डॉक्टर्स को पता ही नहीं यहां मरीजों पर दवाएं असर कर रहीं या नहीं- पीलूराम साहू

रायपुर. आंबेडकर अस्पताल में मरीजों को दी जा रही दवाओं की कोई गारंटी नहीं है। दवाएं असर कर रही हैं या नहीं यह बात डॉक्टर भी नहीं जानते। पिछले चार साल में मरीजाें के लिए लगभग 28 करोड़ की दवाएं खरीदी जा चुकी हैं, लेकिन एक भी दवा की लेबोरेटरी में जांच नहीं करवाई गई। इससे यह इससे यह नहीं पता चल पा रहा है कि मरीजों को दी जा रही दवा का उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, जबकि नियमानसार हर साल टेंडर के बाद जो दवाएं सप्लाई की जाती हैं, उनकी गुणवत्ता की जांच करवाना अनिवार्य है।

लोकल ऑडिट ने भी जनवरी 2009 से अगस्त 2012 के बीच सत्ताई करोड़ अड़सठ लाख की दवा बिना जांच मरीजों को बांटने पर आपत्ति की है। इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन दवा की जांच को लेकर गंभीर नहीं है। फूड एंड ड्रग कंट्रोलर विभाग भी चुप बैठा है। भास्कर की पड़ताल में पता है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने सितंबर 2002 में आदेश जारी किया है कि स्टोर में दवा प्राप्त होते ही प्रत्येक बैच की दवाओं का टेस्ट करवाना जरूरी है।

यह टेस्ट ड्रग कंट्रोलर से मान्यता प्राप्त किसी व्यवसायिक प्रयोगशाला में करवाने के निर्देश हैं। टेस्ट में होने वाला खर्च दवा सप्लाई करने वाली फर्म को वहन करना है। टेंडर में इसका साफ जिक्र भी रहता है। बिलों भुगतान करते समय टेस्ट में खर्च हुई रकम कंपनी के खाते से काट ली जाती है।

नियम विरुद्ध बांटी जा रहीं दवाएं
दवाओं का वितरण बिना टेस्ट कराए नहीं किया जा सकता। पर अस्पताल में हो इसका उल्टा रहा है। अस्पताल प्रबंधन नियम का पालन कर ही नहीं रहा। दवा खरीदी और टेस्टिंग के बारे में बारीकी से छानबीन करने पर पता चला है कि दो अलग-अलग किश्तों में 15 करोड़ 50 लाख और 12 करोड़ 18 लाख की दवाएं खरीदी गई हैं। दोनों बार खरीदी के बाद टेस्टिंग के नियम का पालन नहीं किया गया।

अस्पताल प्रबंधन दे रहा सफाई
अस्पताल प्रबंधन ने दवाओं का टेस्ट नहीं कराने पर अपनी मजबूरी जताई है। कैग को भेजे जवाब में कहा गया है कि दवा की जांच की सुविधा रायपुर में नहीं है। कोलकाता की ड्रग टेस्ट लैब में दवा भेजने पर जांच रिपोर्ट आने में तीन से छह माह लग जाते हैं। तब तक मरीजों को दवा के अभाव में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए दवा का वितरण किया जा रहा है।

इसलिए नहीं हो रही जांच
राजधानी में लेबोरेटरी है, लेकिन स्टाफ व मशीन की कमी के कारण दवाओं की जांच नहीं हो पा रही है। बिलासपुर में लेबोरेटरी प्रस्तावित है, लेकिन यह भी अटकी है। स्थानीय लेबोरेटरी में जांच नहीं होने से ड्रग कंट्रोलर विभाग दवाओं को जांच के लिए सेंट्रल लेबोरेटरी कोलकाता भेजता है। अस्पताल प्रबंधन चाहे तो दवा का टेस्ट मान्यता प्राप्त निजी लैब में करता सकता है, लेकिन ऐसा नहीं कर रहा है।

बिलों की जांच से खुला राज
लोकल ऑडिटर ने अस्पताल के बिलों की जांच में पाया कि किसी भी बैच की दवा का लैब में टेस्टनहीं कराया गया। लोकल ऑडिट के लेखा दल ने इस पर आपत्ति की। ऑडिटर ने यह भी कहा है कि बिना जांच दवाओं के वितरण से मरीजों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने का खतरा है।

इससे अस्पताल की छवि भी खराब होगी। इसके बावजूद प्रशासन लापरवाह है। मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता डॉ. अरविंद नेरल का कहना है कि दवा की जांच तो कंपनियां करवाती हैं। अगर शासन का आदेश है तो मरीजों को वितरण के पहले जांच तो होनी चाहिए। इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन बेहतर बता सकता है।

घटिया दवा से रजिस्टेंस का खतरा
एंटी बायोटिक दवा यदि सब स्टैंडर्ड हुई तो मरीज पर इसका असर नहीं होगा। उल्टा उसके शरीर में रजिस्टेंस पैदा हो जाएगा। जीवाणु पहले की तुलना में सशक्त हो जाएगा और दूसरी दवा का इस पर असर ही नहीं पड़ेगा। सामान्य दवा भी असर नहीं करेगी। लेबोरेटरी में जांच से ही पता चल पाता है कि दवा में बताई गई मात्रा है कि नहीं।
डॉ. अविनाश इंग्ले, एसोसिएट प्रोफेसर फार्माकोलॉजी एम्स रायपुर

नहीं ले सकते लीगल एक्शन
आंबेडकर अस्पताल प्रबंधन को कोई नोटिस नहीं दिया गया है। प्रबंधन मान्यता प्राप्त लैब में दवा टेस्ट करवा सकता है। अगर दवा सब स्टैंडर्ड निकलती है तो लीगल एक्शन लेने का पॉवर हमें नहीं है।
एस. बाबू, डिप्टी ड्रग कंट्रोलर छत्तीसगढ़

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