गया: गया शहर यानी गयाजी, धार्मिक दृष्टिकोण से दुनिया में अलग पहचान.
छोटे-बड़े 53 वार्ड, करीब पौने दो सौ गलियां व छोटी-बड़ी सड़कें. आबादी
लगभग साढ़े चार लाख व हर रोज निकलता है 250 टन कचरा, पर नगर निगम के पास
मात्र एक डस्टबीन है. यह है आपके शहर की सफाई व खूबसूरती का ख्याल रखने
वाली व्यवस्था का हाल.
जरा सोचिए, पब्लिक निगम को टैक्स देती है, सामान्य सुविधाओं, शहरी कल्चर
व सरल जीवन के लिए. इनमें सफाई अति महत्वपूर्ण है, पर इसके लिए भी संसाधन
नहीं है. तो फिर किस काम की नगर सरकार? हालांकि, निगम की स्टैंडिंग कमेटी व
बोर्ड की बैठक में डस्टबीन खरीदे जाने का प्रस्ताव लाया गया है, लेकिन यह
धरातल पर उतरेगा या नहीं, समय बतायेगा.
शहर को सुंदर व हाइटेक बनाने के लिए अधिकारी व जनप्रतिनिधि आये दिन वादे
करते रहते हैं. कभी तालाबों व पार्को के सुंदरीकरण, तो कभी रोप-वे व
चिल्ड्रेन पार्क बनाने के सब्जबाग. जब सामान्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में
नगर सरकार खरा नहीं उतर रही है, तो अलग से कुछ करने की घोषणा सब्जबाग
दिखाना ही तो है. हर चौक-चौराहे पर कूड़े को एकत्र करने के लिए डस्टबीन की
जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ एक डस्टबीन ही है, पूरे शहर के कचरे का बोझ
उठाने के लिए. यह डस्टबीन नगर निगम के पदाधिकारियों, पार्षदों, डिप्टी मेयर
व मेयर तक का भी ख्याल रखता है. कहावत भी है-‘अकेला चना भाड़ फोड़ेगा.’ अब
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गया शहर 21वीं सदी में सांस ले रहा है या
फिर..कुछ बुजुर्ग लोगों की मानें, तो यह बदहाली पिछले एक दशक से है, जो
दिनों-दिन बदतर होती जा रही है.
एक शब्द है डस्टबीन, पर यह आधिकारिक व जनप्रतिनिधियों के स्तर पर होने
वाले विकास की घोषणाओं पर सवाल खड़ा कर रहा है. काशीनाथ मोड़ पर शहर का
एकमात्र डस्टबीन रखा गया है, एसडीओ क्वार्टर के ठीक बगल में. हालांकि यहां
इस डस्टबीन का उपयोग नहीं है, क्योंकि इस जगह पर न तो कोई कॉलोनी है, न ही
कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान. स्थानीय लोगों से पूछे जाने पर वे (मजाकिया
लहजे में) कहते हैं- स्टेशन से शहर में आने वाले लोग काशीनाथ मोड़ होकर ही
गुजरते हैं, इसलिए डस्टबीन को यहां पर रख दिया गया है, ताकि शहर की छवि
अच्छी बनी रहे.
इसके अलावा पूरे शहर में घूम लीजिए, कहीं भी डस्टबीन नजर नहीं आयेगा, न
तो व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सामने, न ही गली-मुहल्लों में. घर व
दुकानों का कचरा डालने की जगह है सड़क के किनारे व नाले. यह आदत है या
मजबूरी, खूबसूरती पर बट्टा लग रही है, साथ ही इससे कई बीमारियां भी पैदा हो
रही हैं. डस्टबीन नहीं होने से सारे शहर का कचरा सड़कों पर ही पड़ा होता
है. ऊपर से इसे फैलाने का काम करते हैं आवारा जानवर व जरूरत की चीजें खोजने
वाले गरीब-गुरबे बच्चे. यही कचरा फैल कर नालियों को भी जाम करता है. निगम
के सफाई कर्मचारियों को भी इसकी वजह से परेशानी होती है.