जरूरी दवाएं महंगी कर देगी यूरोप से संधि

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सस्ती दवाओं की खुशी जल्द ही काफूर हो सकती है। केंद्र सरकार यूरोपीय समुदाय के साथ गुपचुप रूप से जो मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने जा रही है उसके बाद भारत सख्त पेटेंट शर्तो में बंध सकता है यानी दवाएं महंगी हो सकती हैं। समझौता गुपचुप इसलिए है क्योंकि इसके प्रावधान सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। आमतौर पर मुक्त व्यापार समझौतों का मसौदा संबंधित पक्षों की जानकारी और बहस के लिए सार्वजनिक किया जाता है, लेकिन यूरोपीय समुदाय से संधि को लेकर एक रहस्यमय गोपनीयता बरती जा रही है।

यह भारत का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है। इसी माह 15 अप्रैल को ब्रसेल्स में वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और ईयू के ट्रेड कमिश्नर कार्ल डी गेश के बीच इस पर निर्णायक बैठक होनी है। वाणिज्य मंत्रालय समझौते की तैयारी में जुटा है, जबकि उद्योग बेचैन है क्योंकि इस संधि से यूरोपीय समुदाय को जो रियायतें मिलने की संभावना है उनके जरिये भारत में डेयरी, कृषि, पॉल्ट्री सहित कई उत्पादों के आयात में बड़े पैमाने पर इजाफा होने का डर है, जो देश के उद्योगों पर भारी पड़ेगा। भारत ईयू संधि में दवाओं को लेकर संवेदनशीलता सबसे ज्यादा है।

सूत्रों के अनुसार, इस समझौते में पेटेंट व बौद्धिक संपदा अधिकारों (ट्रिप्स) के तहत यह प्रावधान है कि अगर भारत में बनने वाली दवाएं पेटेंट नियमों के खिलाफ हुई तो निर्यातकों की दवा, बैंक खाते व संपत्तियां कुर्क हो जाएंगी। इससे भारत में देशी व विदेशी कंपनियों के लिए दवाएं सस्ती रखना मुश्किल होगा। महंगी दवा बनाकर बेचना और निर्यात करना मजबूरी होगा, जैसी कोशिश नोवर्टिस कर रही थी जिसे सुप्रीम कोर्ट से खारिज किया गया है। यह प्रावधान यूरोप के रास्ते अफ्रीका को जाने वाली दवा की खेप पर भी लागू हो सकता है। भारत अफ्रीकी देशों को जेनरिक दवाओं का बड़ा निर्यात करता है। 2008 में नीदरलैंड में भारत से निर्यात हुई दवाओं की 16 खेप जब्त हुई थीं। यह संधि परवान चढ़ेगी या नहीं, लेकिन स्वयंसेवी संगठनों के जरिये मसौदे के जो हिस्से बाहर आए हैं, उनसे खासी बेचैनी है।

पेटेंट विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत ने डब्लूटीओ के निर्धारित ट्रिप्स पर जो सहमति दी थी, समझौता उससे बाहर जा रहा है। इसलिए इसके प्रारूप को सार्वजनिक करने की मांग हो रही है।

भारत का डेयरी उद्योग भी समझौते के तरह यूरोप से दुग्ध उत्पाद आयात पर आशंकित है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष आरएस सोढी इस समझौते को लेकर सख्त विरोध दर्ज करा चुके हैं। यूरोप में डेयरी उत्पादों पर सब्सिडी है, जो निर्यातों को सस्ता रखती है। इस एफटीए से गेहूं, चीनी, मछली उत्पादों का आयात बढ़ने की आशंका है, जो देशी उत्पादकों की समस्या बनेगा।

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