सरकारी गोदामों से गेहूं के निर्यात को बढ़ावा दिए जाने के बावजूद मार्च के अंत तक स्टॉक में कोई खास कमी नहीं हो पाई है। सरकार को गेहूं का निर्यात बढ़ाने और भंडारण क्षमता हासिल करने के लिए और ज्यादा प्रयास करने होंगे क्योंकि नई फसल बाजार में आने वाली है और सरकारी खरीद का गेहूं रखने के लिए जगह की जरूरत होगी।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि एक अप्रैल को देश के सरकारी गोदामों में 242 लाख टन गेहूं का स्टॉक था। यह स्टॉक पिछले एक मार्च के मुकाबले सिर्फ 11 फीसदी कम हुआ। सरकार ने अभी तक 14800 रुपये प्रति टन से नीचे भाव पर गेहूं निर्यात नहीं किया। लेकिन अब वह निर्यात मूल्य में कमी कर सकती है क्योंकि विश्व बाजार में मूल्य घट रहे हैं जबकि देश में जल्दी ही बंपर फसल आने वाली है।
सरकार पर गेहूं बारिश में खराब होने से बचाने का दबाव है। सरकार केंद्रीय पूल में खरीदे गए गेहूं का वितरण गरीब उपभोक्ताओं को सस्ते मूल्यों पर करती है। इसके अलावा आपात स्थिति से निपटने के लिए अनाज का बफर स्टॉक भी करती है।
सरकार ने टेंडर के जरिये 45 लाख टन गेहूं निर्यात के लिए उपलब्ध कराया है। इसमें से 36 लाख टन गेहूं निर्यात के सौदे हो चुके हैं। लेकिन सरकार को अपने दो नए टेंडरों के लिए कोई खरीदार नहीं मिला क्योंकि प्राइवेट निर्यातक 300 डॉलर प्रति टन से ज्यादा मूल्य पर खरीद को इच्छुक नहीं है।
सरकार ने फिलहाल 300 डॉलर प्रति टन बेस प्राइस निर्धारित कर रखा है। एक ग्लोबल ट्रेडिंग कंपनी की भारतीय फर्म के अधिकारी ने कहा कि पिछले कुछ टेंडरों में खरीदारों ने बिल्कुल दिलचस्पी नहीं दिखाई है। यह सरकार की मौजूदा निर्यात नीति की मौजूदा दौर में विफलता जाहिर करती है। वैश्विक बाजार में मूल्य घटने की वजह से सरकार को नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए।
सरकार ने 50 लाख टन गेहूं सीधे प्राइवेट निर्यातकों के जरिये निर्यात करने का फैसला किया है। लेकिन अभी तक निर्यातकों ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है क्योंकि मौजूदा सरकारी मूल्य पर निर्यात फायदेमंद नहीं है। ऐसे में सरकार ने गेहूं का निर्यात मूल्य घटाने पर विचार कर रही है।