नई दिल्ली। देश में नकली या मिलावटी दवाओं का प्रचलन
बढ़ता जा रहा है। पिछले तीन साल में नकली दवाओं का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ा
है। करीब चार साल पहले सरकार ने ऐसी अवैध गतिविधियों की सूचना देने वालों
के लिए ह्विसल्ब्लोअर्स पुरस्कार योजना बनाई थी जो पूरी तरह नाकाम रही है। न
तो आज तक एक भी सही सूचना मिली और न किसी को पुरस्कृत किया गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सूचना के अधिकार [आरटीआइ] याचिका के जवाब में
बताया है कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन [सीडीएससीओ] ने
वर्ष 2009 से 2012 के बीच नकली या मिलावटी दवाओं के कुल 345 मामलों की
जानकारी दी है। इनमें वर्ष 2009-10 में 117, 2010-11 में 95 और 2011-12 में
133 मामले सामने आए। सीडीएससीओ ने पिछले तीन सालों में 1.37 लाख दवाओं के
नमूनों की जांच की है। इनमें से 6500 नमूने निम्न गुणवत्ता वाले थे जबकि
अन्य 345 मामलों में दवाएं नकली थीं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने नकली और
मिलावटी दवाओं के निर्माण, वितरण और बिक्री करने के आरोप में विभिन्न लोगों
के खिलाफ 516 मुकदमे शुरू किए। नकली दवा बनाने और बेचने के आरोप में 345
लोग गिरफ्तार किए गए। वर्ष 2009-10 में कुल 39 हजार 248 दवाओं के नमूनों की
जांच की गई। इनमें एक हजार 942 निम्न गुणवत्ता वाली थीं। वर्ष 2011-12 में
48 हजार 82 दवाओं के नमूनों की जांच की गई। इनमें दो हजार 186 निम्न
स्तरीय निकलीं। वर्ष 2011-12 में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने 211
मुकदमे शुरू किए जिनमें 141 लोगों की गिरफ्तारी हुई।
मंत्रालय ने वर्ष 2009 के अगस्त में ह्विसल्ब्लोअर योजना की शुरुआत की
थी। महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा आरटीआइ के तहत दी गई जानकारी के
अनुसार, इस योजना के तहत किसी व्यक्ति द्वारा नकली दवाओं के बारे में सूचना
देने पर उसे पुरस्कृत किया जाना था लेकिन इस तरह की कुल 37 शिकायतें मिलीं
लेकिन सारी शिकायतें झूठी निकलीं।