक (15 मई) 1.71 लाख टन पर सिमट गई है। पिछले साल की इसी अवधि की दैनिक आवक चार लाख टन से भी अधिक थी। अब तक गेहूं की कुल आवक 2.73 करोड़ टन हो चुकी है। जबकि इसके मुकाबले पिछले साल इसी अवधि तक 3.16 करोड़ टन गेहूं मंडियों में आ चुका था। दैनिक आवक में आई तेज गिरावट के चलते कुल आवक और घटेगी। वहीं, गेहूं की सरकारी खरीद भी प्रभावित होगी।
पंजाब की अनाज मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक पिछले साल के 81 हजार टन के मुकाबले 25 हजार टन रह गई है। हरियाणा की हालत और भी खराब है, यहां दैनिक आवक 28 हजार टन से घटकर चार हजार टन पर सिमट गई है। मध्य प्रदेश की हालत भी संतोषजनक नहीं है। यहां की मंडियों में पिछले साल की दैनिक आवक (15 मई) 1.21 लाख टन के मुकाबले 73 हजार टन पर ठहर गई है। पिछले एक सप्ताह में गिरावट और तेज हुई है। जबकि राज्य सरकार 1350 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 150 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे रही है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले उत्तर प्रदेश में भी आवक तेजी से घटी है। यहां पिछले साल इसी तारीख को 1.41 लाख टन की दैनिक आवक होती थी, वह कम होकर 36 हजार टन रह गई है।