* हजारीबाग के रहनेवाले हैं आइपीएस महेंद्र मोदी
– न कोई संस्था, न
परचा-पोस्टर और न समाज सेवा के नाम पर इधर-उधर से पैसा झटकने की तिकड़म. यह
एक सेवारत आइपीएस अफसर का जुनून है, जिसने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से
लेकर राजस्थान तक जल संकट से जूझ रहे ग्रामीणों को पानी बचाने के अभियान से
जोड़ा और संकट को दूर किया. अब वह पानी बचाने के अपने इस मुहिम को अन्य
राज्यों में पहुंचाने में जुटे हैं. –
लखनऊ : देश के हर राज्य में तेजी से नीचे जा रहे जलस्तर (वाटर लेवल) से
जूझ रहे लोगों को पानी बचाने की मुहिम से जोड़ने की यह साधना यूपी पुलिस के
एडीजी सतर्कता (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक) महेंद्र मोदी की है, जिनकी कड़क
पुलिसिया शैली के किस्से तो जगजाहिर हैं, लेकिन उनकी संवेदनशीलता से
सिर्फवही वाकिफ हैं, जो उन्हें समझते हैं.
संकोची, लेकिन असाधारण सामाजिक सरोकारवाले 1986 बैच के आइपीएस महेंद्र
मोदी झारखंड के हजारीबाग से हैं. उप्र में आइपीएस अधिकारी के रूप में मोदी
कई जिलों में एसपी रहे, इस दौरान कभी भी उन्हें पानी बचाने का ख्याल नहीं
आया, लेकिन डीआइजी रेंज झांसी के पद पर पोस्टिंग पाने के बाद जब उन्होंने
बुंदेलखंड के गांव-गांव में पानी की कमी से लोगों को जूझते देखा, तो
उन्होंने यह मुहिम शुरू की.
बकौल मोदी बुंदेलखंड के तमाम गांवों में जब वह पहुंचे तो लोगों ने उनसे
कहा कि यहां पुलिस तो है, पर पानी नहीं. पानी की कमी के चलते बुंदेलखंड के
अधिकांश गांवों में गरमी के दिनों में कुएं और तालाब सूखे जाते हैं. पीने
का पानी भी ग्रामीणों को कई किलोमीटर दूर किसी चेकडैम से लाना पड़ता है.
पहले उन्होंने पानी बचाने से संबंधित कई किताबें पढ़ी और उनमें बताये
तरीकों को बुंदेलखंड में पानी से तरसते गांवों में लागू करने का प्रयास
किया. यह करते हुए उन्होंने पाया कि किताबों में पानी बचाने के बताये गये
तमाम तरीके काफी महंगे हैं और बुंदेलखंड के गरीब ग्रामीण उन्हें अमल में
नहीं ला पा रहे हैं.
इस पर मोदी ने खुद ही गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में
बचाने के साथ कुएं के घटते जलस्तर को रोकने के सस्ते मॉडल विकसित करने की
सोची. मोदी बताते हैं कि इसके लिए उन्होंने पानी बचाने के पुराने तरीकों का
अध्ययन किया और पांच वर्षों में पानी बचाने के एक दर्जन से अधिक मॉडल खुद
विकसित किये. मोदी द्वारा विकसित किया गया वाटर रिचार्ज वेल आज बुंदेलखंड
के कई गांवों में लोगों को पानी की किल्लत से बचा रहा है.
करीब 15 हजार की लागत से कुएं के पानी का जल स्तर बढ़ाने वाले इस मॉडल
को मोदी देश भर में लागू करना चाहते हैं. वे कहते हैं कि गांवों में कुआं
सिर्फ लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं कराता है, बल्किवह खेती के लिए भी
कारगर साबित होता है. लेकिन, घटते जलस्तर के चलते अधिकांश गांवों के कुएं
बेकार हो रहे हैं.
हम बरसाती पानी को एकत्र कर इन्हें फिर से रिचार्ज कर सकते हैं. इसी तरह
उन्होंने तालाब और झील के जल को भी शुद्ध करने का मॉडल भी तैयार किया है.
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इसे अमल में लाकर तालाब व झील के पानी का उपयोग पीने और खेती के कार्य में
लंबे समय तक किया जा सकता है.
मोदी कहते हैं कि यह सब तभी होगा, जब हम लोगों को पानी बचाने के अभियान
से जोड़ें, उन्हें बतायें कि कैसे हम पानी बचा कर शुद्ध पेयजल पाने के साथ
ही बिजली की बचत कर सकते हैं. खेती की उपज बढ़ा सकते हैं और पशुओं की
संख्या में इजाफा कर सकते हैं. यह वह बताने के लिए ही मोदी देश के अन्य
राज्यों में पहुंच रहे हैं.
* ऐसे बनाया रिचार्ज कुआं
इस प्रक्रिया में प्लॉट और खेत में करीब आठ
से दस फीट का गहरा और सात फीट चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है. इसके नीचे
कंकरीली मिट्टी मिलाने पर इसमें एक फुट तक बालू भरी जाती है. इसके बाद कुएं
की दीवार बनायी जाती है. फिर एक ढक्कन लगा कर सिल्ट सेंटलमेंट चेंबर बनाया
जाता है. इसी में पानी रिचार्ज करने का सिस्टम होता है. रिचार्ज वेल बना
कर जलस्तर को ऊपर किया जा सकता है.
* फायदा
इससे नलकूप, सबमर्सिबल सिस्टम को रीबोर करने की जरूरत नहीं
पड़ती. एक बार कुएं का निर्माण कराने पर पांच साल तक जल स्तर नहीं गिरेगा.
जल स्तर गिरा होने पर दो साल में वह फिर से उठेगा. इसके छन्ने से मिलने
वाली सिल्ट खेतों के लिए खाद का काम करेगी. जल भराव और बाढ़ के दौरान कुआं
कभी गंदा नहीं होता.