उच्च तापमान के माहौल में भी सुरक्षित रहने वाली गेहूं किस्मों के विकास के लिए भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से रिसर्च करने की योजना बनाई है। दोनों देश गेहूं की किस्में विकसित करने के लिए रिसर्च पर बड़ी रकम खर्च करने की तैयारी कर रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग और तापमान में बढ़ोतरी होने के कारण ऐसी फसल किस्में तुरंत विकसित करने की जरूरत महसूस की जा रही है। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं जैसी महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
वाशिंगटन स्टेट यूनीवर्सिटी के एक भारतीय अमेरिकन वैज्ञानिक की अगुवाई में शुरू होने वाले इस प्रोजेक्ट में दोनों देशों के वैज्ञानिक शामिल होंगे। इस प्रोजेक्ट में यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और गेहूं अनुसंधान निदेशालय (डीडब्ल्यूआर)
मदद करेंगे।
यह प्रोजेक्ट अमेरिकी सरकार के ग्लोबल हंगर एंड फूड सिक्योरिटी कार्यक्रम ‘फीड दि हंगर’ का हिस्सा है। यूएसएड के एक बयान के अनुसार अनुसंधानकर्ता जलवायु अनुकूल किस्में विकसित करने पर काम करेंगे। प्रोजेक्ट डायरेक्टर कुलविंदर गिल ने कहा कि रिसर्च में उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों पर फोकस किया जाएगा।
इस क्षेत्र में करीब एक अरब लोग निवास करते हैं। यहां सीमित जल संसाधन और बढ़ते तापमान की बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि फूड सिक्योरिटी के लिए ये प्रयास काफी अहम हैं। इसका लाभ उत्तर भारत के मैदानों से बाहरी क्षेत्रों को भी मिलेगा।
वैज्ञानिकों का रिसर्च अगली पीढिय़ों की भोजन की जरूरतें पूरी करने में योगदान देगा। इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा की चुनौती को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से निपटा जा सकेगा। खासकर वैश्विक जलवायु परिवर्तन, सीमित संसाधन और बढ़ती आबादी की चुनौतियों के बीच यह रिसर्च और अहम हो जाती है।
गिल ने कहा कि नई विकसित होने वाली किस्में इन चुनौतियों के बीच लक्ष्य हासिल करने में मदद देंगी। इस प्रोजेक्ट से दुनिया के सभी हिस्सों को फायदा होगा क्योंकि गेहूं की फसल में फूल विकसित होने के समय तापमान बढऩे की समस्या ज्यादातर क्षेत्रों में आ रही है।